It is not a dream I see it crystal clear Like a clear precipice
Which is also seen by Those persons Persons Animals They do not want those who are to die should die Silently Lonely in pain , inflicted by screams given by them only screams that incite them to the very limit of eroticism definition of joy and comfort is only this
for them it is dark the darkness releases the souls the souls in a limbo
in man “s world man has become a bone
or a flesh
mankind is there only till man is man
living can be more agonizing and death –a great festivity
translated by principal bhupinder—(retd) 19/8/2011
Aug 19, 07:49AM PDT | E posted by principalbhupinder at 7:08 am labels: death, festivity, mankind, poet 0 comments:
बहुत वर्ष हो गुज़रे हैं लेकिन एक क्षण के लिए भी लुक़मानली भूला नहीं है , न उसके आस पास की लिखी गयी कविताएं हालांकि भूल गया हूँ कि एक कोई समीक्षात्मक लेख जिससे पूरी तसल्ली भी नहीं ही हुई थी मेरी , मैंने लिखा था और चंडीगढ़ में ही शायद किसी गोष्ठी में उनकी मौजूदगी में पढ़ा था। उसे कोई दूसरा ही ले उड़ा है और कहता है कि वः उसका लिखा हुआ है। .. अब क्या किया /कहा जाए जब वः लेख खुद सौमित्र ही के हाथों उस तक पहुंचा हो। यहां चंडीगढ़ के हिंदी विभाग में मै कभी रहा होता तो ऐसे ऐसे कवियों ,कथाकारों , उपन्यासकारों पर शोध प्रबंध आ गए होते जिन्हें पूरा सम्मान कभी नहीं दे पाएंगे यहां के 'गरीब ' लोग। हालांकि जिस तरह आज भी सौमित्र ज़िंदा हैं , उससे तो यही दीखता है कि नहीं हुआ उनपर कोई काम तो यह भी एक उपलब्धि ही है। उनकी कविताओं में जो दैनिक हादसे , खुराफातें , राजनीति , इतिहास और मनुष्य की सादा , अवसाद भरी , उल्लास भरी यकायक उत्सव की तरह बीत गयी और भूले से चली गयी , याद आ गयी हरकतों में छुपी हुई रोज़मर्रा ज़िन्दगी का क्षणिक खुलासा और ब्यौरा जिस तरह आ जुटता है अचानक , और फिर ऐसे स्पंदित होता है जैसे कभी बीत ही नहीं पायेगा , उँगलियों के पोरों पर कविता की किताब के सफे उलटने के लिए इस्तेमाल में लायी गयी जिह्वा के गीलेपन के अहसास की तरह आ बैठेगा बार बार कागज़ की धार को दर्ज करता हुआ। ऐसे कवी किसी आलोचना के मुहताज नहीं होते न पुरस्कार ही के। उनका पुरस्कार उनका पाठ होता है। लुक़मानली या आधा दिखता आदमी हमारे समय का एक जागृत दस्तावेज़ है जिसे कविता अपनी खोयी हुई शिनाख्त के हेतु सुरक्षित रखना चाहेगी।
It is not a dream----atul vir arora
ReplyDeleteIt is not a dream
I see it crystal clear
Like a clear precipice
Which is also seen by
Those persons
Persons
Animals
They do not want those who are to die should die
Silently
Lonely in pain ,
inflicted by screams given by them only
screams that incite them
to the very limit of eroticism
definition of joy and comfort is only this
for them
it is dark
the darkness releases the souls
the souls in a limbo
in man “s world
man has become a bone
or a flesh
mankind is there only
till man is man
living can be more agonizing
and death –a great festivity
translated by principal bhupinder—(retd) 19/8/2011
Aug 19, 07:49AM PDT | E
posted by principalbhupinder at 7:08 am
labels: death, festivity, mankind, poet
0 comments:
बहुत वर्ष हो गुज़रे हैं लेकिन एक क्षण के लिए भी लुक़मानली भूला नहीं है , न उसके आस पास की लिखी गयी कविताएं हालांकि भूल गया हूँ कि एक कोई समीक्षात्मक लेख जिससे पूरी तसल्ली भी नहीं ही हुई थी मेरी , मैंने लिखा था और चंडीगढ़ में ही शायद किसी गोष्ठी में उनकी मौजूदगी में पढ़ा था। उसे कोई दूसरा ही ले उड़ा है और कहता है कि वः उसका लिखा हुआ है। .. अब क्या किया /कहा जाए जब वः लेख खुद सौमित्र ही के हाथों उस तक पहुंचा हो। यहां चंडीगढ़ के हिंदी विभाग में मै कभी रहा होता तो ऐसे ऐसे कवियों ,कथाकारों , उपन्यासकारों पर शोध प्रबंध आ गए होते जिन्हें पूरा सम्मान कभी नहीं दे पाएंगे यहां के 'गरीब ' लोग। हालांकि जिस तरह आज भी सौमित्र ज़िंदा हैं , उससे तो यही दीखता है कि नहीं हुआ उनपर कोई काम तो यह भी एक उपलब्धि ही है। उनकी कविताओं में जो दैनिक हादसे , खुराफातें , राजनीति , इतिहास और मनुष्य की सादा , अवसाद भरी , उल्लास भरी यकायक उत्सव की तरह बीत गयी और भूले से चली गयी , याद आ गयी हरकतों में छुपी हुई रोज़मर्रा ज़िन्दगी का क्षणिक खुलासा और ब्यौरा जिस तरह आ जुटता है अचानक , और फिर ऐसे स्पंदित होता है जैसे कभी बीत ही नहीं पायेगा , उँगलियों के पोरों पर कविता की किताब के सफे उलटने के लिए इस्तेमाल में लायी गयी जिह्वा के गीलेपन के अहसास की तरह आ बैठेगा बार बार कागज़ की धार को दर्ज करता हुआ। ऐसे कवी किसी आलोचना के मुहताज नहीं होते न पुरस्कार ही के। उनका पुरस्कार उनका पाठ होता है। लुक़मानली या आधा दिखता आदमी हमारे समय का एक जागृत दस्तावेज़ है जिसे कविता अपनी खोयी हुई शिनाख्त के हेतु सुरक्षित रखना चाहेगी।
ReplyDeleteAtul Arora
ReplyDeleteJust now ·
घुड़सवार
एक पिटे हुए चेहरे के साथ जागता हूँ
हैरान होता हूँ कि सो कैसे जाता हूँ रोज़
एक घुड़सवार गिरता है मेरे भीतर
युद्ध नहीं कोई
हास या परिहास से सराबोर उत्सव
बात बिन बात का
रंजन रस रास
हो रहा होगा जहां होता ही रहता है
गिरते मरते ज़ख़्मी लोगों के बीच
चुटकुलों का खेल
चुटकुला सा युद्ध
अचानक यह क्या हुआ
कि सृष्टि के मंच पर सोये किसी देश में
भारी भूस्खलन
पानी हुआ खून या खून हुआ पानी
खुर्रम खाट जी
कैसे खाट खड़ी की ?
यह घोड़ा किस मदिरालय में ?