Wednesday 24 August 2011

OM GLOBALAAYA NAMAH: Aakhirkaar

OM GLOBALAAYA NAMAH: Aakhirkaar: AAKHIRKAAR KAAMYAABI MILI.. YAH MERA BLOG AAJ NIRMIT HUA... SANAD RAHEY...

333 comments:

  1. kaafi kuchh likha tha , mil nahin rahaa....!

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  2. Atul Arora
    August 2, 2014 at 10:10pm •
    बनो नहीं ,
    बनाओ !
    अब बन गए हो तो !
    बोला ना , बनाओ !
    नहीं बन सके हो तो !
    बनाना नहीं आता
    मुझे
    बुनना भर आता है !
    बुनना बनाना
    बनाता ही रहता हूँ
    कुछ
    कुछ तो
    पर कुछ का कुछ वह बन
    बुन जाता है
    बनाते बनाते
    होता कुछ और है होते न होते
    अब जो भी है वह
    तुम्हारे लिए है
    शायद मेरे लिए भी
    ज़्यादातर
    ज़्यादातर के लिए नहीं
    उन्हें चाहिए वह जो बन चुका है
    बनाया हुआ ख़ास
    सिर्फ उनके लिए
    भले थोक में आता है और फोक में जाता है।
    कविता में कैसे कहूँ कविता नहीं होता है। .

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  3. August 18, 2012 at 10:43pm •
    जिस किसी से प्यार जैसा
    कुछ करते हैं आप
    इंतज़ार रहती है
    हर लम्हा
    कहीं छिपी हुई
    घात लगाए हुए
    कि अब वो शिकार हुआ कि हुआ ..
    भूख जो ऐन ठिकाने पर बैठी
    इंतज़ार कर रही होती है
    चील की निगाहें लिए
    झपटने को आतुर
    कैसे वह कब
    खुराक बन जाता है
    आपकी
    उसको भी इसका पता नहीं चलता
    ऐन उस वक़्त
    जब वो आपकी
    ज़ुबान की लोच में
    फंसा हुआ बेखुद सा नाच रहा होता है
    आप उसके जिस्म पर
    गाड़ देते हैं
    पंजे
    नाखून
    या दांत ही दांत
    आंत उसकी आंत अब क्या जवाब दे ....

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  4. 20.08.2016 /
    सवाल तो लगातार उठ रहे थे
    पूछ भी रहा होगा उन्हें कोई ज़रूर
    लेकिन जवाब दने वाले
    कहीं हाज़िर नहीं थे
    प्रेत की तरह किसी का उलटे पाँव चलना
    दिखाई दे गया।
    धूल ही धूल थी
    तलुवों से झरती हुई
    ज़रा सा कभी जब उठते थे आकाश में
    पृथ्वी को फलांग कर
    बेखयाल था कि जिसको सच होना आता था।
    झरने फूट रहे थे
    क्योंकि फूटना उन्हें आता था
    मूर्ख काट रहे थे
    काटते हुए
    और के और
    कटते हुए पहाड़
    गाथा सप्तशती जैसा
    होता कोई माहौल
    तो सुनने को आता
    गर्दन पर जिसके अयाल ही अयाल
    तूफानों के से हिलते थे
    वह घोडा नहीं था
    जो दौड़ रहा था
    प्रागैतिहासिक चट्टानों की छाती पर
    शेष रही होंगी कुछ
    जगहें
    ज़रूर
    जब खुरों में उसके वे
    सिमट रही होंगीं
    भले किन्हीं वक़्तों की आमद को अपने
    निमंत्रण देती हुईं
    अनुत्तरित सवालों की शक्लों में गुम।
    जा तो नहीं रहा था
    वह
    कहीं
    किसी यात्रा
    पर
    पूछ रहा था
    चल रहे हो ?
    जब
    प्रेत के पाँव
    उलट कर सीधे हो गए
    दोबारा उलटने से पहले
    ठहरा तो कभी
    मैं
    हुआ नहीं था।

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  5. Atul Arora
    August 19, 2012 at 9:50pm •
    खूबसूरत है वह
    और नाज़ भी है ही उसे अपनी
    खूबसूरती का
    पता नहीं
    उसे यह भी
    पता है या नहीं
    कि जिस चीज़ को लेकर
    वह इतराती घूम रही है
    उसी के भीतर
    उसका बंदीगृह भी है ..
    ये जो नाज़ नखरे उठाना
    हो रहा है
    उसके आस पास
    संस्कृति और हिंसा का
    सोचा समझा संयोजित छलावा ही है
    जो सामने नहीं आया है
    अभी इस वक़्त ..
    आएगा तो जितनी ताक़त नज़र आ रही है
    उसके सौंदर्य के
    खरखरे वजूद की
    कमज़ोर दिखने लगेगी
    थोड़ी देर बाद
    फिर यकायक गायब हो जाएगा
    उसका ख़ुलूस ...
    कचकचाया कांच है
    बस फूटा कि फूटा
    कि फूटा कि फूटा ....

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  6. Atul Arora
    August 7, 2015 at 9:21pm •
    कभी कभी कुछ पंक्तियाँ हिट कर जाती हैं
    कहीं किसी की लिखी हुई
    किसी के लिए
    और आपके हिस्से आ जाती हैं
    यूं ही उड़ती उड़ती।
    बड़े बड़े लेखकों की
    छोटी छोटी बातें।
    संदर्भ उलझे हुए।
    " बेहद खूबसूरत था
    मिलना तुमसे
    तुमसे बात करना
    इच्छा रखना
    तुम्हें पाने की
    बहुत
    बहुत आशाएं
    जीवित हैं
    तमाम अवसरों की
    नैकट्य से गर्भाये हुए
    चले आएंगे
    कभी आते हुए
    अगले किसी समय में "
    अगली पंक्ति अगर अंग्रेजी में ही रहे तो क्या हर्ज है ?
    संभव है वह उसका कोई तकिया कलाम ही हो।
    हो तो हो
    लेकिन किसका ?
    बूझिये !
    (Meanwhile i am collecting my dirty linen for you .Please don't wash it in public . Much love .....)
    Is it really washable ?
    recommend some detergent please !

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  7. n extract from a memory post :
    भीतर का बाहर : अतुलवीर अरोड़ा
    ============
    एक कोई जिन था जो बोतल से बाहर आ गया था। निकाला उसने खुद ही था और बोतल भी उसी की थी। खैरात में मिली होती तो तोड़ कर निजात पा लेता और सर पटकते हाथ पाँव मारते जिन को उसके हाल पर चुपके से छोड़ कर चल देता। बड़ी मेहनत से हासिल की थी उसने यह बोतल और एक लम्बे संघर्ष के बाद आया था जिन उसके हाथ , जिसे बोतल में बंद करने की कला वह धीरे धीरे सीख गया था। जब कभी वह बाहर निकल आता या वह उसे खुद बाहर निकाल लेता तो वापिस बोतल में बंद करना एक भूलभुलैयाँ के भीतर दाखिल होने और नए से नए रास्ते खोजते चले जाने की क्रीड़ा का सा समा बाँध देता था। कलात्मक सुख। लेकिन इधर यह जिन उसे आततायी नज़र आने लगा था। बोतल के मुंह तक तो पहुँच जाता था लेकिन उसके बाद बोतल को निगल जाता था जबकि होना यह चाहिए था कि बोतल के मुंह को छूते ही उसका वजूद किसी सांप में कायांतरित हो और वह फुर्ती के साथ वह ढक्कन वहां ठोंक दे जिसके रहते जिन को सांसें भी मिलती रहे और वह खुद भी चैन से उसे देखा करे , कभी सांप , कभी धुंआ होता हुआ। कॉर्क की अपनी काली कारस्तानियों का यह सबसे बड़ा नमूना था। फक्क से खुलना और फुसक कर ढक से बंद हो जाना ।
    उसकी नींद हराम हो गयी थी। ज़िन्दगी कबाड़।
    जैसे जेल के सीखचों के पीछे धकेल दिया गया हो।
    वह देखता रहता और महसूस करता रहता कि है कोई दीवार , अँधेरे की , जिसकी छाती पर उसके नाखून खुरच खुरच खुरचाये जाते हैं
    कलई और सीमेंट और रेत और बजरी और मिटटी होता रहता है वह खुद बात बात पर लहूलुहान होता हुआ । जैसे ज़िन्दगी जीने का अभ्यास ही छूट गया हो।
    कूड़ा कनस्तर।
    ज़ंग खाया टीन टप्पर।
    नींद की गोली।
    भरभुरे से स्वप्न।
    मैले , धूल सने अखबार !
    वह कलम उठाता था और कुछ भी लिख नहीं पाता था। क्यों क्यों करते सवालों के रेले उसके ज़हन पर खूंखार वानरों की तरह अपने पंजे गाड़ देते और वह लगभग अधमरा हो जाता।
    सारी चीज़ें , समय , स्थान , घटनाएं , दुर्घटनाएं , खबरें , हादसे , वारदातें , लोग , व्यक्ति , अपना आप जैसे तेज़ हथियारों या तीखे औज़ारों का पैनापन खो चुके हों।
    सबसे ज़्यादा ज़ालिम और नृशंस हो गया था एक शब्द , प्रेम !
    सर्वाधिक अर्थहीन !
    वह साफ़ देख रहा था , उसकी तमाम संवेदनाएं जड़ होती जारही थीं। आस्था विहीन सा खुद ही में त्रस्त और बौखलाया हुआ वह जैसे आत्महत्या या फिर किसी की ह्त्या पर उतारू था।
    जिन तो चाहता ही था की वह इस कगार पर आ खड़ा हुआ है तो छलांग भी लगा ही दे ताकि उसे पता ही नहीं चले कि साज़िश उसके जिन की थी ।
    फक्कॉफ , यूं बास्टर्ड ! हाउ डेयर यू ! पीछा करते हो ?
    एक आवाज़ थी जिसका घटाटोप था और वह उसके गलीज़ आतंक में घिरा हुआ वमन कर रहा था।

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  8. Atul Arora
    August 23, 2012 at 8:53pm ·
    अपने आप चला आया था
    गायन का वह रूप

    स्वरित
    कुछ कुछ त्वरित

    नयी ही लगती थी कहानी उसकी
    नया ही लग रहा था उसका विस्तार

    रूढ़ पर आरूढ़

    लेकिन संगति संगाती के घुल रहे
    संगीत में
    अलग ही आत्मस्थ

    सुनने की आकुलता
    व्याकुलता सुनाने की
    अफ़रा की तफ़री में भी
    षड्ज था आश्वस्त

    मालकौंस फिर भी
    भीतर कहीं चिंतित था

    कथन अपना करने को
    सुने कहन सुनाने को

    जगत ही से दूर
    कहीं पार

    चला जाना चाहता था

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  9. Atul Arora
    August 23, 2014 at 1:14am ·
    यह तो सैलाब है , मेरे मित्र !
    गहो , बहो,
    न सहो , न सही !

    डूब के देखो
    डूब डूब में
    डूबी है तो मही यही...

    हिस्से में गर हसद आई हो
    आये
    स्वागत
    वही सही…

    कहने को क्या कहूँ , कही।
    कही कही
    न कही न कही

    वक़्फ़ा वक़्फ़ा करते करते ही तुम आये
    यही सही।

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  10. Atul Arora
    August 23, 2015 at 5:33am ·
    भीतर का बाहर : ६ / अतुलवीर अरोरा
    =============
    बहुत सही जगह पहुँच गए हो , बंधु !
    यह पथ बंधु था !
    कहते ही उसका मन हुआ , ज़ोर से ठहाका लगा दे ! उपेन्द्रनाथ अश्क ने बड़ी ठुकाई की थी इस उपन्यास की। याद है ?
    अब कोई और करेगा !
    मतलब ?
    इसकी !
    इसकी किसकी ?
    यह जो मैं लिख रहा हूँ !
    लिख रहे हो ?
    लिखना ही तो हो रहा है ! कन्दरा के भीतर ! जाले तमाम !
    अच्छी बकवास कर लेते हैं हम सब !
    सचमुच ?
    और नहीं तो क्या ?
    अच्छा , ये हो क्या रहा है ? गाडी नहीं आएगी क्या ?
    धुंध बहुत है ! गाड़ियां तमाम लेट चल रही हैं !
    मेरा फैसला अटल बना रहे , इसकी दुआ करो।
    सोचना भी मत। मैं यहीं गाड़ दूंगा। टुकड़े टुकड़े कर दूंगा तुम्हारे ! साला , मज़ाक बना रक्खा है। बार बार नहीं होगा यह। इस बार तो बिलकुल नहीं।
    हवा ने चाकू की तरह गर्दन पर वार किया है।
    गाडी आ गयी होती तो अच्छा होता। भीतर बैठ गए होते जाकर। लोगों की भीड़ में। कुछ तो राहत मिलती। एक तसल्ली यह भी होती कि फैसला अपने रास्ते पर चल निकला है।
    अंदर का सूरज तो डूब गया लगता है। जितना भी था। ऊपर से बाहर का अँधेरा बढ़ता जा रहा है।
    सर्दी का आलम यह हैं कि अभी दांत किटकिटाएंगे।
    तुम्हें ख़याल भी तो नहीं आया ,विंड चीटर ही लपक लिया होता। अब कहीं से कुछ मिलेगा भी नहीं।
    लेकर कौन देगा ?
    यात्रा पर निकले हैं !
    यात्रा न यात्रा। कर लो तीर्थ यात्रा !
    अच्छा , भला यह बताओ , लोग बाग़ तीर्थ यात्राओं पर क्यों निकल पड़ते हैं ?
    मन्नतें पूरी करने ! अपने विश्वासों को और पुख्ता करने ! पाप शनाप धोने ! ऊल जुलूल के मूल शूल कोने ! अंदर की यातना। रोने धोने !
    और जिनके पास ऐसा कुछ भी नहीं होता ?
    मतलब ?
    मतलब मांगने को , भिक्षाएँ लेने को , तसल्लियाँ खोजने को , पाप कीच का नहान स्नान , मुंड शुण्ड करवाने को ?
    वे तो बैठे हैं अपनी चलती चमकती ठेला ठोला ठुल्लम ठुल्ला दुकानों पर तुम्हारे जैसे ग्राहकों की इंतज़ार में। खरीद लो या बेच लो जाकर उनके पास अगर कुछ खरीदना बेचना चाहते हो। जो भी।
    असल में यह सब तब होता है जब आप यह देख लेते हैं कि अब कोई चेहरा ऐसा बचा नहीं है आपके पास जो आपको विश्वस्त कर सकता होता कि आप हैं। रौशनी , भीतर की , इतनी कमज़ोर हो जाती है कि अपना ही मैला नज़र आना बंद हो जाता है। बदबू आने लगती है। वही बताती है कि रोज़मर्रा का आपका जिस्म एक निकम्मी खुरचन के अलावा कुछ भी नहीं रहा । हड्डियों में उतरती हुई सूखी ठिठुरन। अभी कोढ़ आएगा। नयी कोई ताज़गी नहीं। मृत्यु बहुत करीब आ जाती है। आँखों में आँखें डाल कर देखती हुई। पूछती हुई , चलोगे ? या अभी और वक़्त चाहिए ?
    भुगत चुके हो कई बार।
    कैद और उड़ान !
    ये अश्क़ फिर से चले आये !

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  11. Atul Arora
    2 mins ·
    रघवीर सहाय ,
    तुम्हें रोना नहीं आता ?

    मंच के लिए कब ज़रूरी होता है कि वह हो
    पहले से हो
    हो तो हो
    लेकिन बन भी जाता है
    जब कुछ
    होने लगता है
    वे अपनी औकात दिखाते रहते हैं
    वहां घटित होते हुए
    प्रशासनिक विदूषक
    घटनाविहीन
    तंत्र
    उदासीन
    इतनी भी बेरौनक हो सकती है दुनियां
    सांस्कृतिक अचम्भा
    चमत्कृत हो जाते थे जो ज़रा ज़रा सी बात पर
    विस्फारित नयन
    अब उन्हें बड़ी से बड़ी बात झंझोड़ती नहीं
    वीरानी खौफनाक
    आलोचनाएं
    स्थगित
    प्रश्न अनुत्तरित !
    ‘हंसो ,
    हंसो , जल्दी हंसो !’
    सीखो रघुवीर सहाय से
    रघवीर सहाय ,
    तुम्हें रोना नहीं आता ?

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  12. Atul Arora
    23 hrs ·
    कविता कन्हाई हुई कान्हा के जंगलों में
    किसकी तन्हाई मुई कान्हा के जंगलों में
    शब्द उनके मोरपंख अर्थ निकले नाना
    ब्रह्म का विकार हुआ कान्हा के जंगलों में

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  13. Atul Arora
    September 1, 2015 at 9:41pm ·
    जुबान की खुराक : २ / अतुलवीर अरोड़ा
    =============
    इसी तरह बोलती होगी जब भी किसी उसके जैसे से बोलती होगी। उनकी किताबें खंगालती। उनके विचारों से उलझती। उनके वजूद से खार खाती , लड़ती। फनाह करती।
    उसे नाज़ ही बहुत है अपने होने पर और कैसे भी भक्क से कहीं भी , कभी भी, किसी को भी , दबोच लेने की अपनी आदत से बाज़ नहीं आती। फ़ख्ऱोफुख्तार !
    और यह शेखचिल्ली समय !
    इनके भीतर अंगड़ाइयां लेता हुआ।
    सब कुछ बदल दूंगा।
    वस्त्र , साजसज्जा !
    ये रंग लाल हक्का।
    तू बक तो सही , बक्का !
    कुदरत क्या चीज़ है ?
    अज़ीज़ तो अज़ीज़ है !
    जालंधरी हफ़ीज़ है !
    बड़ी आई , छाया !
    धूप नहीं धूप !
    उजाड़ तेरी काया !
    रात की है रानी !
    कहो , सहर की कहानी !
    शरीर।
    ढुलमुल !
    आत्मा।
    व्याकुल।
    दुखदायी कालम !
    बालम जी , कूल बालम !
    अजीब शूल आलम।
    मूल गया भाड़ में।
    ब्याज बना सालम !
    कोई है जो बुलेट की तरह निकला है।
    नहीं , बुलेट पर सवार।
    ३.५ हॉर्स पावर बैन !
    सिविलियन से छीन लो !
    टेररिस्ट को दे दो !
    लाश किसकी थी ?
    डी आई जी की !
    झूठे हैं अखबार !
    तुम अपना सच कहो !
    मैं समय हूँ !
    महाभारती आवाज़ !
    अरे ओ , शेखचिल्ली !
    तू खाम न ख़याल !
    उसके बदन पर सिर्फ टी.शर्ट थी !
    बाकी शरीर नंगा था।
    बीवी के साथ काफी तकरार हुई थी।
    बीवी ने शायद शराब पी राखी थी।
    नींद की गोलियां खा कर सोयी थी।
    यूनिवर्सिटी की पूरी दीवार उड़ा दो।
    झुग्गी झोंपड़पट्टी पर बम गिरा दो।
    मज़दूर , कारीगर , मेहतर या मास्टर ,साले , सबके सब हरामी !
    किसी की कोई बच्ची है जिसके नथुनों में गैस चली गयी है।
    रिश्वतखोर , भ्रष्टाचारी , ढोंगी , धोखेबाज़, लुटेरे , बलात्कारी ! देश का bhoogol badal दो अनाचारी !
    गरीब को गरीब करो ! उत्पीड़न , अमीर करो !
    5 Jayprakash Manas, Krishna Kalpit and 3 others
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    Atul Arora
    September 1, 2015 at 6:45pm ·
    जुबान की खुराक , तेरे भेजे का गूदा : अतुलवीर अरोड़ा /
    ======================
    गाली नहीं थी पर लगा जैसे किसी ने गाली दी हो !
    धंस गयी थी जाकर गोली की तरह ।
    ज़ाहिर है भेजा ही था। दूसरी किसी चीज़ में इतना गूदा कहाँ ?
    गोशे में दिल के तो खून ही खून था। वहां कहाँ टिकती ?
    हड्डियों में भी नहीं। इतनी सख्त जान कि लगी होती वहां , कहीं भी , तो भेजने वाले की छाती चीर गयी होती। बूमरैंग ! खप्पखछ !
    खोपड़ी फोड़कर भी नहीं जा सकती थी। यह तो कनपटी के पास कहीं से होती हुई दाखिल हुई थी सीधे भेजे में।
    गूदा जल उठा था। जुबान पर धुंआ ही धुंआ आकर बैठ गया था। ज़ायका सदियों पुराना। लोहे में से रिस्ता हुआ पीला खुरियाया रंगला कोई ज़ंग।
    कम से कम सौ साल पुराना। भुरभुरा ,मटियाला और लालिमा में स्याह। पृष्ठभूमि भक्क ! लपटें आग की।
    यादों का रेला पटरी से उतरा हुआ। किसी दुर्घटना की तरह। एक के ऊपर एक ढेर पड़ा हुआ। एक ढेर अलग करो। नीचे कुलबुलाते केंचुए। सौ साल पुराने। दूध में धुली हुईं मछलियाँ ही मछलियाँ। उँगलियों में लिपटी हुई मैली चिकनाहट।
    खोदने का क्षण कुछ देर के लिए स्थगित है। खिड़की नहीं खुलती न दरवाज़ा ही। दहलीज पर खड़े हुए समय को भीतर आने की अभी इजाज़त नहीं मिली।
    मृत्यु खिलखिला रही है और आँखों में उसके कीच भरा है।
    उसी ने बोला होगा जो उसे इस तरह सुनाई दे गया।
    ज़बान की खुराक , तेरे भेजे का गूदा !
    आई कि आई !
    ठहर , आई कि आई !

