Wednesday 24 August 2011

OM GLOBALAAYA NAMAH: Aakhirkaar

OM GLOBALAAYA NAMAH: Aakhirkaar:


pahunch to main gaya hoon kisi tarah yahaan tak ...

aage ka raasta bhi dhoondhana hai vahaa...n tak ...

tum bata dena to thoda mere maalik mere yaar

madad ko aanaa bataana jaana mujhko kahaan tak ...!

3 comments:

  1. It is not a dream----atul vir arora

    It is not a dream
    I see it crystal clear
    Like a clear precipice

    Which is also seen by
    Those persons
    Persons
    Animals
    They do not want those who are to die should die
    Silently
    Lonely in pain ,
    inflicted by screams given by them only
    screams that incite them
    to the very limit of eroticism
    definition of joy and comfort is only this

    for them
    it is dark
    the darkness releases the souls
    the souls in a limbo

    in man “s world
    man has become a bone

    or a flesh

    mankind is there only
    till man is man

    living can be more agonizing
    and death –a great festivity

    translated by principal bhupinder—(retd) 19/8/2011

    Aug 19, 07:49AM PDT | E
    posted by principalbhupinder at 7:08 am
    labels: death, festivity, mankind, poet
    0 comments:

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  2. बहुत वर्ष हो गुज़रे हैं लेकिन एक क्षण के लिए भी लुक़मानली भूला नहीं है , न उसके आस पास की लिखी गयी कविताएं हालांकि भूल गया हूँ कि एक कोई समीक्षात्मक लेख जिससे पूरी तसल्ली भी नहीं ही हुई थी मेरी , मैंने लिखा था और चंडीगढ़ में ही शायद किसी गोष्ठी में उनकी मौजूदगी में पढ़ा था। उसे कोई दूसरा ही ले उड़ा है और कहता है कि वः उसका लिखा हुआ है। .. अब क्या किया /कहा जाए जब वः लेख खुद सौमित्र ही के हाथों उस तक पहुंचा हो। यहां चंडीगढ़ के हिंदी विभाग में मै कभी रहा होता तो ऐसे ऐसे कवियों ,कथाकारों , उपन्यासकारों पर शोध प्रबंध आ गए होते जिन्हें पूरा सम्मान कभी नहीं दे पाएंगे यहां के 'गरीब ' लोग। हालांकि जिस तरह आज भी सौमित्र ज़िंदा हैं , उससे तो यही दीखता है कि नहीं हुआ उनपर कोई काम तो यह भी एक उपलब्धि ही है। उनकी कविताओं में जो दैनिक हादसे , खुराफातें , राजनीति , इतिहास और मनुष्य की सादा , अवसाद भरी , उल्लास भरी यकायक उत्सव की तरह बीत गयी और भूले से चली गयी , याद आ गयी हरकतों में छुपी हुई रोज़मर्रा ज़िन्दगी का क्षणिक खुलासा और ब्यौरा जिस तरह आ जुटता है अचानक , और फिर ऐसे स्पंदित होता है जैसे कभी बीत ही नहीं पायेगा , उँगलियों के पोरों पर कविता की किताब के सफे उलटने के लिए इस्तेमाल में लायी गयी जिह्वा के गीलेपन के अहसास की तरह आ बैठेगा बार बार कागज़ की धार को दर्ज करता हुआ। ऐसे कवी किसी आलोचना के मुहताज नहीं होते न पुरस्कार ही के। उनका पुरस्कार उनका पाठ होता है। लुक़मानली या आधा दिखता आदमी हमारे समय का एक जागृत दस्तावेज़ है जिसे कविता अपनी खोयी हुई शिनाख्त के हेतु सुरक्षित रखना चाहेगी।

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  3. Atul Arora
    Just now ·
    घुड़सवार

    एक पिटे हुए चेहरे के साथ जागता हूँ
    हैरान होता हूँ कि सो कैसे जाता हूँ रोज़

    एक घुड़सवार गिरता है मेरे भीतर
    युद्ध नहीं कोई

    हास या परिहास से सराबोर उत्सव
    बात बिन बात का
    रंजन रस रास

    हो रहा होगा जहां होता ही रहता है
    गिरते मरते ज़ख़्मी लोगों के बीच
    चुटकुलों का खेल
    चुटकुला सा युद्ध

    अचानक यह क्या हुआ
    कि सृष्टि के मंच पर सोये किसी देश में
    भारी भूस्खलन
    पानी हुआ खून या खून हुआ पानी

    खुर्रम खाट जी
    कैसे खाट खड़ी की ?
    यह घोड़ा किस मदिरालय में ?

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