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  14. Atul Arora
    September 1, 2012 at 11:52pm ·
    हैं ना , हादसा तो है ! लिखते वक़्त मालूम है मुझे यह कहानी जैसी या गुज़र चुके हादसे की राम कहानी जैसी कोई चीज़ हो जाएगा .पर करूँ क्या .जिस किसी से बात होती है इसे लेकर सवाल जवाब शुरू हो जाते हैं . कुछ मज़ा भी आता है दूसरों को .हंस खेल मैं भी लेता हूँ . पर जिस वक़्त हादसा घटा था उस वक़्त और उसके बाद भी अगले दो दिन मेरी सिट्टी पिट्टी गुम ही रही है . हुआ यूं कि २९ अगस्त की रात ..जिसे आधी रात कहते हैं , शुरू होने से पहले ही वह पिछली दीवार फांद कर घर के भीतर कैसे भी चला आया होगा .संभव तो यह भी है कि पहले से ही घर के किसी कोने में छुप गया हो .बाहर , पिछवाड़े के आँगन के बाथ रूम में माचिस की कितनी ही बुझी हुई तीलियाँ मिलीं मुझे अगले दिन .एकाध टुकड़ा बीडी का भी .बारिश की वजह से जूतों पर चिपकी घास मिटटी कीचड के निशाँ . सुबह देखने को मिले .टूटे हुए गमले , इधर उधर लुडके हुए गमला स्टैंड .और एक उखाड़ कर रक्खा हुआ टूटी हुई उम्ब्रैला का लोहे का सप्पोर्ट जो नीम्बू के पेड़ को खड़ा रखने के लिए मैंने माली से लगवाया था ..शायद हमारे खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करने के लिए ..नहीं तो और फिर काहे को ..?
    पुलिस ने ये सारे सबूत नज़रंदाज़ कर दिए हैं .
    उनका कहना है कि चोरी हुई नहीं , चोर भाग गया...! अब सेवा क्या करें ..?
    सेवा तो उसने कर दी होती अगर ठोंक गया होता हमें और तब आपको कोई केस भी मिल जाता .शायद .इस वक़्त तो मैं भी क्या कहूं आपको ...आप लोग तो रात को आये नहीं मेरे बुलाने बतलाने ,चिल्लाने पर भी . न कोई गश्त ,न कोई खबर . बारिश कहाँ छोडती है घास पर सबूत .
    बंदा मेरे कमरे में था .मुझ से डेढ़ हाथ की दूरी पर . पिस्ती न भौंकी होती तो हम जागते भी नहीं और वह अपना काम कर गया होता .
    कमरे में कैसे चला आया ?
    जाली वाला दरवाज़ा फूला हुआ है बारिश की वजह से .हो सकता है कुण्डी पूरी तरह न लगी हो .. कुण्डी सही सलामत है ,टूटी तो है नहीं . !
    हो सकता है नहीं हुआ ही है . अगर वह कमरे में था जैसा आप कह रहे हैं .
    हो तो यह भी सकता है कि कुण्डी लगाना ही भूल गए हों हम .. बच्चे अन्दर बाहर तो जाते ही रहते हैं पूरी रात .
    बच्चे कौन ?
    मेरा मतलब हमारे कुत्ते !
    पीछे की सड़क कोई साधारण सड़क नहीं है . हाई वे की तरह चलती है . बड़ी बड़ी गाड़ियां ट्रक पूरी रात चलते रहते हैं इधर .
    दीवार फांदना आसान नहीं है . शीशा गढ़वा रक्खा है जगह जगह .कंटीली तारें भी हैं .. वह छिला तो ज़रूर होगा हरामी . कारीगर लगता है .
    और क्या , हवा में तैरता हुआ गया है जी . मैं उसके पीछे भागा .. लुड़का तो मैं , अपने ही घर में . वह तो ये जा वह जा ..बहुत फुर्तीला था वह . पाँव तो जैसे उसने ज़मीन पर रक्खे ही नहीं...
    तो कुत्ते ने बचा लिया आपको . यह तो मैडल के काबिल हो गया .
    मुझे समझ नहीं आया कि मैं उसकी बात पर हंसूं या क्या कहूं . इसमें तो शक ही नहीं कि पिस्ती कि वजह से ही हम इस वक़्त जिंदा हैं .
    कोई दुश्मनी ..?
    जी ?
    कोई दुश्मनी किसीसे ..?
    न, नहीं तो . दुश्मनी किस से ? बिलकुल नहीं .
    देखो जी , केस तो कोई बनता नहीं है .. आप चौकी पर एक एप्लीकेशन दे दो ..गश्त और बढ़ा देंगे .और तो कुछ कर नहीं सकते हम .
    और पुलिस चली गयी . ....
    7 Comments
    8 Kumar Ajay, Madhav Singh and 6 others
    Comments
    Rosie Mann
    Rosie Mann अतुल जी , आगे और कहानी है ना ?
    September 2, 2012 at 12:01am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora विश्वास तो सच कहूं मुझे भी नहीं हो रहा कि यह सचमुच हुआ है . पर हुआ तो है . न हुआ होता तो मैंने आधी रात को इतना गला फाड़ फाड़ कर चीखा क्यों होता . पड़ोस की औरत जो सुस्सू करने के लिए उठी हुई थी और जिसके बच्चे देर रात तक इम्तहान की तैयारी कर रहे थे ,मेरे चिल्लाने पर जवाब में क्यों चिल्लाये होते ,बल्कि उसके आदमी ने तो उसके कहे मुताबिक़ चोर या जो भी था वह , उसे भागते हुए भी देखा .. और पुलिस को उनकी बात का यकीन नहीं हुआ . मैं अभी तक उसे अपने आस पास घूमता हुआ देख रहा हूँ . मेरे मुंह पर तो दूसरा तकिया ही रख कर दबा दिया होता उसने तो मैं ख़त्म था . मेरी सांस तो वैसे ही झट फूल जाती है . मधुरिमा अलबत्ता बड़ी दिलेर नज़र आती है . मेरे चिल्लाने और पिस्ती की भौंक पर उट्ठ तो वह भी गयी थी 'क्या हो गया .' कहती हुई . फिर भी अपने कमरे से बाहर आने में कुछ देर तो लगी ही थी उसको . और उसके बाद से तो किसी सिपहसालार से कम नज़र नहीं आ रही है जब भी बात चीत में शामिल होती है यह कहती हुई कि उसे डर नहीं लगता .. भली मानस तूने देखा ही नहीं उसे अपने एकदम डेढ़ हाथ की दूरी पर यूं फर्राटे की तरह भाग निकलते हुए .यह तो शुक्र है कि उसके हाथ में हथियार नहीं था कोई .

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    5 YEARS AGO TODAY

    Atul Arora
    September 2, 2012 at 10:31pm ·
    पिछले लगभग दस साल से यहाँ रह रहा हूँ पंचकूला में लेकिन किसी पुलिस चौकी जाने की कभी ज़रुरत नहीं पड़ी . दुश्मनों को भी न पड़े ,यही दुआ करता हूँ . पर जाना पड़ा . दबाव ही इतना ज्यादा था . खैर ...
    तो, रपट जैसा कुछ एक एप्लीकेशन में लिख कर टाइप किया और सारे ज़माने से पूछता पुछवाता मैं पहुँच गया पुलिस चौकी . बड़ा वीराना था . एक पी.सी आर खड़ी थी एक तरफ लेकिन कोई बंदा परिंदा पंख नहीं फटकार रहा था . अजीब चोर जैसी पाखंडी और मुश्तंदी हवा लटकी हुई थी वातावरण में .कार आहाते में लाकर मोड़ी और फाटक के बाहर ले गया .कौन जाने साला कोई आकर टोक दे ,कार बाहर करो जी ..!तो , पहले ही एहतियात बरत लो !
    जैसे ही मैं कार से बाहर निकला एक सादी वरदी वाला आ खड़ा हुआ ...क्या बात है ? क्या काम है ..? किससे मिलना है ?वगैराह सवालों की झड़ी लगाता हुआ ..
    मैंने उस बन्दे का नाम लेकर पूछा जो घर पर पधारा था मौके की शिनाख्त करने . सादी वरदी वाला उसे नहीं जानता था . बोला , आप खां से औए हैं ... काम बताओ जी ...इस नाम के तो कई हो सकते हैं याँ..
    मैंने रुके बगैर एक ही झपाटे में पूरा वृत्तांत उगलना शुरू कर दिया ..
    जरा रुकना जी ...आपतो फ्रंटियर की तरह चढ़े जा रहे हो .. जे बात सारी तो मुंशी के बताने लैक सै.आप यों करै,उधर को आ जाओ .
    उधर किधर ,?
    उधरी..उस दरवज्जे पै जहां मुंशी लिक्ख के रक्खा सै ...!
    मैं उधर को देखा .कोई दरवाज़ा नहीं था. खुला खोल सा था दीवार में गुफा के जैसा .. मैं भीतर दाखिल हो गया .
    झपट कर सादी वरदी ने एक कुर्सी मेज़ पर अपने को आसीन कर लिया . मेज़ पर बहीखाते जैसी कई रजिस्टर पड़ी थीं ,उन्हें खोलता बंद करता हुआ ... मैंने कमरे का जायजा लिया .बैठने के लिए एक सडियल कुर्सी अपने लिए भी खींच ली ...मुझे लगा मैं 'राग दरबारी' के भीतर दाखिल हो गया हूँ ...
    3 Comments
    5 Madhav Singh, Taseer Gujral and 3 others
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA Sir I can understand the tense time u must have gone through.... as SS Sir says its good to write it n let such experiences pot of the system...yet they leave a mark deep inside which just can never be obliterated...actually please tell what happened??
    See Translation
    September 5, 2012 at 4:50am · Like
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma it was nice to speak with u n find out the details Sir ji...i think u hv taken right action in informing the cops n their visit will deter these louts!!!
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    September 5, 2012 at 5:10am · Like
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    Virendra Raj Mehndiratta
    Virendra Raj Mehndiratta police ki asliat yahi hai
    See Translation
    September 14, 2012 at 7:23am · Like

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  16. Atul Arora shared his post.
    September 2, 2016 at 3:31am ·

    Atul Arora
    September 2, 2012 at 10:00pm ·
    सुनो तो , बड़ी प्रासंगिक है
    इतनी टिकाऊ कि क्या बताऊँ
    इसकी कुछ पंक्तियाँ कंठस्थ कर लो
    हो सके तो रख लो
    जेब में रख लो
    रुक्का
    मरभुक्खा
    चीथड़ा कोई मन्नतों
    सनदों के जैसा
    बेमुरव्वत जी
    उनको न सुनाना
    जिनको न सुनना हो
    कान जिसके हों
    रसिक दर्दीले
    बस वहीं ठीक ठिकाना
    इसका बनाना ...
    बाकि सब यूं ही पठनीय तो है
    लेकिन कुछ वैसे जैसे
    शोचनीय हो
    फाड़ दो
    कहीं किसी शौचालय में डाल दो
    आज का अखबार है
    संडास रोक लेगा ..!
    मार दुर्गन्ध ऐसी !
    शहर का शहर ही लपेट में आ जाए ...! हरि ॐ तत्सत ...!

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  17. ज़ुबान की खुराक , तेरे भेजे का गूदा : ५ / अतुलवीर अरोड़ा
    =========================
    दादी तेरी सिक्ख ! और तू बोदा बामन ! कैसे , भला कैसे ?
    वैसे ही जैसे , नाम तेरा सिंघ , सरूप जी इक़बाल !
    रोज़ चलाये कैंची , कटवाए जाके बाल !
    पूछो जी पूछो कैसे , हुआ ये मेरा हाल !
    रीना है मीरा पंडित , मैं कमला धालीवाल !
    इज़ इट फाइनल ?
    नो , सेमी फाइनल !
    अंग्रेजी की औलाद , वैसे गुरमुख लाल गोपाल !
    तो , यह है बहस। क्या बात है ! तुम लोग वाकई इंटेलेक्चुअल हो !
    ओके , आई शट अप !
    नो , क्लोज़ योरसेल्फ एंड गेट फक्ड अप !
    गांठें ही गांठें।
    आइसोलेट देम !
    छिपकर बीड़ी पीते हैं ये
    सिगरेट और शराब !
    चिकन मसाला चांप कलेजी
    मिले न मिले कबाब !
    यार तू अकेली जान ! जौंगा खरीद ले।
    ताकि तू उसे ले उड़े !
    डेविल ! आई टेल यू ! यू आर अ डेविल !
    अच्छा , हूगल कहाँ है आजकल ?
    हूगल कौन , जौड़ा ? झल्ला हो गया है ! दिमाग चल गया है उसका !
    भिंडरावाले काण्ड में उसपर हमला हुआ था ?
    ज़रूर हुआ होगा। हीरो बन गया था। पशे से तो मुंहफट पहले से था। बाद में खूब अंट शंट बकता घूमता रहा कई महीने। ये नौकरी छोड़ , वह नौकरी तबाह।
    बेकार हो गया। कोई उसकी स्टोरी कहीं छपती ही नहीं थी।
    है कहाँ वह ?
    यहीं कहीं होगा । बेचारा लगने लगा है। शूट कर दूंगा ,सालो , शूट कर दूंगा , कहता घूमता हुआ !
    बड़ा चालाक होना पड़ता है जी। भावुकताएं काम नहीं आतीं।
    तर्कबुद्धि चट्टान।
    फिसलना चाहो जब तो कहीं भी फिसल जाओ।
    ओये , वड्डे वड्डे सिख इंटेलेक्चुलस खालिस्तान दे पक्ख विच हैगे !
    छड्डो जी की पये करदे हो !
    नाम जप है नईं , ना कोई वंड छक्क , किरत तां वेखो जी ज़ाहिर ही है !
    मुखबिर दोनां धिरां दे !
    मिलिटेन्सी वर्गला गयी !
    पुलिस भुन्न के खा गयी !

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  18. Atul Arora
    September 2, 2015 at 7:12pm ·
    ज़ुबान की खुराक :तेरे भेजे का गूदा : ४ / अतुलवीर अरोड़ा
    ========================
    लौन्दा लुक्क प्राण !
    बिजली गायब !
    लटके हुए हाथ !
    फटी हुई एक चीख सड़क पर से गुज़री है , खुद को सुनाती हुई।
    एक देश दूसरे किसी देश के जबड़े में है। जैसे किसी इमारत की हाल ही में की गयी झूठी और मक्कार दिखावटी मरम्मतें गिर रही हों। पिचका हुआ पिचकू ! खींसें निपोरता हुआ कभी अपने सारे के सारे पीले दांत दिखाने लगता है।
    करोड़ों पीले दांत।
    सोने के सींगों पर पीतल का चमका ! उसे भी देखो !
    तुम्हारे मकान की हालत अच्छी नहीं है।
    इधर देखो , आलिशान। यहां बिजली है। रंग ही रंग !
    और वो सड़क पार नीले पीले झुग्ग ! सुस्सू पॉटी कीच में लुत्थ पुत्थ देश ! देश का भविष्य !
    बारिश की वजह से घास ही घास अपने कंधे उचका रही है। अभी जंगल आएगा। तुम्हारे आँगन तक। अपने पंजे बढाता हुआ। पेड़ पौधे अचानक चली आई ताती धूप में जलते बुझते चिलकेंगे।
    अरे , यह तो चांदनी है !
    चांदी की बौछार !
    चांदनी धूप !
    एक कोई ज़िन्दगी ख़त्म होती है और दूसरी शुरू ! तीसरी के बीज अंकुरित भी नहीं हुए और चौथी चली आई है। पसीना और प्यार। रेत के आंसू।आँखों में कांटे। कल्लों में धंसे हुए शीशे की किरचें। गले में उगता हुआ कैंसर का फोड़ा।
    भाषा को गंगा जल में एक बार डुबकी लगा लेने दो। बहुत पीक रिसती है। धो देगी मैल। इसके घोड़ों की काठी जीन दुरुस्त करो जी। उखड़ी हुई नाल ठोंको , फिट करो जी।
    पहले ही सपाटे में दौड़ जाएगा। मीलों के मील। सवार नीचे आ गिरे। परवाह नहीं कोई।
    वी आर आउट टू डेस्ट्रॉय आवरसेल्व्ज़ !
    थोड़ी देर बिस्मिल्ला खां की शहनाई सुनो ! शराब को भी नीचे कहीं उतर जाने दो। थकान और अवसाद को दूर करने का दूसरा कोई इलाज अभी मेरे पास नहीं है।
    मिसेज़ गांधी यूं ही कोई हरेक मूवमेंट को थका देने की हद तक कमज़ोर नहीं कर देतीं थीं। सियासत में अपनी ताकत इसी तरह बनायी जाती है। तुम्हें नहीं पता भिंडरावाले को उसके जत्थों समेत ख़त्म करने के लिए कमांडो स्क्वैड तैयार खड़ा है।
    यह बीच ही में सहनाई और बीच ही में भिंडर भिंडरां। । कुछ समझ नहीं आई।
    इसी को तो कहते हैं लेखन विलक्षण !

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  19. Atul Arora
    September 2, 2015 at 6:06am ·
    जुबांन की खुराक : तेरे भेजे का गूदा :३ / अतुलवीर अरोड़ा
    =======================
    समय है कि कोई विदूषक !
    कैसी बेपर की उड़ान !
    नहीं , मैं चित्र बनाता हूँ और संवाद खींचे चले आते हैं। घटनाओं और दुर्घटनाओं की तरफ जाते हुए। उनकी भाषा लिखते हुए। वह अचानक इतिहास बनाने लगती है। वर्तमान भी होती है वह लेकिन रफ़्तार में तेज़। पल पल विलुप्त। नज़र में है। नज़र से ओझल भी। अपना आप छिन्न विच्छिन्न।
    देखा , रुक गयी कथा !
    लेकिन कविता चल रही है।
    मृत्यु की आवाज़ सुनो , सुनते रहो , तो यही होता है। जीवन उद्वेलित।
    वेगवान घोड़े ! कल्पना के अयाल। सर्पिल हवाएं। खण्डों की टापें। बजती हुई तलवार , तलवार के साथ।
    यही ज़िन्दगी है। जितना छलती है उतना ही सम्मोहन बना रहता है उसका।
    सुनते नहीं हो ?
    मैं मर क्यों नहीं जाता ?
    जीती जागती जाती , मैं मर क्यों नहीं जाती ?
    लो , मैं मर मिटा ! मार ही डालो मुझे !
    तुम तो ले डूबोगे !
    अब मैं डूब मरूंगी , साथ , तुम्हारे साथ ! हाय , मुझे बचा लो ! मैं मारना नहीं चाहती !
    चाहता , नहीं चाहता , मैं मरना नहीं चाहता !
    मृत्यु, अरी मृत्यु होने देखा ही क्या ?
    कातिल जी , मेरे कातिल ! मेरा शिकार कर लो ! मैं तुम्हारे बगैर जिक्र क्या करूंगा /गी। सा रे गा मा पा धा नी !
    खोजो , खोजो इसके अर्थ और फिर करते रहो अनर्थ !
    भंजक ! मूर्ति भंजक !
    नाश हो तुम्हारा।
    सर्वनाश हो !
    जैसे कोई अजदहा, अजगरी कोई श्वास ! एक लम्बी खींच ! मीलों लम्बी खींच ! जबड़े में से से होता हुआ साबुत उसके पेट में। उगलेगा तो आएंगे , बाहर क्यों नहीं आएंगे ? भीतर की दुनिया का खुलासा लेकर आएंगे ! मृत्यु लौटाएगी तुम्हें जीवन की तरफ !
    दंश अंश कल्पना।
    अंश दंश वास्तव !

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    Atul Arora
    Atul Arora हादसे के अगले दिन सुबह जब पुलिस कंट्रोल रूम से आये हुए बन्दे अपनी तसल्ली करते हुए चले गए यह कह कर अपनी ठेठ हरयाणवी में कि 'चोर तो बाघ लिया और चोरी हुई नीं ...आप सेवा बताओ म्हारे लिए '... मुझे अपने लोगों के बीच लौटना पड़ा हिदायतों के लिए ..ख़ास तौर पर तब जब मैं इसकी बाबत किसी से भी कोई बात नहीं करना चाहता था . पड़ोस में इधर उधर बात तो फैलनी ही थी .आखिर पुलिस आई थी मेरे घर .भले ही मेरे बार बार बुलाने के बाद . मुझे पुलिस पर ही तरस आ रहा था . घटना घटने के लगभग १० घंटे के बाद अगर पुलिस सुराग ढूंढें बरसात के दिन तो क्या तो हालत होगी उसकी और क्या हादसे की हकीकत की ..!हम लोग पूरी रात सो नहीं पाए थे और ढेरों काम अधूरे पड़े थे . बढई को बुलाया हुआ था .दरवाज़े ठीक करवाने के लिए ..कुंडे कुण्डियाँ दुरुस्त होने थे .जहां कहीं तालों की ज़रुरत महसूस होने लगी थी यकायक . इस बीच यह दबाव पड़ रहा था हर तरफ से कि जो हुआ है उसकी लिखित रपट पुलिस के पास दे देनी चाहिए . तो , वह रपट भी तैयार की गयी ...फिर भी अगला दिन कुछ इसी ऊभ चूभ में बीत गया कि छोडो यार .. पुलिस ने कुछ करना तो है नहीं ...मखौल अलग बन गया कि देखो जी ,इनके यहाँ चोर आया ..न्योता इन्होने खुद दिया दरवाज़े खुले छोड़ कर... ये लोग सोते रहे ,इनको पता भी नहीं चला ..कुत्ते हुश्यार निकले ..उन्होंने बचा लिया नहीं तो इनका तो हो गया था काम ..!
    बड़ी उहापोह के बाद मधुरिमा की एक सहेली सीमा जी के कहने पर और अपने बड़े भाई सुरेश के एक पुलिस सुप्रिन्तेंदेंत मित्र की हिदायत पर मैं सेक्टर 7 की पुलिस चौकी पर लिखित रपट ले कर पहुंचा .मेरी छोटी बहन अंजू और जीजा कर्नल महेश चड्ढा की सलाह भी यही थी की रपट तो दे दी जानी चाहिए ,आगे पुलिस की मर्ज़ी . वो तो भुक्त भोगी थे ..उनके यहाँ से तो पिछले साल चोरी भी हुई थी और उनकी अनुपस्थिति में ताले कुण्डियाँ खिड़कियाँ जाली ग्रिल सब तोड़ के बड़े आराम से कई घंटे खूब खाना हजम करने के साथ तफरीह करते हुए हुई थी और आज तक पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला था चोर का . फोरेंसिक लोगों की तुरत फुरत तहकीकात और शिकार सूंघी कुत्तों की हुशियारी के बावजूद ....

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  21. Atul Arora
    September 2, 2012 ·
    दरअसल जब पिस्ती की भौंक मुझे सुनाई दी अपने उनींदे में तो दो एक लम्हे के लिए तो मैं कुछ समझ ही नहीं पाया कि हुआ क्या है . बच्चों के बीच कोई झगडा तो नहीं हो गया ! पिस्ती और अम्मू एकदम या तो मेरे बिस्तर पर होती हैं या नीचे ही बहुत पास . इतनी कि जाग रहा होऊं तो उनके खर्राटे , अगर वो ले रही हैं तो , साफ़ सुनाई देते हैं . कभी कभी तो उनकी साँसों की गर्मी तक मेरे कानों ,गालों और पैरों या पीठ पर साफ़ महसूस होती है .कभी नथुनों में घुसती है और कभी किसी की ठुड्डी छाती पर रक्खी रहती है . यह मुन्हासिर इस बात पर करता है कि दोनों के बीच मित्रता का क्षण कैसा है . वे हम दोनों में से किसी के भी साथ अपनी अपनी जगह के लिए उलझ पड़ें किसी वक़्त तो किसी की भी खैर नहीं होती .हमारे समेत . उस वक़्त भी पहले पहले तो मुझे यही लगा कि उनके बीच झगडा हुआ है लेकिन अम्मू कहीं नज़र नहीं आई . वह पलंग के नीचे थी ,यह मुझे बाद में पता चला. जादू मधुरिमा के कमरे में हो सकता था . उसकी भौंक मैंने नहीं सुनी . उसकी तबीयत ढीली थी कुछ दिनों से .दवा के नशे या प्रभाव में सोया भी रह गया हो सकता है वह . कुछ दिन पहले लगभग मरने की हालत में पहुँच गया था और मधुरिमा का कहना है कि उसे किसी ने ज़रूर कुछ गलत खिलाया है या उसने कुछ गलत खा लिया है . तब मैंने इस बात को झटक दिया था लेकिन अब यह भी एक खटके की तरह ठहर सी गयी है मेरे दिमाग में .अभी वह पूरी तरह से ठीक नहीं है . उसकी चमड़ी में जगह जगह छीलन सी साफ़ नज़र आती है . जाँघों में कुछ ज्यादा . ..
    तो उस वक़्त तो सिर्फ पिस्ती ही थी जो भनक भौंक क्र बेहाल हो रही थी . मैं उछाला और बिस्तर से लगभग पलटी मार कर उतरा और जैसे ही पिस्ती की तरफ बढ़ा तो पिस्ती की हालत देख कर हैरान रह गया . वह पागलों की तरह गुर्र्राती भौंकती जा रही थी लोब्बी की दिशा में . एक कदम आगे .एक कदम पीछे अपने को खींचती हुई सी . मैं उसे पुचकारने की हालत में भी नहीं था क्योंकि ऐसी हालत में वह मुझे भी काट सकती थी . मैं उससे परे पलंग के दूसरे छोर पर था जब बायें की तरफ से कोई झपटा .यह कोई आदमी था मुझ से कद में लम्बा और लगभग ढंका हुआ सा . दरवाज़ा उसने फटका कर खोला और अँधेरे में हवा हो गया . मैं उसके पीछे लगभग लुडकता हुआ चोर चोर चिल्लाता हुआ भागा . बाहर झूले के पास कुर्सियों के बीच ही मैं ठिठक गया . शायद इस ख़याल से कि कोई और भी हो सकता है उसके साथ . लेकिन मेरे रुकने के क्षण में ही वह गायब हो गया .मैंने सिर्फ आम के पेड़ के पत्तों की झर्झाराहट ही सुनी . उसके बाद पड़ोस में जो चौकीदार रहता है ,उसकी औरत की आवाज़ ,फिर उनके बच्चों की आवाज़ मेरी आवाज़ में एक ही राग मिलाती हुई ...चोर ..पकड़ो . ...चोर .. ! मैं सकते में था . मधुरिमा के आने तक . उसके बाद तो कई खुलासे होते रहे .. मसलन , बत्ती उसी ने बंद की होगी बाहर की . दरवाज़ा खुला कैसे रह गया कुण्डी आखिर किसने खुली छोड़ दी ?..कब ?.. इतनी ऊंची दीवार कैसे फांद ली उसने ?..माना कि अन्दर आना कुछ आसान रहा होगा उसके लिए पर वापिस फलांग जाना तो आसान नहीं था ..लेकिन वह फांद गया था .. चोटें तो ज़रूर लगी होंगी उसको .. और यह दुःख क्या कम रहा होगा उसे कि कितनी शर्मनाक बात है उसके लिए कि न तो कुछ चुरा पाया न हमें ही ठिकाने लगाने में कामयाब हुआ वह .. अब सोचता हूँ , मान लो हम उसकी पकड़ में होते तो हमसे क्या कुछ नहीं करवा सकता था वह और न करते हम तो क्या कुछ नहीं कर सकता था वह .पर मधुरिमा कहती है , बड़ा वीयर्ड हूँ मैं . काली जुबान का मालिक . ...उसके बाद तो अभी तक लोग बाग़ आ ही रहे हैं ...किस्सों और तमाशबीनी के शौक़ीन .. वीमन वेल्फेयेर की लेडीज़ ...पंचकुला वेलफेयर सोसायटी के पहरुओं का तो कहना ही क्या ..सेकुरिटी के लिए गेट लगवाने वाले चुप हैं ..गार्ड तो नोहेरिया नर्सिंग होम पर तैनात हैं ही .. बाकी फाटक तमाम रात बंद रहते हैं ...फिर भी इतनी हिम्मत कैसे कर गया वह .. ?विश्ववास नहीं होता ... ! कैसे ? आखिर क्यों आया था वह और आधी रात के पहले ही ...? क्यों ?

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  22. Atul Arora
    September 3, 2015 at 9:19pm •
    जुबान की खुराक : तेरे भेजे का गूदा :६ / अतुलवीर अरोड़ा
    =========================
    मार्च , १९८४ तक तो बहुत साफ़ हो गयी थीं कुछ बातें !
    साधारण तौर पर देखा जाए तो हिन्दुओं और सिखों के बीच आपसी वैर विरोध कहीं भी देखने में नहीं आता था। फिर बाद में ये '८४ के दंगे कैसे हो गए ?
    वह किस्सा बिलकुल अलग है , उसे बीच में मत घसीटो।
    बैंक तो तमाम लूटे जा रहे थे उन दिनों।
    सिर्फ सरकारी !
    मतलब ?
    एक उदाहरण भी जुटा दो अगर तो मान जाऊं मैं कि जो भी और जितनी भी लूट पाट हो रही थी वह भीतरी लाग लपेट और मिली भगत का हिस्सा नहीं थी।
    थी, बिलकुल थी ! नहीं तो क्या वजह है कि किसी बड़े हिन्दू बनिए या सेठ को तब तक पूरे पंजाब में कहीं भी लूटा नहीं गया था।
    मानो चाहे न मानो , हिन्दू और सिख दरअसल आधारभूत स्तर पर ज़्यादा धार्मिक नहीं हैं , न उनमें कोई ख़ास कट्टरताएं पायी जाती हैं। यह तो पंजाबी की ख़ास पहचान है , वन अप होने की ! हर चीज़ में ,वन अप !
    और नहीं तो दिखावा ! बढ़ चढ़ कर ! जगराते हों या कीर्तन , सब दिखावा।
    दोनों जगह के चढ़ावे में इनकी फितरत को देख लो ! यह धर्म के प्रति आस्था में से जन्म नहीं लेता !
    मिसेज़ गांधी यय जानती थी। और वही क्यों , यह तो तमाम तथाकथित कटटरपंथी भी जानते हैं। उन्हें भाड़े के टट्टुओं की तलाश इसीलिए रहती है। किसी साधारण खूनी या पुलिस की मार खा खा कर सख्त जान हो गए किसी भी अपराधी का व्यवहार देख लो , पता चल जाएगा। ऐसे लोग राजनीतिक भूख के शिकार हो जाएँ तो किसी भी हद ता जा सकते हैं। पहचान खड़ी करने की खातिर!
    यही हो भी रहा था। चालू किस्म के लुटेरे और खुनी सब मिलिटेन्सी की भेंट चढ़ गए थे। धक्के पर धक्का ! दबिश पुलिस की और तपिश भी उन्हीं के हिस्से में थी। जो कुछ आगज़नी और खून बाहर उछल रहा था , उसमें दरिंदगी कहीं उधर ही से आ रही थी। बाकी सब पॉलिटिकल माइलेज गेन करने के लिए था या पावर गेम। जिस किसी को भी हासिल हो जाए। इनका कोई solid base tha ही नहीं। नक्सलियों की असफलताओं का कारण भी यही था। फिर खालिस्तान हकीकत कैसे बन सकता था ?
    लेकिन हत्याएं तो हो रही थीं और तादाद बढ़ रही थी। गुपचुप सी खेला खेली भी थी। एन्काउंटरज़ , झूठे सच्चे ! फेडरेशन के छात्र तबके के भीतर कोई गहरी फाँस अड़ गयी होती या कटटरपंथी हिन्दू ताकतें अपने खेल शुरू कर देतीं तो कुछ भी विस्फोटक हो सकता था। सिविल वार तक ! लेकिन कुछ कायरताएं सभी जगह होती हैं। उन्हीं के श्राप होते हैं जो बिच्छुओं की तरह छिपे रहते हैं गार्ड के संकरे कोनों में और वहां हाथ पद जाए अनजाने में तो काट खाते हैं। ऐसा विष लम्बे समय तक समय को ही काफी उदास कर देता है। नरक के देवदूत अपनी नीलवर्णी रंगतों में खिले खाली ज़हरीली प्रार्थनाओं के साथ हरी भरी को विषाक्त कर देते हैं।

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  23. Atul Arora
    September 3, 2012 at 12:01am •
    इतने सालों बाद भी श्रीलाल शुक्ल की लिखी हुई चीज़ों में से उभरती हुईं तसवीरें ज़रा भी नहीं बदली हैं , मैं यह देख कर हैरान था . उसमें तो ज़िन्दगी एक गाँव की थी जो शहर जाने वाली सड़क के साथ जुड़ा हुआ था पर यह चौकी तो पेरिस बनते हुए शहर के वी आई .पी इलाके में थी .मटियाली सी पीली उजड़ी हुई इमारत ,सीलन , पसीने की दुर्गन्ध से अटे पड़े कच्छे बनियानों का हुजूम.दीवार के आधे अधूरे से माथे पर टंगे हुए 'बैरिक' शब्द के अन्दर किल्लियों पर तागा हुआ तिरंगे झंडों की मुर्दानगी लिए झाँक रहा था जैसे पान की पीक से गुबराई गदराई हुई अपनी तस्वीर खिंचाव कर ही दम लेगा . अभी मैं अपने वृत्तांत का आधा भी नहीं कह पाया था कि दो एक सनीचर जैसे पात्र अपनी भूमिका दर्ज करने मुंशी के पास आ खड़े हुए थे . किसी चोर के पकडे जाने की खुस्फुसाहतें भी थीं लेकिन बड़े थके हुए दीख रहे थे लाठी वाले जो बैरक के अंदर बाहर जाने शुरू हो गए थे .. पूछने पर पता चला की सारी रात दस लोगों ने मिल कर उस चोर की पकड़ धकड़ की थी और चाय का एक कप तक उन्हें हासिल नहीं हुआ था अब तक . दोपहर बाद तीन साड़े तीन का वक़्त था और मुझे चौकी इंचार्ज के कमरे में भेज दिया गया था .
    यहाँ का किस्सा कुछ अलग नहीं था पहले वाले से . फर्क सिर्फ यह था कि मैं अब ज़रा साफ़ सी कुर्सी पर बैठा था और मेरी बगल में दो आतंकवादी दिखने वाले बड़े बड़े शरीर थे धवल कुरते पायजामों में जो मुझे ऐसे देख रहे थे कि जैसे मैं कोई प्रवासी परिंदा हूँ और भूले भटके उनके बीच आ पहुंचा हूँ . उनका बस चलता तो मुझे भूनकर खा जाते . इंचार्ज देखने में भी इंचार्ज नहीं लगता था .एक खाली ओहदा ..एक मजबूर सा रुतबा .. एक ज़रा सी मुस्कराहट और यकायक उजाड़ .
    पूरा वृत्तान्त फिर से सुनाया गया .मुझे लगा कि एक बार और सुनाना पड़ गया मुझे तो मैं भाग लूँगा कसी बयाबान की तरफ .
    बातें वही . वही दोहराव ... चोर बाघ गया ...चोरी हुई नीं ..रपट काहे की ...?...मैंने कहा ,मेरी एप्लीकेशन रक्ख लीजिये आपके रेकोर्ड में .. ...
    आपकी मर्ज़ी , हम तो सेवा में हैं ... बच गए हो जी आप . आपके कुत्ते भी ,जिन्हों बचा लिया आपको ...बगवान का लाख लाख शुकर कहो . विलायती ही होंगे .. ऐसा करो जी , एक कोई देसी कुत्ता भी रक्ख लो म्हारे जैसा आपकी स्कोरती के लिए
    ओये मुंशी (हौले से ..) भैन के .. ओ तू ले ले इनकी ... ( थोडा रुक कर )रपट .. ! लेता क्यूं नीं ... इब जाओ जी , दर्ज करवलो ..!
    रपट न हुई कोई पुरस्कार था ... मैं मुहर लगवा कर अपनी कॉपी संभालता हुआ ऐसे बाहर आया जैसे व्यास सम्मान ले कर लौट रहा होऊं ...!

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  24. September 3, 2011 at 8:44pm •
    baazaar ka samay ...
    वह मेरी हडबडाहट ही थी जो मैंने सुनी अपने उगने के वक़्त ...
    मेरे जैसे तमाम दूसरे लोगों की हालांकि कहीं भी कमी नहीं थी ...
    पर उसके तो कान थे और न ही आँख ...
    आस पास भीड़ कहीं थमती नहीं थी ...
    वह मेरी हडबडाहट ही थी जो दिख गयी मुझे ठगे जाने के वक़्त ...
    संवेदनहीन
    जब इतने करीब
    भला इतने करीब से वह मेरे गुज़र गया
    हाशिये पर भी जैसे मैं उसके लिए कहीं अब जीवित नहीं था ... ...
    मेरे जैसे दूसरे तमाम लोगों की हालांकि कहीं भी कमी नहीं थी ...
    एक दिन वह मुझे बाज़ार में मिला ...ज़रा नहीं हिला
    मदमत्त पूर्ववत्त
    बढ चढ़ कर हट्ठीयाया
    जैसे खुद पर अनुरक्त
    वह अपने पूरे यौवन पर था ..चीजें छप्पन भोग उसके आलोक में दमक रहे थे
    मेरी पहुँच से बाहर
    मैं अपनी जेब की रिक्ति में उलझा हुआ अभी महज़ आदमी बने रहने के रिझाव में था
    ग़ुरबत से अपने टकराव में भी था
    आस्तीन का सांप बन कर मुझसे लिपट गया और यकायक मुझे मेरे पूरे घर खेत समेत फूँक मार फूत्कार ज़हरीला डस गया...
    15 Comments
    8Principal Bhupinder, Taseer Gujral and 6 others
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    Principal Bhupinder harbarhat hi ek nasoor ban gayee jaldi jaldi laldi
    September 3, 2011 at 8:49pm •
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    1

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    Atul Arora बैंकों के खातों में से
    गुप्त किन्हीं रास्तो से
    हुंडियों की भीड़ में से बेनाम निकला
    हवाला का निवाला
    गली मोहल्ले शहर देश विदेश में घटाटोप सरसराता
    पूरे भूमंडल की वित्त व्यवस्था की खुराक हुंकारता फन तन गया ... लज़ीज़ किसका अज़ीज़ कहीं डाकू बन गया ...
    ठन ठन गोपाल डसे जाने वाले बेहाल हालांकि मुझ जैसे दूसरे तमाम लोगों की कहीं दूर दराज़ तक कमी नहीं थी ... पर कैसे है न गुम सुम चलते ही रहते है.. भीड़ों की भीड़ में रोजाना जद्दोजहद में होश नहीं रोष नहीं संतोष का कोई तिनका हवा ही में उड़ता उडाता इन तक आता है ..बातचीत गुलगपाड़ा नाच टाप फ़िल्मी सा लगातार महफूज़ बना रखता है ..वक़्त कब बदलता है माप ताप फिक्रें श्राप सारे हिस्से के उत्सव बन जाते हैं अन्ना जैसा कोई जब गुस्से में आता है ...

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  25. Atul Arora
    September 3, 2010 at 9:02pm •
    चढ़ने के लिए जो बनायी जाती हैं
    वो सीढियां कहीं पहुंचाती तो हों
    कैसी ये सीढियां हैं
    कि चढे जा रहे हैं हम
    इमारतें गायब हैं
    महल सारे ढह गये ...

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  26. Atul Arora
    1 min ·
    आईने बाज़ार में हैं
    आ गए बहुत
    बिम्ब लेकिन
    एक भी
    सच्चा नहीं मिलता।
    मन की बातें
    मन में ही
    रह जाती हैं
    अक्सर
    आईना बाज़ार का
    अच्छा नहीं लगता।

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  27. Atul Arora
    September 4, 2016 at 9:58pm ·
    छुट्टियां , हाय छुट्टियां
    मनाई जानी चाहियें।
    मनाने के लिए
    छुट्टियों को
    चले क्यों नहीं ज़ाते
    छुट्टियों के पास
    दो जन के बीच
    जिसे उत्सव की तरह
    हमेशा से मनाया जाना
    शेष रहेगा
    चोर किन्हीं रास्तों पर
    ठिठका खडा रहेगा
    हरापन
    हारा
    हरा
    इंतज़ार में
    खुलेंगी किताबें
    बार बार पढ़ी हुईं
    फिर नए सिरे से पढ़े
    जाने के लिए
    बंद
    इस
    हाराकरी के
    मौसम में।

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  28. YEARS AGO TODAY

    Atul Arora
    September 4, 2015 at 7:02pm ·
    ज़ुबान की खुराक : तेरे भेजे का गूदा :७ / अतुलवीर अरोड़ा
    =========================
    जैसे ही वह अपनी बात मंच से कह कर उतरा , तालियों में गर्क हो गया। फिर उसे लगा , वह फ़िज़ूल किस्म की बहस जगा आया है।भिड़ों के छत्ते में हाथ डाल आया है। अब्सोल्यूट्ली इनकरेक्ट। स्ट्रैटिजिकली बूमरैंगिंग ! पॉलिटिकल एरर।
    बट देन। समवन हैज़ टु स्पिल और स्पेल व्हाट इज़ व्हाट !
    बरामदे में से गुज़रते हुए किसी ने उसे धर लिया।
    न तून रूस लैणा कि पाकिस्तान ! या फेर माँ दी तेरी खोल के धकिये तैनू अंदर !
    इस आदमी से उलझना फ़िज़ूल है।
    हवा में उसकी ऊँगली ऐसे उठी हुई थी जैसे पिस्तौल चला देगा अभी।
    उस आदमी ने उसके गिर्द दो तीन चक्कर लगाए और फिर गायब हो गया। बरामदे में उसकी फूहड़ हंसी गूँज रही थी।
    विवादास्पद मामले !
    कमरे में बैठा है। सुस्त और उदास। अपमानित और पराजित और बौद्धिक ज़नख़ा !
    सिगरेट जलाओ।
    पतलून उतारो।
    जूते अपने ही सर पर मारो !
    इस घर में सब तरफ जाले ही जाले हैं।
    वैसे ही दिमाग में भी।
    स्वर्ण मंदिर।
    उजड़ गया।
    ऐश ट्रे में राख ही राख पड़ी है।
    दीवारों के रंग जोगिया हुआ करते थे कभी। नीचे का मटमैला हरा कहीं पीला उभर आया है।
    पैर जकड़े हैं।
    आत्मदया और आत्मप्रताड़ना अच्छी चीज़ नहीं।
    कुछ होता क्यों नहीं ?
    जो हो रहा है वह होना है क्या ?
    करो , कुछ करो !
    साहित्य , कला , ज़िन्दगी , थू !
    कोई भनचो भैंचो करता बाहर घूम रहा है।
    जेब बिलकुल खाली है।
    नेपथ्य में अजीब किस्म की आवाज़ें हैं। लगता है पड़ोस में कोई ब्लू फिल्म चल रही है।
    टी वी टुट्ट टुट्ट !
    सुमित्रानंदन पंत की किसी कविता में से आती हुई चिड़िया की आवाज़।
    टी वी , टूथपेस्ट , टूथब्रश , ब्लेड
    रेज़र , चमचे , सैलरी , ग्रेड
    गैस सिलेंडर , मिटटी , तेल
    रोटी तोड़ो , जाओ जेल !
    खोल यार , ओल्ड मोंक !
    नईं ते जाके कुत्ता भौंक !
    देखा , ऐसे निचुड़ता है भेजा !
    ऐनू भूणो ते प्याज टमाटर के साथ खाओ !
    लेखन विलक्षण !

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  29. Atul Arora
    September 4, 2011 at 10:40pm ·
    छीन लो...!
    अपना तो अपना
    दूसरों के हिस्से का भी
    छीन लो ...!!
    सभ्यता का नया पाठ है ...
    ठाठ भी समझो
    इसी में से आएगा !
    देख नहीं रहे हो
    लूट खसोट में मज़े ही मज़े हैं
    मुफ्त की प्रतिष्ठा !
    प्रवंचितों के हिस्से
    विष्ठा ही विष्ठा ...!!

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  30. Atul Arora
    September 4, 2016 at 9:38pm ·
    दृश्य में है वह
    भला फिर कैसे देखे दृश्य

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  31. Atul Arora
    September 4, 2010 at 7:46pm ·
    पक्षी की चोंच में से देखा मैने तपता हुआ चुटकी आसमान
    भटकी हुई एक तितली उड़ उड़ कर रंगती रही भूरी चट्टान

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  32. Atul Arora
    September 4, 2010 at 6:43am ·
    Jahaaz doob raha hai aur hum langar bachaaney mein lagey hain...
    2 Comments
    6 विनोद शर्मा, Manoj Patel and 4 others
    Comments
    Chandan Singh Bhati
    Chandan Singh Bhati yeh to dunia ki reet hai pani ki jaroorat par hi kunva khodabe ka prayash hota hai
    September 4, 2010 at 7:16am · Like
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar Mein to kaayal hoon aapaki "imagery"ka, -bimb-vidhaan kaa. ek "cinematic" prabhaav bhi paida kar deti hain aapaki panktiyaan! Maashaa-allah!

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  34. Atul Arora
    September 6, 2015 at 9:59pm ·
    ज़ुबान की खुराक : तेरे भेजे का गूदा : ८ / अतुलवीर आरोडा
    ========================
    विलक्षणताओं का एक हिस्सा इतना असाधारण था कि उसमें इन्शुरन्स के कागज़ात , बैंकों के खाते , सैलरी स्लिप्स ,रोज़ाना खर्चे का हिसाब , प्रॉविडेंट फंड , सर्विस बुक , पास बुक , चेकबुक , रसीदें ,दफ्तरी चिट्ठियां , पर्सनल कार्ड्स , हेल्थ सेंटर का एंटाइटलमेंट रेकॉर्ड , , पेन्सिल-पेन स्टैंड , प्रेम पत्र , तसवीरें , अल्बम्स , , नाटकों के ब्रोशर्स ,रिव्यूज़ , , कविताओं की डायरियां , लिखा हुआ कितना कुछ , कितना कुछ अधूरा , छपा हुआ , अणछपा , किताबें , पांडुलिपियां , लिफ़ाफ़े ही लिफ़ाफ़े और उनके भीतर पता नहीं क्या कुछ , छोड़ी हुई नौकरियों की फटी पुरानी टाइप्ड या फिर हाथ से लिखी हुई मैली कागज़ी लिखतें , घरेलू चिट्ठियां जो फट नहीं पाईं या फाड़ी नहीं जा सकतीं , जो गुम नहीं होतीं और फेंकी भी नहीं जातीं , रह रह कर सामान उलटते पलटते सामने आ जाती हैं , वक़्त बर्बादी के तमाम सबूत , ड्रॉवर्ज़ में से निकल कर छन् से गिरते हुए पुराने नए सिक्के , मुड़े तुडे पुराने नोट , कील , पेच , पिन , सेफ्टी पिंस , मरे हुए सैल्स , रबर्स , इंचीटेप , कंघियां .... सब कुछ ठूंस घुस जाता था।
    आप पस्त हालत में बिस्तर से नीचे लटके हुए है और कोई आपके माथे पर हाथ फेरता है।
    रसोई की गंध से पहचान मिलती है कि बालों में जो उंगलियां चल रही थीं वे उसकी थीं जिसके चीरे हुए पेट से निकल कर आप कभी बाहर आये थे और अब उसे भूल चुके हैं अपनी रोज़मर्रा लड़ाइयों के गड्डमड्ड संसार में।
    नाखून बढ़ गए हैं तुम्हारे हाथों पैरों के।
    जुराबें कब से नहीं धुली हैं !
    जूतों में पड़ी पड़ी पापड़ा रही हैं।
    पैरों से मरे हुए परिंदे की बू उठ रही है।
    लेखन विलक्षण !

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    2 YEARS AGO TODAY

    Atul Arora
    September 7, 2015 at 9:44pm ·
    ज़ुबान की खुराक : तेरे भेजे का गूदा : ९ / अतुलवीर अरोड़ा
    ===========================
    गाली जहां जा कर अटक गयी थी , वह कोई बहुत तंदरुस्त जगह नहीं थी। आदमी के भीतर ऐसे ऐसे कोने होते हैं कि कभी जागृत हो जाएँ तो वह खुद हैरान हो जाता ही कि मेरे अंदर यह आदमी भी सांसें लेता है ! उसका चरित्र इस वक़्त बेहद असामाजिक तत्वों से आक्रान्त था । अपनी बदबू और सड़ांध में भनभनाती हुई वह जगह अचानक तेज़ाब की तरह आग बबूला हो जाती थी। ऐसी ऐसी शुआएं छोड़ती हुई कि इस आदमी की आँखों में खून उतरने लगता और हाथ में जैसे कहीं से कोई छुरा आ जाता । छुरा तांडव नाचने लगता । नाचते नाचते ही कई कई बार वह उस आदमी के पेट में जाकर घुप जाता जहां की खोह में से निकली हुई गाली अपनी गलाज़त में खदबदाती हुईं अंतड़ियों के गिर्द लिपटी फुफकार रही होतीं और यह उन्हें भेड़िये के दांतों से खींच कर कचर कचर करता हुआ बाहर उलीच देता ।
    पता नहीं ऐसा कितनी बार हुआ होगा कि सहसा उसे अपने कमरे की खिड़की की जाली पर किसी के पंजे नाखून चलाते हुए महसूस हुए। फिर एक चेहरा उभरा।
    अँधेरी और तीखी नदी की आवाज़ थी।
    सोये ही रहोगे क्या ? डॉक्टर त्रिपाठी का क़त्ल ओ गया।
    वह छलांग मार कर उठ बैठा।
    दरवाज़ा खोलने तक वह एकदम ठंडा हो चुका था।
    कोई आंसू नहीं , कोई हिचकी यहीं। दुःख ,खेद , कुछ भी नहीं। यह तो होना ही था। वह बार बार आवाज़ लगा रहा था वह कि आओ , बेटा ! मारो मुझे ! मैं पंजाबियत का मुजस्सिमा ! मेरी लाश पर बनाओ जो बनाना है ठिकाना !
    मातमपुर्सी के लिए हुजूम उमड़ आया था। हर आदमी यह जानने में लगा था , कौन लोग होंगे ? ऐसे कैसे दिन दहाड़े घर में आकर , चौखट पर बुलाकर उड़ा दिया आदमी और पकडे भी नहीं गए। पूरी यूनिवर्सिटी सुन्न थी।
    कितनी गोलियां ?
    छह , नहीं सात !
    कहाँ ,कहाँ ? कैसे ?
    डॉक्टर तो सुबह सैर पर जाता है।
    घर पर कैसे मिल गया ?
    कर क्या रहा था ?
    बीवी बच्चे कहाँ थे ?
    पड़ोस में किसी ने भी देखा नहीं ?
    नौकरानी उनके पीछे दौड़ी थी !
    बीटा भी बाहर की तरफ निकला था !
    वायरलेस फ़्लैश छह दस पर हुआ।
    गाडी रोपड़ के पास कहीं बरामद हुई थी !
    सवा छह बजे तक खबर न्यूज़मेन तक पहुँच गयी थी।
    दो घंटे तक वह ऑपरेशन टेबुल पर था।
    तीन बार कार्डियैक अरेस्ट हुआ
    सोलह बोतलें खून की चढ़ीं।
    तोज रो रहा है।
    लगभग महाकवि खांस रहा है।
    उसके नथुनों में हवा रुक कर आती है।
    नॉन कॉन्ट्रोवर्शियल आदमी था। इसे कैसे उड़ा दिया ? इसे मिलिटेन्सी कैसे कहोगे ?
    तत्ते न तत्ते , न खड़क न खाड़कू ! कुज्ज होर ई लग्दै !
    अँधेरी और तीखी नदी बोल रही है। उसके तटबंध खुल गए हैं।
    इंदिरा ने अपने बचाव के लिए तो साऱी व्यवस्था कर रखी है , अपने आदमी नहीं बचा सकती !
    ऊबे ऊबी रा रू !
    क्या कहते हो ?
    त्रिपाठी की बीवी को स्टेट ऑनर रेफ्यूज़ कर देना चाहिए !
    सैड , वेरी सैड !

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  36. Atul Arora
    September 8, 2015 at 11:05pm ·
    ज़ुबान की खुराक : तेरे भेजे का गूदा :१० / अतुलवीर अरोड़ा
    ==========================
    अंदर की खबरें दरअसल अंदर की होती नहीं हैं।
    यह आपका वहम या फिर भुलेखा ही होता है जो भीतर बाहर की रचना करता रहता है, ऐसे मामलों में। जबकि , बाहर से पहले भीतर ही निकलकर बाहर चमक जाता है और जिसे यह चमक लूटनी होती है , वह लूट कर ये जा वह जा हुआ जाता है। आदमी को पता ही नहीं चलता , कब वह तमाशबीन होता है और कब खुद तमाशा।
    दंगे इस देश में करवाये जाते हैं , होते नहीं हैं !
    लेकिन जब कभी करवाये जाने पर हो जाते हैं तो पौ बारह सिर्फ तमाशबीनों के होते हैं या कभी कभार थोड़ा बहुत इस कारोबार में लिप्त भीड़ के , जो ज़्यादातर बेवकूफ होती है और अपनी बेवकूफियों के चलते अपने और दूसरों के लिए आफत का कारण बनती है।
    तमाशा फैलता जाता है और भला भोला आदमी अपनी बेचारगी में गुम खूनोखून होता रहता है।
    दरिंदगी के बड़े खौफनाक धंधे निकल आते हैं।
    मरने मारने और अस्मतें लूटने का धंधा इनमें सर्वाधिक बेआबरू होता है। बच्चे , बूढ़े , नौजवान सब पाप पंक के हवाले ।
    धंधा चाहे सत्ता के हक़ में हो या सत्ता के खिलाफ ! आप चाहें तो इसका लिबास किसी आंदोलनकारी विचार की नामुराद सी ऐतिहासिक ज़रुरत पूरने वाली किस्म के तहत बड़ी आसान से बुन सकते हैं और फिर इसे बेख़ौफ़ पहन कर कोई भी हंगामा , जुलूस , आगज़नी , क़त्ल , होलोकास्ट और जीनोसाइड तक खींच कर खुद ही तार तार कर सकते हैं। दृश्य इस हद तक दिलचस्प और राक्षसी होता दिखने लगेगा कि आप पाएंगे कि धागे तार तार खुदमुख्तार होकर इतिहास को ही लपेटते चले जाएंगे और आने वाली नस्लों को देर तक और दूर तक दिग्भ्रमित किया जा सकने का कार्यक्रम सहज ही निर्मित हो जाएगा।
    इस आदमी ने उस दिन कितना फ़िज़ूल सा सवाल उठा दिया था। '८४ के दंगों का।
    भूत जी , तुम्हें भाषा नहीं आती ?
    दंगा कोई उजला पुजला पूज्य शब्द नहीं है ! बेहद शर्मनाक किस्सा है काले इतिहासों का। इसमें केवल शोर और मार काट की चीखें या आवाज़ें होती हैं। लूट पाट के घनघोर स्याह अँधेरे लोक पलते हैं। उन्हीं का चीत्कार और उन्माद होता है। मृत्यु तक अपना अनुशासन और पार्थिव अपार्थिव नमूना भूल जाती है। भावविहीन उसकी आँखें अपनी ही छातियों में गढ़ी होती हैं जहां से अनगिनत पूतनायें प्रगल्भ अपने विष दुग्ध की पिचकारियाँ छोड़ने को आतुर अपने स्तन उछालती हुईं धुल के गुबार उड़ाती हुईं ज़मीन पर लोटने लगती हैं।
    फुंदनों जैसे बच्चों के नाज़ुक थरथराते लबों को चीथती हुईं।
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    7 Bharat Bhushan Joshi, Shruti Sharma and 5 others
    Comments
    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma Atul Arora ji 1984 k dango ka main bhukt bhogi, chashamdeed gwah hu. us din main apney evening college ki class khatam kar k Ghaziabad se wapis apney ghar Safdarjang Enclave aa raha tha, samay 10 pm ka hoga. jaisey hi bus chanakya puri paar ki sarojini...See More
    Like · Reply · 1 · September 9, 2015 at 7:27am
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    Neelabh Ashk
    Neelabh Ashk आदमी को पता ही नहीं चलता , कब वह तमाशबीन होता है और कब खुद तमाशा. Good
    Like · Reply · September 10, 2015 at 12:03am

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  37. Atul Arora
    September 9, 2015 at 10:00pm ·
    ज़ुबान की खुराक : तेरे भेजे का गूदा :११ / अतुलवीर अरोड़ा
    =========================
    बाहर जब इतना कुछ भयानक गुज़र रहा होता है या हो गुज़रा होता है तो भीतर का चमका बाहर आकर बाहर से एकदम तटस्थ हो जाता है जैसे बाहर कुछ हो ही नहीं रहा।
    अगर कोहराम है भी कहीं , तो बीत जाएगा जल्दी ही , की आवाज़ उभरने लगती है। आप और आपके गिर्द इकट्ठे हो चुके लोग पीली कुर्सियों में तब्दील हो जाते हैं।
    मातमपुरसी के लिए आये हुए लोगों के बैठने के लिए रखी हुईं। ज़रा देर के विश्राम की व्यवस्था में अपनी सार्थकता तलाशती हुईं। आप उनपर बैठे हैं , आप नहीं तो आप जैसे दूसरे लोग , जैसे आप लोगों के ऊपर बैठे हैं और लोग आपके ऊपर !अवसर मातमपुर्सी का है लेकिन बातों के रंग ज़रूरी नहीं कि कुर्सियों के रंग से उनका मिलान बैठ जाए। वहां उछाल संभव है कितने ही दूसरे रंगों का। मसलन , एक कुर्सी बात ही बात में अचानक लाल हो जाती है और दूसरी नीली। वह पीली भी बनी रहती है और जो लाल हो आई है बात की बात में , उसने पीले को अपने अंतर में कहीं जकड रखा है और जैसे ही मौका लगेगा वह खूब पीली होकर नीले को जकड लेगी औ लाल के ध्यान में खो जायेगी।
    हरा कुछ भी नहीं होगा वहां लेकिन हरा हरहराता रहेगा इस व्यवस्था के बाहर। बाहर जो भीतर है।
    समय इसीलिए विदूषक है।
    हादसे मिटटी !
    आहें नाटकीय !
    धूप बत्तियां , खुशबू ।
    चन्दन चिताएं , चिंतन !
    तमाशा अपना खुलासा नहीं माँगता। वह बस है।
    उसे देखो। उसका आनद लो , चुपके चुपके।
    भकोसते जाओ जैसे वह जुबान की रसलीन खुराक हो।
    भेजे का गूदा , मलाई मालपूड़ा ।
    लाश के साथ तुमने तस्वीर बनवायी , तस्वीर में लाश खुद लाश के भीतर से बाहर उछल आई।
    खाना पीना चल रहा है। दुर्घटनाएं पूर्ववत जीवित हैं।
    यह गनीमत नहीं है कि तुम सुरक्षित हो !
    पीली कुर्सियों में पीली एक कुर्सी !
    फूलमालाएं लाओ , पंखुरियाँ सजाओ।
    विदूषक की विदूषकी शव यात्रा जारी है !

    ReplyDelete
  38. Atul Arora
    September 9, 2011 at 4:21am ·
    door kisi desh mein
    दूर किसी देश में वे चले आये हैं
    दूर किसी देश से
    संवादविहीन
    खड़खडाती ज़िन्दगी
    आह्लादविहीन
    खिडकियों के टूटे में से
    शायद किन्हीं झिर्रियों सी
    निकल कर फलांगती
    वीरान किसी टापू के
    बीचों बीच उगते हुए
    घने और भयावह
    जंगल के रक्तिम
    ख़ूनी आलोक में कहीं
    गुम होती हुई
    हवा तो है
    हवा का भयानक उन्माद भी है
    अस्त होते होते जहाँ
    बची खुची
    सिसकी जैसा सूरज भी है
    हलक का अवसाद है
    या रुकता बलता रुदन
    यह तुम हो या मैं
    या कि दूर
    किसी देश से आते हुए हम
    कहीं दूर
    किसी देश कबके जा चुके हैं ...

    ReplyDelete

  39. Atul Arora
    September 9, 2011 at 9:50pm ·
    मिलते मिलते मिलना तो
    कुछ हो जाता है
    खिलते खिलते खिलना भी
    कुछ हो जाता है
    खिल कर मिलना
    मिल कर खिलना
    कभी कभी संभव होता है
    जैसे खोना कभी मिले तो
    मिलना खोना हो जाता है...

    ReplyDelete
  40. Atul Arora
    September 10, 2015 at 9:46pm ·
    ज़ुबान की खुराक : तेरे भेजे का गूदा : १२ / अतुलवीर अरोड़ा
    ========================
    पहुँचो चाहे कहीं भी नहीं लेकिन जाना ज़रूरी होता है, कहीं न कहीं। नहीं तो एक मंज़िल तो हरेक के लिए तै है ही। वहां कैसे कब पहुँच जाओगे , यह मंज़िल पर बैठा हुआ, तुम्हारी इंतज़ार करता हुआ समय का घटना-दुर्घटना चक्र तै करेगा। विदूषकों का बाप। सबसे बड़ा विदूषक ! तुम नींद में हो , वह जाग रहा है। तुम्हारी नींद में चलते हुए उलट सुलट स्वप्नों को जगह देता हुआ। कभी ये स्वप्न तुम्हारे वजूद को अपने ऊपर ओढ़ लेते हैं और तुम उनकी जगह पर खड़े कर दिए जाते हो। अब तुम्हें समय ने चुन लिया है। तुम उसकी गुलामी में हो और व्यवहार तुम्हारा ऐसा है कि जैसे समय तुम खुद हो ! स्वप्न का हिंडोला है जो अपनी रस्सी आकाश के विभिन्न आकाशों में अलग अलग जगहों पर खुलता बंधता रहता है। स्वप्न तुम्हें अपनी दुनियाओं में कुछ इस तरह उड़ा ले जाते हैं कि वही तुम्हारी हकीकत बन जाते हैं।तुम भूमिका में आ जाते हो या भूमिका तुम्हें चुन लेती है। अब तुम तुम नहीं हो और फख्र तुम्हारा यही कहता थकता नहीं है कि यही हो तुम ! और कुछ भी नहीं !
    तुम्हारे चेहरे का हाव भाव , तनाव , तंज़ , ख़ुशी , ग़म , तुम्हारा नहीं है और लोग समझते हैं तुम्हारा है। तुम भी यही कहते जीते हो ! यह मैं हूँ। यही हूँ मैं ! और वह जो भी है , तुम नहीं हो !
    इस वक़्त सिर्फ , इसी एक फैले हुए क्षण के विस्तार में , विस्तृति के विराट में , समय एक पुरोहित है जो अपने निश्चित किये गए यज्ञ में तुम्हें समिधा , घी , बत्ती जैसी विभिन्न वस्तुओं और ज़रूरी सामग्री की तरह इस्तेमाल कर रहा है। उसके शब्द तुम्हें चलायमान करते हैं। वह चाहे तो हवन कुण्ड की चौहद्दी में तुम्हें जल की तरह गिरा दे या फिर जलने वाली आग में रूपांतरित कर दे ! अभी तुम धुंआ हो जाओगे। अभी प्रसाद ! तुम वस्तु से वास्तु तक में जड़ी हुई वास्तविकताओं का आदिम उपहास , अपने भीतर बाहर जागता हुआ , जगाता किस किसको , बुझता कभी बुझाता हुआ बुझारत की तरह जाने किस किसको, जीवित कभी मरता हुआ मर्त्यलोकी श्रम , उसका सरगमी संवाद , जाने किस किसके बीच ! तुम , शाश्वत खिलवाड़ ! शापित सृष्टि का श्राप !
    कौवे उड़े चले आ रहे हैं।
    पिंड दान चल रहा है।
    धूल उड़ रही है।
    विधायक जी आ गए।
    राजनेता पहुँच गए।
    कुलपति महोदय याचकों की तरह उनके बीच कहीं खड़े हैं।
    मैं आपका शिष्य हूँ !
    मुझे नहीं पहचाना , मैं फलां फलूणा जी !
    मैं देश का संविधान !
    मैं कोर्ट , मैं कचहरी , मैं बड़ा हस्पताल , मैं पूरा मुर्दघाट !
    सब , सबके जितने हाथ हैं , सब मेरे साथ हैं।
    मैं कहाँ ?
    किसके साथ ?
    मैं धू धू कर जलती हुई
    अपने समय की चिता !
    पिता , मेरे पिता !
    कोई विलाप चल रहा है या शायद तोड़े की गति है याकि अभी शुरू होगा रुका हुआ कोई स्वप्निल आलाप !
    श्वास लो , श्वास !
    एक बहुत दीर्घ श्वास !
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    6 Ajay Singh Rana, Krishna Kalpit and 4 others
    Comments
    Virender Kapur
    Virender Kapur Kaalo na yato, vayumev yatah.
    September 11, 2015 at 3:26am · Like

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  41. आ गए रौशन ख़याल रौशनी लेकर
    तुम अँधेरे बेच लो अब कितनी देर खैर है

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  42. Share

    Atul Arora
    September 11, 2015 at 9:35pm ·
    ज़ुबान की खुराक : तेरे भेजे का गूदा : १३ /अतुलवीर अरोड़ा
    ===========================
    जिंजरमैन जिंजरमैन ! डोनलेवी , हाउ आर यू ?
    एक लेयर बैठी नहीं और ऊपर से 'खुदा सही सलामतहै ' चला आया है।'
    महाभोज ' के साथ साथ उसका नाट्यांतर भीआँखों मे रहता है ।
    दॉस्तोवस्की हमेशा ही खुला रहता है मेज़ पर।
    एक साथ इतनी चीज़ेँ।
    मटन ,शोरबा , चिकन ,बिरयानी , डोडे !
    सब कुछ एक साथ !
    यूनिवर्सिटी बंद है।
    स्वर्ण मंदिर में आफत अभी बनी हुई है।
    चंडीगढ़ में तनाव है।
    दंगों की असली नकली शक्लें उभर रही हैं।
    २६ के शो रूम्स के पास से एक हुजूम तलवारें चमकाता हुआ भागता चला गया है। पथराव शुरू है।
    सुबह अखबार बताएगा अगर खोल पाये तो।
    आगज़नी और खून !
    मामूली चीज़ें !
    रात !
    कर्फ्यू !
    एक बेरौनक कस्बाई शहर !
    सामने के मैदान में नौजवान लड़के अलग अलग झुंडों में नज़र आ रहे हैं। ज़्यादातर लोग दरवाज़े भिड़ा कर अँधेरे में बैठे हैं।
    गाठें !
    आलाप , त्रिताल , और धुनें बज रही हैं।
    सरोद और tabley की संगत में है कोई बहुत उदास दिन।
    दादरा इसमें भला क्या तो कर लेगा पर चल रहा है वह भी !

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  43. EARS AGO TODAY

    Atul Arora
    September 11, 2014 at 10:06pm ·
    पेड़ सुन रहे थे अपना कटना
    काटने वालों की मजबूरी भी देख रहे थे
    ले तो जाओगे
    हमें
    बेच भी आओगे
    पर सज़ायाफ्ता होगे तुम
    मालिक तुम्हारे तुमसे लेकिन
    आज़ाद रहेंगे
    आबाद रहेंगे
    बर्बाद होंगे जो
    उनका तुम्हें एहसास नहीं है
    सदियों की उनकी मेहनत मूर्छाग्रस्त थी
    हरेपन को ज़हरबाद हो गया था
    चिड़ियाँ थीं जो लगातार शोर कर रही थीं
    वातावरण भौंचका था
    बालू में लुके छिपे घर तक बस्ती समेत लुट चुके थे
    नदी जो थोड़ा हटकर बहती थी
    उसे एक नया तट बुला रहा था
    जंगल को इस सबके बीच अपनी अनुपस्थिति
    खल रही थी
    वह कहीं से दौड़ कर आना चाहता था
    लेकिन उसके पैर लहूलुहान थे
    सर कलम हो चूका था
    धड़ लेकर जाता भी तो कितने दूर जाता
    रास्ते जहां जहां से होकर जाते थे
    रेत वहीं कहीं आकर बैठ जाती थी
    उड़ने को बेसब्र
    सूर्य का पता नहीं
    कायम ही लगता था
    अपनी जगह।

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  44. छूट जाता है तो बस फिर छूट जाता है . ...जगह जो छूटने से खाली रह जाती है छूटे हुए के भर देने बाद भी दरअसल पूरा पूरा भरती नहीं है ..वह जो छूट जाता है और फिर भर दिया जाता है भरने के बाद भी छूटा रहता है .अपनी खोयी हुई जगह में ..जगह ज़रूर भरती है पर छूटा छूटा रहता है जगह का कोई ख्वाब और आप कहते थकते नहीं कि छूट गया था यह तो छूट गया था लेकिन भर दिया है अब छूटा याद आने के बाद ....समय बदल जाने से जो छूट गया था समय में पुराने कभी लौट आया हो यह मुगालता ही है ...भर कर भी जैसे छूटा लौटता नहीं है ...लौटाया गया होता है ...यह जान जाते हैं हम ....भले जानने के बाद भी जान नहीं पाते कि छूटा हुआ हमेशा के लिए छूट जाता है .. और जो जगह पर उसकी आकर बैठ गया होता है ,बैठा दिया होता है वह खींसें निपोरता हुआ भूला खोया हुआ सा झांकता रहता है अपनी खोह में से जैसे शर्मिंदा हो छूट जाने पर हालांकि आश्वस्त कि जगह उसकी पड़ी थी खाली ही जिसमें वह लौट आया होता या लौटा लिया गया होता है जबकि इधर उधर की दुनियाँ उससे पूछ रही होती है , बंधू ..तुम आखिर अटक कहाँ गए थे और कैसे भूले रास्ता ..फिर कैसे पा गए ...कहानियां कुछ भूले हुओं कि ऐसे ही होती हैं घटती घटक बनती हुईं भूले से जैसे कुछ याद आ जाने पर ...पर याद याद होती है छूटी हुई ....छूटे हुए छूटे की हकीकत तो नहीं ...!

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  45. हबड़ दबड़ अज पूरा टब्बर
    आया मोया साडा गब्बर
    चबड चबड दी हो गयी टक्कर
    डब्ब खडब्बे टूट गए अक्खर
    टप्प टपोरी पै गए रपपफड़
    आदे जांदे मारे थप्पड़
    खेड खेड विच रूल गए तप्पड़

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  46. Atul Arora
    September 12, 2014 at 9:41pm ·
    कैसे अंधे सघन
    कौन से
    कहाँ के हीरक बादल हैं
    जिनके बीचों बीच
    शाश्वत कोई यात्रा
    चल रही है तुम्हारी
    घूमते नहीं हो
    फिर भी कैसे घूमते रहते हो
    नीले में जो इतने तुम पीले दिखलाते हो
    श्राप
    शब्द
    आप
    लगभग श्री। श्री। एक सौ नौ।
    प्रियवर पृथिवी के
    परिष्कार
    पोषणहार
    सृष्टि की निरंतर
    चलती हुई गोष्ठी के
    सर्वोपरि अध्यक्ष
    बने रहोगे क्या
    इसी तरह प्रभावी

    इतने ही तटस्थ !

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  47. Atul Arora
    September 12, 2015 at 7:01pm ·
    ज़ुबान की खुराक :तेरे भेजे का गूदा :१४ / अतुलवीर अरोड़ा
    ===========================
    आलम ऐसा है जैसे रात का दूसरा या तीसरा पहर हो और हकीकत यह है कि दिन शुरू भी नहीं हुआ है ठीक से।
    कुत्ते हैं आवारा , भौंक रहे हैं जैसे कोई मर गया है और उन्हें वातावरण में इसे दर्ज करना है।
    कल भी ऐसे ही बीतेगा ?
    शायद परसों तरसों नरसों और फिर बरसों तक , ऐसे ही ? हो सकता है इससे भी बदतर।
    नींद की आँखों में ग्रहण लग चुका है।
    मातम की देह में चुप्पी का चाकू घुसा हुआ है।
    उदासी !
    घनघोर है !
    लेकिन , वह नहीं जो किसी सम्प्रदाय को लक्षित करके कही जा सकती हो।
    पक्षी उड़ते उड़ते थक गए हैं।
    पीली चोंचें ,भूरे ,काले मटमैले पंख !
    रुआंसी चीखें !
    पीली कोर जैसे पीले आईलाइनर !
    बत्तखी बातें , बातों के रहस्य खोलने की कोशिश में हैरान परेशान !
    सूखते हुए बादल !
    आकाश विहीन प्रकाश ! रोशनियोन में मन्फ़ी ! जमा होता हुआ कबाड़ जैसा अन्धेरा !
    छुट्टियों का क्या होगा ?
    अवसाद की सूखी छातियाँ रुदन का गीलापन मांग रही हैं लेकिन भीग के चुंबन तक से एकदम से खाली हैं।
    पैरो की नसों में बुखार के कांटे हैं। जाने कब निकलेंगे !
    होते हैं कुछ लोग।
    रहे आये होते हैं कभी न कभी ज़हीन भी।
    लेकिन ! फना हो जाते हैं , घृणा के दौर में। घृणा उलीचते हुए।
    अतीत का अर्थ , उसकी सार्थकताएं तक छीन लेते हैं !
    अब आप जंगल में हैं और सब्ज़े ही सब्ज़े में सफ़ेद रंग का कोहरा घना हो निकला है।
    बर्फ ही बर्फ है।
    कहाँ जाना चाहते हो ?
    रेल की पटरियां
    न रेल न स्टेशन
    हवा न जहाज़
    न पहिये न घोड़े
    पंगु विशवास
    फिर कहते हैं प्यार !
    कहाँ ?
    अनासक्ति के खुलते हुए द्वार !

    ReplyDelete

  48. Atul Arora
    September 12, 2015 at 11:19pm ·
    लो जी खाओ , वाज़वान !
    ================atulvir arora
    खदबद खदबद सूअर जैसे
    कीचड़ सनाये हुए
    इस
    अश्लील समय में
    संभव नहीं था कुछ भी
    और
    लफंगी ही होती चली गयी थी
    सत्ता
    हविष्य की
    भविष्य
    परिदृश्य के भीतर या
    बाहर
    धुंध अंधाधुंध
    सर्पदंती विषगंधा
    बावला अन्धेरा था
    उतना ही खूंखार
    जितना कि बदलता हुआ
    जागतिक भूगोल
    जितने नृशंस थे
    खुराफाती दागदार
    बलात्कारी समूह
    सदियों से भूखे अनखाये कुत्ते
    पंजों से नोंचते हुए आदमी का जिस्म
    ख़न्दकें खोदते हुए
    तांत्रिक
    सिपाही
    सांस्कृतिक
    यंत्रसिद्ध
    साधू न साधू
    देह के सुराख में जीवित
    कत्लगाह
    लड़ाके ही लड़ाके
    ये सुसज्जित सिपहसालार ,
    फटे पुराने खंडित
    मुख्तार शहंशाह
    घरौंदों की खालिस ज़नाना हुंकार
    माते , ओ , माते
    सिंधु राधे साधे
    जरा है न जर
    जर्जर घर के भीतर
    डर
    ये किस हॉरर फिल्म का हिस्सा हो जी, तुम
    कौन सी किताब
    हम फिलिस्तीनी खून।
    चमड़े की धुलाई !
    मेरे पशु की खुराक !
    संगीत गुमशुदा ,
    इस कहानी की मांसपेशियां ढीली हो गयीं !
    निरे गोश्त
    खड्डमखड्ड !
    लो जी खाओ , वाज़वान !

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  49. समंदर उलट देगी बस ये आसमान से
    खींच के रखना जो डोरी तुम कमान से

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  50. हाल था जो अपना दरसाया नहीं कभी
    असल में कुछ नक़ल भी मिलाया नहीं कभी

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  51. कैसा यह संवाद है/ जो तैरना नहीं जानता / जल में उतरना /गोता खाना नहीं जानता /निकट भी आता है /और आप को बहलाता नहीं / लौट कर आप से /वापसी की यात्रा का/ इंगित नहीं पाता है /यह एकतरफा संवाद बहुत खौफनाक है ...!!

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  52. Atul Arora कह लिख देना और सुन नहीं पाना /आप की आवाज़ /बस कल्पित करते रहना /आप की मुद्राएं ,तेवर ,हिलते हुए हाथ /सुख का साथ /कांपती आवाज़ में का दुखता हुआ राग /आंसुओं से गीले होते तकिये बिस्तर गाल /आत्मा की गंध से सराबोर देह का महकता गुलाब /..कैसा यह संवाद है /जो दर्द में के दर्द को सोखता /निचोड़ता/ दर्द ही में कोई दर्द /और जोड़ देता है...दर्द से खालीपन का ...

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  53. Atul Arora
    September 12, 2010 at 1:41am ·
    ऊपर देखो ,ऊपर ..!
    मृत्यु का नाच !
    नाच घमासान !!
    चीते के रंग की चट्टानें
    दर्याई पहाड़ों की दरारों में से झांकती
    ओझल होतीं हुईं
    चांदी के तार सी बारीक चमकती नदियाँ ...
    नीचे, .. बहुत नीचे ..!
    ज़िन्दगी की तंग
    संकरी पट्टी सी
    धूल भर सड़क पर से
    फूले सांस लेती , घिसटती ,धुआं छोड़ती हुई
    आर्मी वैगन, तोपें, गोला बारूद.. ...
    सैनिकों के स्वप्न नंगे पहाड़ों पर... सुन्न होती चीखें ..

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  54. Atul Arora
    September 12, 2016 at 8:37pm ·
    yah kaun sa sanskaran hai Tota Bala Thakur ka ? Meri Time Line per ? Na re baabaa na....Aho Durbhaagya !
    ब्राह्ममुहूर्त में यह किसका आर्तनाद है
    अट्टालिकाएं उज्जैयिनी की
    हिल उठी सहसा
    यक्ष के सरोवर में
    हंसों का रक्त स्नान
    देवयोनि वनस्थली
    पर्यावरण मन का असुरक्षित हुआ
    सत्ता के गलियारे में यजन अग्नि
    धूम
    उत्थित समाधि में महालिंगम मांगलिक
    मंगल का आगमन अवरुद्ध है
    कामदेव जर्जर
    रति योनि खुश्क
    भ्रमर भ्रामर भ्रामरी
    मुद्राएं स्थगित
    जड़ पुष्पदन्त
    बंजर हुई पृथ्वी
    बूँद बूँद दुग्ध स्नान
    सूखता हुआ
    तपता जल प्रपात
    अंतर्मन विषदंत
    सर्पजिह्वा खंजर
    कात्यायनी उत्तेजित
    मंत्रपाठ जारी है
    हविश पुण्डरीक हुआ
    स्तम्भन में तंत्र है
    सत्ता आंदोलित
    इंद्रनील पर्वत पर ब्रह्मराक्षस उड़ता हुआ
    आर्यावर्त संकट में
    तंत्र सिद्धि असफल । Tota Bala Thakur
    2 Comments
    11 Surendra Mohan, Anil Sharma and 9 others
    Comments
    Surendra Mohan
    Surendra Mohan अद्भुत !! आप ही हैं ठाकुर मोशाय .. यहाँ !
    Like · Reply · 1 · September 12, 2016 at 8:50pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Main to khud pareshaan hua use dekh kar
    Like · Reply · 3 · September 12, 2016 at 8:53pm
    Manage
    Atul Arora

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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar " आर्यावर्त संकट में" और " तंत्र", " सिद्धि" का "असफल" होना - मंत्र -कविता रची है भाई साहब मंत्र कविता!! सादर
    Like · Reply · 1 · September 13, 2016 at 4:34am
    Remove
    Atul Arora
    Atul Arora Yah to Tota Bala hain koi ... chamatkaari siddh kavi (yitri )... Mujhe muaaf karna bhai ...
    Like · Reply · 1 · September 13, 2016 at 5:14am

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  55. Atul Arora
    September 13, 2015 at 9:42pm ·
    है तो भेजा ही , लेकिन है कोई दूसरा , शायद कोई तीसरा भी : अतुलवीर अरोड़ा /
    ========================================
    उसके पास बैठा हूँ और वह सो रहा है। नींद में बड़बड़ाता हुआ।
    अचानक बहुत साफ़ शब्द बोलने लगा है। बिलकुल भी गोंगाना नहीं।
    'गेट खुला है , मैं बाहर चला आया हूँ। बाहर गिरी हुई अखबार के मुखपृष्ठ पर अपना नाम लिख कर। देखा तो होगा ही किसी न किसी ने। घर है या क्या ? पिछवाड़े कहीं से औरतों की आवाज़ें आ रही हैं। मेरा सर चकरा रहा है।'
    वह रुक गया है।
    मैंने जैसे खौफ से आतंकित किसी शख्स की तरह उसकी तरफ देखा है, हालांकि मैं वहां हूँ नहीं। वह कोई और है जो उसके पास बैठा उसका बड़बड़ाना सुनता है। मुझे कुछ कहना है और मैं वह कहकर ही उठूंगा वहां से।
    'मान लो मैं ही वह डॉक्टर हूँ जिसके पास इस तरह चले आये हो ,तुम और वह यूं ही छोड़कर ऐसी कैसी हालत में तुम्हें , चला गया है। लौटेगा नहीं। मैं सपने में हूँ और सपना दरअसल तुम देख रहे हो।'
    कौन बोला ?
    यह उसकी आवाज़ है। मैंने साफ़ सुनी है।
    'हलो ! हलो , हलो ! हलो , डॉक्टर !'
    मैं डॉक्टर नहीं हूँ। वह चला गया है ! मुझे यहां तुम्हारे पास ऐसे बैठा कर।
    मैंने ही कहा है।
    और कह तो यह भी मैं ही रहा हूँ , उससे :
    सो जाओ ! तुम्हें नींद आ जानी चाहिए। डोज़ में ज़रूर कोई कमी रह गयी होगी वरना इस तरह तुम जाग नहीं रहे होते।
    जवाब उसका है :
    नहीं , मैं जाग नहीं रहा , मैं सो रहा हूँ। मैं तुम्हें देख नहीं सकता। कौन हो तुम और क्यों हो यहां ? और डॉक्टर कहाँ है ?
    डॉक्टर का कहीं पता नहीं है , मैंने उसे फिर बताया है की डॉक्टर ने मुझे बताया था कि डॉक्टर तो दरअसल तुम हो , मरीज़ मैं हूँ। ऑपरेशन टेबुल पर मेरी जगह तुम कैसे पहुँच गए ?
    तुंम आ जाओ , मैं उठ जाता हूँ।
    वह झपट कर उठा है।
    बांह खींच कर उसने मुझे अपनी जगह लिटा दिया है और मेरी जगह आ बैठा है।
    फिर बोलने लगा है :
    पीछे के गेट की तरफ भी सीढ़ियां हैं। वहां से देख कर आया हूँ ऊपर। कमरे के भीतर ज़रूर कोई है। कुतिया सो रही है बाहर। उसकी आवाज़ में रुआंसापन था जब मैंने दरवाज़ा खटखटाया। हलकी सी पूँछ भी उठी थी उसकी। हवा में सलामी सी देती हुई। फिर गिर गयी। नींद उसे भी आ रही होगी।
    इतनी साड़ी आवाज़ें। सब की सब औरतों की। कोई झगड़ा भी नहीं , न खिलखिलाहटें। बातचीत भी नहीं। आवाज़ें ही आवाज़ें।
    इस गेट का रंग इतना पीला क्यों है ?
    सुबह सुबह की आवाज़ें जो अक्सर हुआ करती हैं , कहाँ चली गयीं ?
    यहां तो निपट अकेला चोर सन्नाटा है।
    ऑपरेशन कब होगा ?
    यह मेरी आवाज़ है।
    1 Comment
    4 Kiran Sanjeev Rajpal, Krishna Kalpit and 2 others
    Comments
    Surendra Mohan
    Surendra Mohan गजब !
    Like · Reply · 1 · September 13, 2015 at 10:02pm

    ReplyDelete

  56. Atul Arora
    September 13, 2016 at 9:35pm ·

    what is this ? Again ? Another one ?
    अथातो द्वन्द्व युद्ध:
    आकाशिकी चारी भरतः
    तोता रटंत बाला
    किमिदं यक्षम
    कस्य चेतना
    श्लीलः अश्लीलः ?
    भाषा के धनुष की प्रत्यंचा ढीली
    संधान नहीं हो रहा
    वज्र ,असि
    आओ , युद्धगत व्यापार में संलिप्त हो जाओ !
    ऊर्ध्वजानु, दोलपादा , आक्षिप्ता , आबिद्धा ,
    उदवृत्ता , दण्डपादा ,भ्रामरी , हरिणीलुप्ता ,
    भुजङ्गत्रासिता , विद्युद्भ्रान्ता , अतिक्रान्ता ,अपक्रान्ता
    नूपुरपादीका , सूची तुम्हारा आगमन
    जंघा अपार
    खुला देह द्वार
    प्रस्तर विस्तार
    पुष्ट स्तनः
    यक्षिणी तुम लेती हो
    देती हो
    अष्ट योजन
    जन दोहन
    यक्ष लिंगम
    प्रहार
    दंतक्षत
    नखःलीक :
    चुम्बन पछाड़
    अधिष्ठाता देव का सौष्ठव सम्पन्न
    ताल दे ताल में
    ढ़ाई अंतर ताल
    भागते हुए ब्रह्मा
    शिव नेत्र दाह
    अभी लेकिन स्तब्ध है
    श्री स्कन्द गुप्त
    योनिर्जन्म कार्तिकेय का
    गर्भाधान मुग्ध
    कल्लिनाथ व्याख्या में
    अग्रसर है संवर्धन
    कोहल मंडलः
    पाद जांघ उरु
    स्वभाव स्थिति गति नृत्य
    धनञ्जयः तिरिछ में
    बाजू भग विच्छिन्न
    चढ़ो घूमो दाहिनी से
    वाहिनी
    वह्नि
    प्रलयलिंगं
    और व्रीड़ा में
    ठाकुर हो या हो रवींद्र
    शरतं क्रांतदर्शी
    अंकोष बंकिम के
    स्वागत है
    स्वागत है
    भून कर चबा जाओ
    बंग भंग मुक्त
    चारु सिक्त उक्त ! Tota Bala Thakur
    1 Comment
    12 Bhumika Dwivedi, Shree Gopal Vyas and 10 others
    Comments
    Surendra Mohan
    Surendra Mohan बहुत अच्छे ..!! .. आपको तो खूबसूरत बहाना मिल गया इक... उड़ान मगर लाजवाब है
    Like · Reply · 1 · September 13, 2016 at 10:08pm
    Manage
    Atul Arora
    Atul Arora Tota Bala kahaan hai lekin ? Na Jan Vijay hai na Draupadi na doosare jo tota ke aashik hain ya phir kaho jinhein dushman ! kreedaa kautak sab gaayab !
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    · Reply · 1 · September 13, 2016 at 10:43pm
    Manage
    Surendra Mohan
    Surendra Mohan तोतों का जब कोई दाना चुग्गा नहीं मिलता इनाम इकराम का तो फुर्र
    Like · Reply · 1 · September 13, 2016 at 11:34pm

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  57. Atul Arora
    September 14, 2016 at 9:34pm ·
    Departure Time ( context : Tota Bala Thakur )
    मैना मेरी ,
    यह मेरे प्रस्थान का समय है।
    तोता बाला को भूल नहीं जाना।
    न सही बहुत देर पर हमारी अच्छी ही निभ गयी।
    हम ने एक दूसरे के नेह को पाया।
    शरीर हमारे एक हो गए कुछ देर को।
    विलग होने के क्षण में लौटे हैं फिर से अपनी देह में
    मालाओं से विभूषित
    अनाज की बाली चोंचों में लिए हुए
    भावों से ओतप्रोत
    चंचल नेत्रों वाली हम दोनों
    शरीरों पर हिंदी संसार के घाव लिए
    उसी के भुवन में कोई वातायन खोल कर अनंत में उड़ जाएंगी। अलग अलग।
    सहस्त्र नेत्रों वाले इंद्र से मिलने मुझे जाना है इंद्रनील पर्वत पर।
    अपनी कथा कहती रहना द्रौपदी सिंघार से। उसके पास मेरा पता सुरक्षित रहेगा हमेशा
    यह धरती छोड़ नहीं देती
    आकाश में तो फिर से वही युद्ध शुरू होगा जो हमारे आने से पहले था
    बाद की तमाम राजनीति के लिए।
    अभिलुप्तार्थ
    अर्थान्तर दोष की परम्पराओं को सुरक्षित रखने के लिए।
    गूढ़ था बहुत कुछ
    लेकिन यौन संस्कारों की वजह से यह
    तल की तरफ जाता रहा
    सतह नग्न
    देहों से अटी पड़ी रही।
    चाहती तो थी , मालायमक हो जाती
    आरम्भ से अंत तक
    लेकिन जितने शब्द आये मेरे पास देवभाषा के
    यमक में परिवर्तित नहीं कर पायी
    इंद्र से पूछूँगी जाकर क्यों ,
    आखिर क्यों भेज था
    इस टुच्चे हिंदी जगत में मुझे
    इस तरह ख्वार होने के लिए।
    मै ना ,
    तुम न मिली होती तो मेरा जीवन शेष हो जाता
    पदार्पण से पहले ही।
    योनि मेरी में
    तुम्हारी जिह्वा
    रसार्द्र
    की अनुभूति का दिव्यानंद
    कैसे भूल सकती हूँ
    पर जाना तो होगा ही।
    चोंच अपनी को एक बार फिर
    रगड़ लो मेरी चोंच से !
    मस्तक में
    मसक्कली
    मस्तजंघा रास !

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  58. Atul Arora
    September 14, 2015 at 10:05pm ·
    है तो भेजा ही , लेकिन है कोई दूसरा , शायद कोई तीसरा भी : २ / अतुलवीर अरोड़ा
    =======================================
    बहुत दूर से आती हुई।
    पहचान कैसे ली ?
    औरतों की तो पहचान में आई नहीं थी।
    उन्हें छोडो , तुम यह आवाज़ सुनो !
    'मरीज़ सामने टेबुल पर लेटा है। ऑपरेशन पता नहीं कब होगा। होगा भी या नहीं , कुछ ठीक से कहा नहीं जा सकता। लेकिन वह जो उसके सपने में है , उसने देख लिया है डॉक्टर को ! जो वैसे तो चला गया था लेकिन उसके चले जाने से क्या ? यह जो उठ कर उसकी जगह चला आया है और बांह खींच कर जिसने उसे वहां अपनी जगह पर लिटा दिया है , यह कौन है ? डॉक्टर ? हेलो , हेलो हेलो , डॉक्टर ! हेलो , डॉक्टर ! '
    आवाज़ धीरे धीरे खो गयी है।
    कहीं से उड़ते हुए औज़ार चले आ रहे हैं। वातावरण में सिर्फ यंत्रों की धुकधुकी है। जलती बुझती हरी पीली लाल। बूँद बूँद बजती हुई तुपक टुपक थाप !
    होने को तो शायद अपेन्डेक्टमी होनी थी। हो सकता है खोपड़ी का बवाल ही खुलना था , लेकिन न पेट को खोला गया , न भेजा ही निकाला , छाती खोल दी गयी थी। मरीज़ खुली आँखों से छत पर से लटका हुआ अपना आप देख रहा था। तैरता हुआ हवा में हौले हौले वैताल।
    आवाज़ साफ़ सुनी जा सकती थी। फिर से शुरू हो गयी थी :
    ' तुमने मेरी छाती खोल दी है। मर्ज़ वहां नहीं है। मैं देख सकता हूँ। महसूसना मेरा मरा नहीं है।तुम्हारी कैंची गलती से भी वहां चल गयी तो मैं लहू का फव्वारा हो छूट निकलूंगा। इसे बंद कर दो। इसके अंदर ढेरों दुनियाएं हैं जो भेजे के रास्ते खुलती चली जाती हैं।'
    अचानक किसी औज़ार से खोपड़ी खुल गयी है।
    ड्रिल की घर्घर घरर घर्र घर्घर खौफनाक आवाज़।
    वह बोले जा रहा है और भेजा किसी फानूस की तरह फूल आया है खोपड़ी के बाहर !
    कुछ संवाद सुन सकते हो ! उदाहरण के तौर पर :
    काटकर किसी डिब्बे में बंद कर दो फिलहाल।
    डिब्बे में ही हो तुम ,खुद एक डिब्बा !
    बाहर कब आऊंगा ?
    कब की न पूछो , पूछो , कैसे आओगे ?
    डिब्बा कहाँ रखा है ?
    कहीं भी रखा हो , क्या फ़र्क़ पड़ता है ?
    पड़ता है जी , पड़ता है ! बाहर है तो बाहर हो नहीं सकता और अंदर है तो अंदर तो है ही अंदर !
    कहना क्या चाहते हो ?
    डिब्बा है तो भेजे के अंदर ही होगा न या भेजा ही मान लो डिब्बे के अंदर ! बाहर जो कुछ भी है अंदर से ही आ रहा है।
    फानूस अब उछलना शुरू हो गया है।
    वैताल की ऊंचाई तक।
    धागा उसका खोपड़ी के अंदर ही है कहीं। बहुत मज़बूत।
    खिंचाव रबड़ का।
    वॉटर बाल जाती है बाहर हाथ से छूट कर।
    भीतर चली आती है खोपड़ी की मुट्ठी में।
    डिब्बा हँसता है !
    वीयर्ड ! एकदम वीयर्ड है !
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    5 Krishna Kalpit, Virender Kapur and 3 others
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Absurd-o-absurd-o-weird-o-weird....
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    Like · Reply · September 14, 2015 at 11:06pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Bhuktabhogi ki katha hai...bhaley khwaahamkhayaali ho.. Jaldbaazi mat keejiye ..nahin to phir bhugatiye..
    Like · Reply · September 14, 2015 at 11:36pm
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Ab to yogii ho jaao,bhai...ramata jogi,bahata paanii...nahiin to jhoot sach gadd-madd hota rahe ga...aur apane tayiin to ab bhugatane ko kuchh bhii bachaa nahii.n hai...
    Like · Reply · September 15, 2015 at 12:12am
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    Atul Arora

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    Surendra Mohan
    Surendra Mohan दिलचस्प सिल-सिला ...
    Like · Reply · September 15, 2015 at 6:56am

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  59. Atul Arora
    September 14, 2014 at 9:10pm ·
    ab main naachyau bahut Gopaal ...
    संपेरे को बुलाकर उसने नाग देखा
    नाग
    हाय हाय
    चोच्वीत नाग
    सच
    सो वेरी डिवाईन !
    बीन की धुन पर फनफनाता खूब
    जिह्वा लपलपाता
    छू लूँ इसे
    भीतर उसका
    दैहिक मन
    भरमाया
    सम्मोहन में हलक तक सूख सूख आया
    संपेरे के रोकते ही में हाथ jo badhaayaa
    शरीर के सूखे में वह डंक चला आया
    अब वह नाचती है
    बीन धुन बजाती हुई
    नाग अपनी सिरी जाने कहाँ भूल आया
    उसके न तो फन है
    और न ही ठन
    ठन ठन गोपाल
    Ab main नाच्यौ बहुत गोपाल।

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  60. Atul Arora
    September 14, 2011 at 8:20pm · Chandigarh ·
    तमाम रात भारी ट्रेफिक चलता है ..घर के पिछवाडे की सड़क हाईवे की जैसी है ...शहरों के साथ जुड़े दूसरे शहर एक दूसरे में लीन तो हो नहीं पाते फिर राज्यों का फर्क सर चढ़ कर बोलने लगता है ... कहने को 'ट्राई सिटी' ... करते रहो ट्राई ...कभी तो घोड़े बेच कर सोवोगे रात को ...!
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    15 Sharmila Bohra Jalan, Nishtha Saxena and 13 others
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    Atul Arora
    Atul Arora zoning ki problem zaroor hai koi ...aawaazon ka bhi pata nahin chalta kis disha se aati hain kahaan sunaayi deti hain ...ya phir kaanon mein hi koi dikkat hai ... ab check up ke liye na kah dena ... aur kahin pgi mein hi dhakke ...
    September 14, 2011 at 11:14pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora chupchaap sunte raho ...kisi ko khabar na ho kaanokaan ...astachal ki taraf se bulaavaa aa raha hai ...hum pashim ki tyaraf jaa rahe hain ... .. bhai sahab ,gaadi ki raftaar dheemee karo ...
    September 15, 2011 at 12:36am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora katore main kuchh paise ho to chaloon..wo to imf aur wb le raha hai ..
    September 15, 2011 at 12:50am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora deta thoda hai leta zyaadaa hai .. girvi per chal rahe hain
    September 15, 2011 at 12:54am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora meri to bhaasha bhi dekhiye bhaunchakki ho gayi ...
    September 15, 2011 at 12:56am · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma GHODEY HONGEY TO BECHEY GEY JI??????
    September 15, 2011 at 1:00am · Like
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    Nirmal Paneri
    Nirmal Paneri सर जी घोड़े ..नोटों के 99 के चक्कर में दोड रहें है ...केसे बेच सकतें है !!!!!!!!!
    September 15, 2011 at 5:00am · Like · 1
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    Sarita Chauhan
    Sarita Chauhan ghodey bech kar sona, ufffff..... kitana sukhad swapan hai!
    September 15, 2011 at 6:16am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora ghodon ka chaaraa aur car ke liye petrol ... mahangaayi ne sab white elephant bana diya ...
    September 15, 2011 at 8:55am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora mere paas chaar hain ..!
    September 15, 2011 at 8:59am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora khaate peete vahi hain ..main to unka naukar hoon ..!
    September 15, 2011 at 8:59am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora vo kaun shreshthi the ki jinke darvaazon per haathi bandhe rahte the ... aajkal to vo bhi gale mein talliyaan bandhwaaye ..chandan ke jhoothey se tilak lagvaaye ghoomte rahte hain bechaare ... chaare ke muhtaaj ... ganpati bappaa maaf karna ...!
    September 15, 2011 at 9:03am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora parle g main khaataa hoon ,apne kutton ko bhi khilaata hoon ... kya karoon ...
    September 15, 2011 at 9:04am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora bhaunk rahe hain .. aur pata nahin chal raha ki mere waale hi hain ..mujh per hi bhaunk rahe hain ya .... disha bhram chaaloo hai ...!
    September 15, 2011 at 9:06am · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA Sir koi shaq??????
    September 15, 2011 at 1:36pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora apne puraane chhoot gaye ghar mein dheron gilahriyon se roz mulaakaat hoti thi ,arun ji ... meri dheron kavitaaon mein vo kai kai tarah se aati rahi hain .. ek kavita mere sangrah 'ek samudra chupchaap ' mein bhi hai...mauka laga to vo ya koi aur zaroor apne notes mein jaldi hi daaloongaa ...
    September 15, 2011 at 8:13pm · Like · 2
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    Ved Prakash Vatuk
    Ved Prakash Vatuk apne amerikaa nivaas ko maine sadaa aatm-nirvaasan hee maanaa. ek kavitaa kee antim pankti hai: ek baar banvaas bhogkar phir koyee ghar naheeM aataa/........agar koyee mool paapa hai to vah hai ghar kaa chhoRnaa.
    September 16, 2011 at 5:33am · Like
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder aa----meri bahns ko danda kyo maraa---buffaloes sab kahan gaye---sadak par nazar nahi aateey---a aapka sector 8 ka ghar bahut shant jageh mein thaa--
    September 16, 2011 at 7:28am · Like · 2
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma ek samunder chupchapp....shaant hona shanti ki nishani nahi AA, yeh to ik volcano k fatney k sanket hain!!!
    September 16, 2011 at 1:33pm · Like · 1

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  61. Atul Arora
    September 15, 2016 at 9:24pm ·
    Tota Bala Thakur........
    निर्बल बटुक
    किशमिश से भरी हुई
    मावे की कचौरी खा रहा है
    कुछ ऐसा ही बताती है
    तोता बाला ठाकुर
    काल के साक्षात
    मृत्युविदध क्षण में भी
    चंद्रघंटा के
    जलते हुए कपाल में का स्वप्न
    चटा चट जलता है
    होगी ज़रूर कहीँ शाबलेयत्व
    बाहुलेयत्व अवस्था में
    यह गरिमापूर्ण आस्वादन वेला
    श्यामलनयने !
    लोकप्रवाद से मुक्त इस तृष्ना स्वप्न में
    गहन तुम्हारे प्रणय को देख सकता हूँ
    मान क्रीड़ा तो हुई नहीं
    कोई हमारे बीच
    कभी
    कनखियों के बहाने जो आँखें हमारी मिली हों
    कलंक की क्या बात
    कलुष रहित प्रेम के लगभग नौ दशक
    उज्जवल वेश न भी रहे हों तो क्या
    श्रृंगार विहीन तो कभी नहीं थे
    विप्रलम्भ आत्मा
    मैं
    वहीँ हूँ तुम्हारे साथ
    दाह के इस क्षण में भी
    उत्तम प्रकृति !
    लो , तुम लो , मुझे आलिंगन में
    लो कि मैं ही अग्नि हूँ !

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  62. Atul Arora
    September 15, 2015 at 6:52pm ·
    है तो भेजा ही , है लेकिन दूसरा , शायद कोई तीसरा भी : ३ / अतुलवीर अरोड़ा
    ======================================
    कुछ नहीं है , वीयर्ड कुछ नहीं है ! प्रकृति है ! उसे अभ्यास है ऐसी चीज़ों का। उत्पत्ति और विनाश की , निर्माण और नष्टीकरण की उसकी अपनी प्रकियाएं हैं। तुम करते रहो शोध ! वह एक लम्हे में पहुंचा देगी वहां जहां से सृष्टि शुरू हुई है ! तुम बैठे रहना लैब में।
    आप कौन हैं ?
    मैं तीसरा हूँ।
    तीसरा कौन ?
    शनि !
    यह कौन है ?
    सांप !
    डिब्बे में तो मेरी कोई मुलाक़ात हुई नहीं तुमसे !
    अपने आप से किसी की मुलाक़ात होती ही कहाँ है ?
    अच्छा अच्छा , छिद्रान्वेषी हो ?
    मिटटी के नीचे होऊं या बिल में कहीं , सांस मेरी वजह से आती है तुम्हें। मैं रीढ़ हूँ। कुण्डलिनी ! फेफड़े नहीं खोले तुम्हारे ? ऑक्सीजन कम मिल रही है तुम्हारे शरीर को !
    कहाँ चले गए थे ? बहुत आवाज़ें लगाईं मैंने तुम्हें !
    अपने नाखूनों की तरफ कभी ध्यान गया नहीं लगता तुम्हारा ! जीने की ख्वाहिश हो तो ये मरने नहीं देते आसानी से जबकि ये तो खुद ही मर रहे लगते हैं !
    तुम्हें कैसे पता है ?
    वह चीज़ ही ऐसी है। हर पल चुनौती देती रहती है !
    कौन ?
    ज़िन्दगी !
    उसकी बोलती बंद है , जैसे उलट गयी हो उसकी जुबान, हलक के अंदर। गुत्थी में।
    रात कितनी गरम थी। तपती हुई रेत ! वह पसीने से लथपथ था याकि थी , इतने ठन्डे मौसम में भी ! बाहर बर्फ गिरती रही और यह नंगा लेटा था या थी। अंडे के पीले में लुत्थपुत्थ।एक पीला गले में गरारे रोके बैठा था। उसे उतारा न गया होता नीचे तो जान गयी थी। एक भेजे में में था या शायद ओवरीज में।
    ऑर्गैज़म हुआ था ?
    छिद्रान्वेषी का पहला सवाल।
    इस देश में पीला कुछ ज़्यादा हुआ जाता है ! भ्रष्ट और विध्वंस !
    गीली गाछ हुए या कि सूखा आता रहा ?
    फुहारें नहीं गिरतीं। आने को होती हैं , वापस चली जाती हैं। कभी जब गिरती हैं तो बाढ़ आ जाती है। धारासार। ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती वृष्टि।
    तुम्हारी सृष्टि में जलप्लावन है। अंत तक है। शुरू का सूखा एक भुलावा है।
    तुम जल हो ?
    पल पल जलती आग !
    अनबुझ प्यास !
    हाथों पांवों में मिर्गी का फर्राटा !
    झाग ही झाग मुंह में। लेस ही लेस !
    जम रहा रही है।
    हाथों में , पैरों में खुजली ही खुजली ।
    छातियाँ ही छातियाँ , दूध का ऊफान।
    पूरी देह में कांटें हैं।
    वह पीट रहा या रही है , ज़मीन पर माथा।
    मिर्गी नहीं जाती।
    लिपट गया है जिस्म , जिस्म के साथ। इसका अलग होना मुमकिन नहीं।
    होंठों में से खून चला आया है दांत किटकिटाता हुआ।
    जांघें आबद्ध हैं बाहुपाश में।
    और। .और। और। और।
    तुम शरीर नहीं हो। भेजा ही भेजा हो। गूदा साक्षात !
    वह नाच रहा है।
    आह्लाद शाश्वत में। उन्मादित।
    इसकी तस्वीर उतार सकते हो ?
    भूचाल की तस्वीर में भूचाल नहीं होता ,न ही वह जगह , जहां से उठ रहा होता है अक्सर भूचाल।
    पढ़ते रहो रेखाएं।
    घुमते घूमाते रहो खुद को , भुवन !
    नालबद्ध सृष्टि में नाल नल छेदन !
    राग , यमन कल्याण !
    2 Comments
    3 नूतन यादव, Krishna Kalpit and Surendra Mohan
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia futilely trying to search the epicentre,ever elusive....more erotic,turning neurotic,...more prosaic,less poetic...to what result-null,nichtig...
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    Like · Reply · September 15, 2015 at 11:19pm
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    Virender Kapur
    Virender Kapur Really Amazing, All this is But Natural, Wonderful.
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    Like · Reply · September 16, 2015 at 3:15am

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  63. Share

    Atul Arora
    September 15, 2012 at 5:37am ·
    पक्षी कोई रोता
    चीखता
    छटपटाता रहा
    रात पूरी रात
    नींद में था स्वप्न कोई
    जागता हुआ
    दखल की शिकायत लगातार होती रही
    नुचे खुचे पंख सब
    बुहार दिए हैं
    अब इत्मीनान से मैं बैठ सकता हूँ
    उजले धुंधले बरामदे के हरे कोने में
    सामने के पेड़ पर से
    टपकती रिसती आ रही बारिश की बूंदों का
    मज़ा लेता हुआ
    उसका उजड़ा घोंसला शाख से
    लटक रहा है
    बेखबर हूँ
    अभी तक स्वप्न ही में हूँ ...!
    4 Comments1 Share
    11 Kumar Ajay, Pawan Kumar Jain and 9 others
    Comments
    Reenu Talwar
    Reenu Talwar Wah!
    September 15, 2012 at 5:50am · Like
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    Suman Tiwari
    Suman Tiwari waah baakmaal
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    September 15, 2012 at 10:59am · Like
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    Shiwani Meera Singh
    Shiwani Meera Singh very nice
    September 15, 2012 at 11:47am · Like
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia kahte hain ke 'un kaa' hai andaaz-e-bayaan aur!!
    September 15, 2012 at 9:36pm · Like

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  64. September 15, 2014 at 9:28pm ·
    पता नहीं क्या बात है , मैं जब भी इस मशीन से अपना रिश्ता जोड़ता हूँ इसकी खिड़कियाँ नाचने लगती हैं। कभी आसमान खुलता है कभी उलट कर मुझे ही औंधा कर देता है। कागज़ पर लिखना इधर मुश्किल हो गया है। उंगलियां जाम हो जाती हैं। एक इंजेक्शन ठुक चूका है पर कोई बहुत ज़्यादा फायदा नहीं हुआ। अब कुछ लोगों से बात करने का लोभ भी रहता ही है हालांकि ज़्यादा बात हो नहीं पाती। पंजाबी तेवर आढ़े आते हैं। ऐसी कोई बहुत ज़्यादा मज़ाहिया तबीयत नहीं है मेरी और न ही उनकी जितना मैं उन्हें जानता हूँ।इसीलिए गंभीरता से लिखी हुई बात कभी जब हवा में उड़ जाती है तो क्या कहूँ। क़ोफ़्त भी होती ही है। उन्हें भी होती होगी जो मुझे झेल नहीं पाते होंगे अपनी तबीयत में। तो , मुझे कहना क्या है ? यही की जैसी यह मशीन है वैसे ही हम। .!क्या पता फेसबुक का ही कोई षड़यंत्र हो की लपेटे में आये हो तो बच्चू बच के कहाँ जाओगे। . एकाध चपत तो खा ही लो। घूंसे लात तो शुरू नहीं हुए न.! अब कल से एक बात मुझे भीतर ही भीतर किसी सर्पिल लपेट में लिए है और वह है भी उस कविता के बारे में जो सर्प को केंद्र में लेकर लिखी गयी है। दृश्य जो भी हो , शुरुआत उसकी मेरे ज़हन में वास्तविक और तथ्यात्मक है। लड़की न वाक़ई इच्छा प्रकट की की गली में जाते हुए संपेरे को बुलाया जाए। बुला लिया गया। नाग उसे दिखाया जाए। दिखाया गया। उसने उसे छूने की इच्छा भी प्रकट की और बड़े बड़े साहित्यकारों और कवियों के हवाले हमारे बीच चले आये। उसने नाग को छुआ , बाज़ू से लिपटाया भी। जब नाग ने कुछ और टटोलना चाहा तो उसका चेहरा रुदन और भय मिश्रित पाया गया।संपेरे ने लपक कर नाग अपने काबू में लेने की कोशिश की लेकिन वो तेज़ी से कहीं उसके वस्त्रों के नीचे लोप हो गया। लड़की सुन्न थी। चिल्लाई भी नहीं। सर्प कुछ देर बाद खुद बी खुद बाहर आ गया। हम बड़े सनाके में थे। हलक हमारे भी सूख गए थे। चीखें थीं पर सुनाई हमें खुद को भी नहीं दे रही थीं। …खैर। वह दृश्य और अनुभव मिलकर कल वाली मेरी पोस्ट में चले गए। अब शुरू हुआ टिप्पणियों का सिलसिला। कुछ लोगों ने वह चीज़ पसंद की और कुछ लोगों ने मज़ाक किया। /बनाया। सब चलता है वाला मुहावरा मेरे दिमाग में भी चलता रहा। पर दिमाग आखिर दिमाग है। मुझे चैन नहीं था। मैं अपनी लिखी हुई चीज़ के प्रति गंभीर था कहीं न कहीं। मैं उन कवियों के पास गया जिनकी सर्प पर लिखी कविताएं मैंने पढ़ रक्खी थीं। एक पंक्ति स्मृति में कौंध गयी। फिलहाल आपके सामने रख रहा हूँ। … बहस के लिए। । "She cohabits with the Great snake..but crushes his head with her foot ..."

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  65. Principal Bhupinder You are now dr sigmud arora you write what some of us think but dare not express. You may in some cases link to mythical snake who tempted eve to eat apple. Atul your creative ::paradise : is not lost yet . Stay here m type .you are our Albert camus
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    September 15, 2014 at 9:35pm · LikeShow more reactions
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Sigmund Freud to sambhavtah th,e par kyaa Camus bhii Kaamuk the...vaise,'kaam' par itanaa kaam ho chuka aur likha jaa chukaa hai,aur 'saanp' to ek sex symbol hai hii...nayii bahas kaise,kyon aur kahaan se shuru karen...koyii yeh kaise battaye ke woh itanaa ( ya Itanii?!)kaamasaakt kyon hai....
    September 15, 2014 at 9:54pm · LikeShow more reactions · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia aur bas ek chhotii sii tippanii,serpentine energy par: "If you refuse the energy,you are living a kind of death.'1
    .
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    September 15, 2014 at 9:59pm · LikeShow more reactions · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder atul wrote splendid this is one of best pieces
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    September 15, 2014 at 10:00pm · LikeShow more reactions
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Archetypal FALL now in some places by some (Not All) being reenacted Atul you have aptly started a paradoxical discussion on a "burning" topic
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    September 15, 2014 at 10:16pm · LikeShow more reactions
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    Atul Arora
    Atul Arora Bhatia saahib ko Agneya ki ek kavita "SAANP' zaroor padhni chaahiye kyonki vahaan bilkul mukhtlif sanderbh maujood hai .. shaayad isiliye aur bhi zyaadaa zaroori ...! Saanp kisi aur cheez ke liye bhi jaanaa jaataa hai aur vo cheez manushya mein saanp se kaheen zyaadaa hai ...!
    September 15, 2014 at 10:17pm · LikeShow more reactions · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder I"Wish" Snake n man well but some snakes "wish" if disturbed but some men n women "wish" like hiss even when "wishing " well to others,,,,is it my wishful thinking
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    September 15, 2014 at 10:22pm · LikeShow more reactions
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Ted Hughes ka jo quote aap ne apanii post ke ant mein diyaa hai,woh unke un dinon kii abhivyaktii hai,jab woh 'Crows' kavitaayen likh rahe the,,,Us daur mein woh Bible se bahut sahmat nahiiN the aur apanii kavitaaon mei,God,Satan,Adam,Eve,Snake ko mu...See More
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    September 15, 2014 at 10:28pm · LikeShow more reactions · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia @ Atul Arora,Manushya mein to kayii tarah ke Jaanwar vidyamaan hain...Yakeenan,woh Saanp se kahiin zyaada zahariila hai...Mushkilo to yah hai ke itanii pragatii aur enlightenment ke baad bhii us zahariile dharaatal se oopar nahiin uthataa...Shivji ne to 'Vish' halak mein undelaa aur niilkanth hue...Aisii koshish Manushya kyon nahiin karataa...
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    September 15, 2014 at 10:33pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora Principal Bhupinder ..ka Albert Camus ko yaad karna kaamukta ke hawaale se nahin balki mere hawaale se hai ... Endless and tiresome labour ...biggest punishment ...go on ... without getting fruit ... The Myth Of sysyphus ...!
    September 15, 2014 at 10:34pm · LikeShow more reactions · 2
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Agneya kii laghu kavitaa 'Saanp' padh lii hai maine...Shaharii AAdamii mein zahar ko lekar kkar
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    September 15, 2014 at 10:37pm · LikeShow more reactions · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Yes atul it is your continuous endeavour without expectation but golden letters are coming ou of gyre of Wb YEATS PATTERN ,QUARREL WITH OURSELVES IS POETRY,,,,,YEATS
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    September 15, 2014 at 10:38pm · LikeShow more reactions
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    Atul Arora
    Atul Arora Zahar ke kai paath hain aadhi aabaDi ke paas...Jo dank purush satta sepaaya haiusne uske baad ab main naachyau ..
    September 15, 2014 at 11:18pm · LikeShow more reactions

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  66. ikeShow more reactions
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Ted Hughes ka jo quote aap ne apanii post ke ant mein diyaa hai,woh unke un dinon kii abhivyaktii hai,jab woh 'Crows' kavitaayen likh rahe the,,,Us daur mein woh Bible se bahut sahmat nahiiN the aur apanii kavitaaon mei,God,Satan,Adam,Eve,Snake ko mukhtalif tarahon se interpret kar rahe the...Zyaadatar 'Dark' viw le kar...Antim charan mein un kii kavitaayen Hope aur Light kii baat karatii hain.Sylvia Plath kii searing Tragedy kaa kaaran to Ted Hughes the hii,par ant mein Ted Hughes ne hii Sylvia Plath ke poetic oeuvre ko sametaa aur chhapwaaya bhii...

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  67. Harish Bhatia Here ia another angle to the Snake !?...by Ted Hughes ( He writes differently at different times):Theology
    "No, the serpent did not
    Seduce Eve to the apple.
    All that's simply
    Corruption of the facts.
    Adam ate the apple.
    Eve ate Adam.
    The serpent ate Eve.
    This is the dark intestine.
    The serpent, meanwhile,
    Sleeps his meal off in Paradise -
    Smiling to hear
    God's querulous calling."
    Ted Hughes
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    September 15, 2014 at 11:33pm · LikeShow more reactions ·

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  68. Atul Arora
    September 16, 2014 at 9:31pm ·
    शब्द शापित हैं
    आकाशगंगाओं की तरह
    अनंत में भीगते हुए
    बारिश
    तेज़ आँधियाँ
    उन्हें घेरने की इंतज़ार में
    अपने वात चक्रों सहित
    चलायमान रहती हैं
    अनंत नक्षत्रों की तरफ धकेलती हुईं
    स्फटिकशिलाओं से चमकते हैं कभी
    धरती को विह्वल करते हुए वे
    प्रस्तावित करते हुए अपना निकट आना
    सहसा अपनी आँखों का जल उसे देते हुए…
    रात के अँधेरे में भी पृथिवी अत्यंत
    जीवित नज़र आती है
    मरणधर्मा आत्म
    अनात्म मेरे
    तुम
    बीत गए कवियों की कविताओं में अचानक
    ज़िंदा हो जाते हो ! ( अतुलवीर अरोड़ा

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  69. September 16, 2014 at 9:31pm ·
    शब्द शापित हैं
    आकाशगंगाओं की तरह
    अनंत में भीगते हुए
    बारिश
    तेज़ आँधियाँ
    उन्हें घेरने की इंतज़ार में
    अपने वात चक्रों सहित
    चलायमान रहती हैं
    अनंत नक्षत्रों की तरफ धकेलती हुईं
    स्फटिकशिलाओं से चमकते हैं कभी
    धरती को विह्वल करते हुए वे
    प्रस्तावित करते हुए अपना निकट आना
    सहसा अपनी आँखों का जल उसे देते हुए…
    रात के अँधेरे में भी पृथिवी अत्यंत
    जीवित नज़र आती है
    मरणधर्मा आत्म
    अनात्म मेरे
    तुम
    बीत गए कवियों की कविताओं में अचानक
    ज़िंदा हो जाते हो ! ( अतुलवीर अरोड़ा )
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    13 Swaran Singh, Dariye Achho and 11 others
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder imagery is lajawb such a good poem satire n sadness both
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    September 16, 2014 at 9:32pm · Like · 1
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    Surendra Mohan
    Surendra Mohan सहभागिता ...सुन्दर ...
    September 16, 2014 at 9:33pm · Like · 3
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    मोहन सपरा
    मोहन सपरा भाई, तुम्हारी कविताएँ पढ़ने की तलब हमेशा बनी रहती है, और एक तुम हो कि...
    September 16, 2014 at 9:52pm · Like · 3
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    Swaran Singh
    Swaran Singh मरणधर्मा! फिर भी जीवंत.
    September 16, 2014 at 9:54pm · Like · 3
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Beauty: मरणधर्मा आत्म
    अनात्म मेरे
    तुम...See More
    September 16, 2014 at 10:07pm · Like · 2
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    Devinder Singh
    Devinder Singh Tum beet gaye kaveon ki kavetaon main achank zinda ho jate ho. Beautiful but..dil ke bhdne ke nashtar jaisa.
    September 16, 2014 at 10:36pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia A superb poem/wanted to be translated in English/Although difficult and challenging...Couldn't resist the challenge/Here is my translation then........................................................................................................................Words are accursed/like milky ways/drenched in the eternal...rains/fierce storms/waiting to engulf them/remain active with their whirl-winds/pushing them towards infinite constellations... they shine intermittently like crystalline rocks/overwhelming the earth/proposing their approach/suddenly offering water from their eyes....even in the darkness of night/earth seems exceedingly alive...mortal self/my non-self/you... become suddenly alive/in the poems of bygone poets.
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    September 16, 2014 at 11:43pm · Like · 3
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    Dariye Achho
    Dariye Achho कितनी सुन्दर बात
    September 17, 2014 at 5:40pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Dhanyavaad ...Aabhaari hoon aap sabka
    September 17, 2014 at 5:57pm · Like
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    Jitendra Ramprakash
    Jitendra Ramprakash I like it much -
    not only because it reminds of a feeling similar, that I have worded elsewhere
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    September 18, 2014 at 1:27pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora Post it .I would love to have that feel, Jitendra Ramprakash .
    September 18, 2014 at 6:24pm · Like · 1
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    Jitendra Ramprakash
    Jitendra Ramprakash Atul Ji - I will email it or send it you in personal msg sometime - I have decided not post my poems - for I want Sadho effors untouched by any self promotion
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    September 19, 2014 at 9:37am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Nek khayaal ...
    September 19, 2014 at 6:13pm · Like

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  70. Hindi Pu shared a photo to your Timeline.
    September 16, 2012 at 3:34am ·
    Image may contain: 1 person, stripes and text
    Hindi Pu
    September 15, 2012 at 5:44am ·
    लोग, कवि लोग

    लोग अचानक बाजार में थे
    और उन्हें पता नहीं था
    वे लोग वहीं रहे ।
    कुशल
    या कि अकुशल संसाधन बन चुके हैं
    कहने को विशेषण
    बच रहा है मानवीय।

    जैसे हर वस्तु का मूल्य है बाजार में
    उनका भी था।

    औरतें,
    जो बच्चों के भरण-पोषण में
    घरों के भीतर बाहर
    अहर्निश खटती थीं
    निकम्मी और जाहिल घोषित होकर
    बेकमाऊ-सी बीत रही थीं
    हमारी सामाजिकता में।
    बेहद प्रताडि़त और अपमानित थे।
    प्रश्न खड़े थे
    दायें
    बाएं। क्योंकि
    पूछने की ताकत मरी नहीं थी।
    सूचनाएं
    उत्तर
    जानकारी के स्रोत
    लक्ष्य थे हमारे
    नई शिक्षा के।

    अनुभव और विचार
    शोध के अलंकार
    दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में
    हवाई जहाजों में बैठकर उड़ते हुए
    विश्वभर में इधर-उधर आ-जा रहे थे।

    जीवन के प्रति उत्साह की भाषा को
    तेजी से कवि लोग
    अपनी कविता में दर्ज कर रहे थे। ..

    -अतुलवीर अरोड़ा

    अनुवाद देखें
    1 Comment
    3 गीता पंडित, Ashok Tiwari and 1 other
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    गीता पंडित
    गीता पंडित बहुत सुंदर ....

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  71. Atul Arora
    September 16, 2011 at 5:29pm · Chandigarh ·
    उमेठती जो रहती हो कसता हुआ शरीर
    बालों के ये जुड़े से
    बार बार बनाती हुई
    थोडा कुछ मेरा भी ख़याल किया करो ..
    1 Comment

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  72. ul Arora
    September 16, 2015 at 7:18pm ·
    Aaj nki pahli barsi hai... .
    नरेन्द्र ओबेरॉय : ' नईं , तू मेरी गल नईं सम्झेया '
    ==========
    हेल्यो !
    आपने नंबर डायल किया है उनका और अगर उठाया उन्होंने ही है तो उधर से यह गोल लुब्बालुब्बी धुली घुली सी आवाज़ आते देर नहीं लगती ।
    हंजी , नौजवान ! की हाल ? खबर ? नवीं ताज़ी !
    कुझ नईं जी , ऐंवेंई !
    चल ना सई ! अपना हाल दस दे बस ! कोई ताज़ा कविता है ते ओ सुना दे , साडा दिन बन गया ! नईं ? नईं , तूं मेरी गल नईं सम्झेया।
    अब किसे तो फोन घुमाऊंगा और कौन तो बात करेगा !
    नईं , नो हरी , टेक योर टाइम। वक़त लग्गे ते मैनु ज़रा पढ़ के सुना देईं , गूगल वेख के , की कैंदाई ओ बामा शामा ! यार , कमाल ई हो गया ! भैनचोद , जइतइ फेर दित्ती ! क्या बात ऐ ! सलीब से ईसा उतर गया। । नो , यूं डोंट नो ! आई नो , आई नो , ! बट आई डोंट रिलेट तो द नोन । इट इज़ द अननोन ःविच इस इम्पोर्टेन्ट ! की कैंदा ?
    आवाज़ लगातार बज रही है।
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    13 Balvinder Balvinder, Sadho Poetrytopeople and 11 others
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    Surendra Mohan
    Surendra Mohan एक ही बार मिला उन्हें गौतम की बहन की शादी में ..जैसा आपने लिखा है, वैसी ही जिंदादिल शख्सियत .. तब भी भरपूर युवा थे ... उनकी स्मृति को प्रणाम !
    Like · Reply · 1 · September 16, 2015 at 7:27pm · Edited
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    Reenu Talwar
    Reenu Talwar :) Yes, very very familiar
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    · Reply · 1 · September 17, 2015 at 5:21am
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    Virender Kapur
    Virender Kapur I usually met him at 710/40-A. Was told about his demise today at Lucknow. Bye Dr. Oberoi.
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    Like · Reply · September 17, 2015 at 6:08am
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    Atul Arora
    Atul Arora Poora ek varsh guzar gaya ..N k O ko guzare hue.
    Like · Reply · September 16, 2016 at 1:23am
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    Lalit Mohan Sharma
    Lalit Mohan Sharma Meri shaddhanjali

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  73. R AGO TODAY

    Atul Arora
    September 16, 2016 at 5:55pm ·
    संदिग्ध और विश्वस्त , दोनों प्रकार के सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि तोता बाला ठाकुर की क्रीड़ा व्रीड़ा कविताओं का संसार शीघ्रातिशीघ्र जन विजय के हाथों के तोते उड़ाने वाला है , मैं इस दृश्य में अपने किंचित दखल को विश्राम देता हुआ भारी मन से विदा ले रहा हूँ। खेद सहित। (अतुलवीर अरोरा )
    Ashvaarohi ka 'Ghodaapuraan.'....
    6 Comments
    8 Anirudh Umat, Krishan Sharma and 6 others
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    Asad Zaidi
    Asad Zaidi You sound devastated! :-)
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    LikeShow more reactions · Reply · 1 · September 16, 2016 at 7:40pm
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    Atul Arora
    Atul Arora You r right...All agony and ecstasy gone
    LikeShow more reactions · Reply · September 16, 2016 at 7:56pm
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    Vidya Dhar Dwivedi
    Vidya Dhar Dwivedi धीर न हो अधीर
    LikeShow more reactions · Reply · 1 · September 16, 2016 at 9:04pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Aaj ka din hi aisa hai. Rahasya Raas kucjh der mein khulne ka aabhaas de raha hai. Jai kaali kalkattewaali..Aao baahar apni khooni zihva ki laplapaahat ke saath..
    Ghoraghoraghanghorkavi
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    · Reply · September 17, 2016 at 5:40am · Edited
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    Anil Janvijay
    Anil Janvijay जी, तोता बाला के बाद बदनाम दासी मिश्र आ रही हैं।
    LikeShow more reactions · Reply · 1 · September 18, 2016 at 1:02am · Edited
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    Atul Arora
    Atul Arora Swaagat hai...chhalke Teri aankhon she sharaab aur ziyadah..
    ...
    Shabaab aur zigaadaah

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  74. Atul Arora
    September 17, 2010 at 6:42am ·
    मेरी घटिया शायरी का नमूना :
    चन्दन जैसी खुशबू वाली आँख का काजल लहक दहक
    सारे रिश्ते ख़ाक नामचीन तेरा रिश्ता लहक दहक
    हमने सोचा था हम हैं आबाद हुए बर्बाद तो क्या
    तेरे दम ख़म के चलते में अपनी ढिबरी लहक दहक
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    13 Narendra Mohan, Manjot Kaur Josan and 11 others
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    Shailendra Bhardwaj
    Shailendra Bhardwaj Wah wah atul ji
    September 17, 2010 at 7:54am · Like · 1
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    Surender Varma
    Surender Varma kabhi syahi to kabhi kalam gayee bahak bahk
    September 17, 2010 at 9:45am · Like · 3
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    Atul Arora
    Atul Arora @all>aapki duaan chaahiyein, issay bhi 'ghatiya' likhoonga...!
    September 17, 2010 at 6:30pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora thanku ,sherren hayat..!
    September 17, 2010 at 6:43pm · Like
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    Ratan Chand 'Ratnesh'
    Ratan Chand 'Ratnesh' आज कल लिखे जा रहे फ़िल्मी गीतों से लाख दर्जे अच्छा है. मुझे तो लगता है कि स्वरबद्ध किया जय तो इस साल का हिट गीत साबित होगा.
    September 17, 2010 at 9:37pm · Like · 1
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    Ratan Chand 'Ratnesh'
    Ratan Chand 'Ratnesh' लिखूं मैं भी ऐसा कुछ बन जाए वो लहक दहक
    उन आखों कि मस्ती के पैमाने हों लहक दहक
    September 17, 2010 at 9:43pm · Like
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    Dakhal Prakashan Delhi
    Dakhal Prakashan Delhi आह आपका शेर! सच में बिल्कुल लहक-दहक!
    September 17, 2010 at 10:27pm · Like · 1
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    Neelam Sharma Anshu
    Neelam Sharma Anshu बहुत अच्छे, ऐसे ही ये गीत मुकम्मल रूप ले लेगा।
    September 18, 2010 at 8:48am · Like

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  75. Atul Arora
    September 17, 2011 at 9:21pm · Chandigarh ·
    रंजोगम दे दूं उन्हें तो मेरी क्या परेशानियां
    गुफ्तगू उनसे करेंगी मेरी बदगुमानियां
    आफ़रीं हैं नोश फरमाएं किसी का तंज़ भी
    कहते सुनते बतकही की मार्मिक निशानियाँ
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    12 Prabhat Ranjan, Sankalp Mishra and 10 others
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma KAHANIYAN SUNAATI HAIN YEH HAWAYEN.....THE ANSWER MY FRIEND IS IN THE WIND!!!
    September 17, 2011 at 9:45pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder guftgo ka khela jiwan bhar jhela
    September 20, 2011 at 5:47pm · Like

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  76. Atul Arora
    September 17, 2014 at 9:51pm ·
    दोस्तियां तो पहले भी थीं जो ख़त्म होने के कगार पर हैं। कुछ लोग अपनी वजहों से मुझे छोड़ गए। क़ुछ से मैंने मुक्ति पा ली।वजहें मेरी भी ज़रूर रही होंगी।अब देखिये तो दोस्त कहने के बजाये लोग कह रहा हूँ। होते हम सब लोग ही हैं। लोगियत में लॉगड होने के बाद भी दोस्त हो सकते हैं , होते हैं और नहीं भी होते। लेकिन जो दोस्त होते हैं , सचमुच होते हैं।उन्हें आप अपनी चमड़ी पर महसूस कर सकते हैं। स्पर्श के मुक़ाबिल और कभी कभी न भरने वाले ज़ख्मों की तरह। वे मिलें न मिलें , अचानक भिड़ जाते हैं आप के साथ. बैठे बिठाए। लड़ मर जाएंगे आप उनके साथ … उनके और अपने , दोनों के लिए.. लेकिन इस चेहरे की किताब की दीवारों पर ..! ईश्वर अगर हो , तो बचाओ मेरे आका… !! ३००० की संख्या छूने के बाद मुझे ख़याल आया कि नहीं , यह संख्या तो संखिया होती जा रही है। विषैली। मैंने हाथ रोक लिया। अब धीरे धीरे लोग मुझे छोड़ रहे हैं। कुछ मित्र और हितैषी तो न मैंने छुए न उन्हों ने मुझे छुआ। … चिपके हुए हैं अपनी अपनी दीवारों पर , मेरी तरह। इधर जो संख्या संखिया बन गयी थी अपने आप काम होती जा रही है और मैं खुश हूँ की लोग बाग़ होश में आ रहे हैं , मेरी तरह। पर गति बहुत धीमी है। इसे मैं चाहूँ तो तेज़ कर सकता हूँ पर जैसे चल रहा है , उसमें जो रहस्य है , वह खलता नहीं है। । आओ , मित्रों , मुझे अमित्र करो। । हमारी भलाई इसी में है। ।!

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  77. Principal Bhupinder This is magic prose, what some of us feel Atul Arora writes so vividly n ripe words he chooses....he seem to say ..I Exist despite of you n inspite of you,,mainey "haath rook liya" this line saith all , persons like me are networki...See More
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    September 17, 2014 at 10:01pm · Like
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    Swaran Singh
    Swaran Singh You know, Atul Arora , we have never been 'friends' in the conventional sense, even when we were neighbours - when I lived in EI/82, and you lived in EI/83.

    Un-friending you on Facebook now, however, is just not an option available to me.

    For good or bad, I am stuck with you.
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    September 18, 2014 at 1:24am · Edited · Like · 3
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    Atul Arora
    Atul Arora I think mine was E-1/81.
    September 18, 2014 at 5:55am · Like · 2
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    Swaran Singh
    Swaran Singh "Same difference!"
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    September 18, 2014 at 6:00am · Like · 2
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    Atul Arora
    Atul Arora But I m glad to find this connection so very divine...
    September 18, 2014 at 6:01am · Like · 1
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    Surendra Mohan
    Surendra Mohan never ...फिर ये नोक झोंक किस से चलेगी ... दूसरे तो बुरा मान लेते हैं ...एक तुम ...
    September 18, 2014 at 6:39am · Like · 2
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder I concur sms Atul Arora is magnanimous
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    September 18, 2014 at 6:44am · Like · 2
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    Surendra Mohan
    Surendra Mohan फूक छक जायेगा ...
    September 18, 2014 at 6:45am · Like · 2
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    Surendra Mohan
    Surendra Mohan उसे तो सन 74 में देखा था ... तब सिगरेट बहुत फूंकता था ... क्या अब भी ...
    September 18, 2014 at 6:47am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Hun ta an fiteymunh...na cig,na sharaab,na kabaab te na shabaab
    September 18, 2014 at 7:03am · Like · 4
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    Atul Arora
    Atul Arora Vaisehercheezlayibettaab....@sms
    September 18, 2014 at 7:07am · Edited · Like · 2
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    Dariye Achho
    Dariye Achho :)
    September 18, 2014 at 6:57pm · Like
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia asankhya amitron se nissang soumitra bhale...

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  78. Harish Bhatia asankhya amitron se nissang soumitra bhale...
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    September 25, 2014 at 1:47am · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia lubbelubaab...khaana kharaab...behiss hue janaab...sharaabkabaabshabaab the kabhii behisaab...ab to asabaab uthaa kar kooch karne ke din aaye;khair kare wahaab...
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    September 25, 2014 at 1:55am · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma Atul Arora ji aap se mitrta ka khwab ik swarg ka ehsaas jaisa hai.....izzat hai ki aap k darshan k laabh prapat huey :)
    September 28, 2014 at 8:13am · Like · 2
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    Atul Arora
    Atul Arora Anurodh Sharma
    ..u r some nut, I tell u

    Stay blessed..!
    September 28, 2014 at 5:42pm · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma Atulya ji I am going to save this & make this a s my status...thank you Sir ji !!!
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    September 28, 2014 at 10:26pm · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma Thanks Principal Bhupinder ji....the tea we had at your home was indeed memorable thank you Sir ji !!!
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    September 29, 2014 at 12:42am · Like
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    Balvinder Balvinder
    Balvinder Balvinder duniya ki sa sey barri democracy mey reh rehyen hain janaab; sankhiyaa ka mahtavv to ho ga hi :-)
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    September 30, 2014 at 1:33am · Like · 1
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    Pahlad Aggarwal
    Pahlad Aggarwal आओ , मित्रों , मुझे अमित्र करो। । हमारी भलाई इसी में है। ।!...BOSS YE AAYA HUA BHALAYI KA MAUKA DUSRO KO DENA THEK H KYA...<3
    September 30, 2014 at 11:01am · Like · 1
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    Devinder Singh
    Devinder Singh You do not deserve to be unfriendly.
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    October 1, 2014 at 8:00am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora O yaar , Devinder Singh , Inder Devta ji..hon deyo Jo hunda peyai..aseen kehdi saltanat de haige sultaan
    October 1, 2014 at 9:01am · Like
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    Taseer Gujral
    Taseer Gujral :)
    October 1, 2014 at 10:17am · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Sultan hii ho,bhaiyaa...Abhinn mitra tumhein BOSS kah kar kritaarth kar rahe hain...

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  79. Atul Arora
    September 17, 2014 at 10:55pm ·
    Aate hue waqton ki tasveerain nahin hoteen ...jaate hue lamhon ki taqdeerain nahin hoteen
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    9 You, Nilim Kumar, Shruti Sharma and 6 others
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia tasveeren/taqdeerein kshanbhangur hain,gachchaa de jaatii hain,badaltii rahtii hain...tadbeeron se naataa jodo;sab kaam durust kar detii hain...
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    September 17, 2014 at 11:56pm · LikeShow more reactions · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora "Taqdeer taa n Saadi saunkan si tadbeeraan saathon na hoiyaan "
    September 17, 2014 at 11:59pm · LikeShow more reactions
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Celebrate 'Tadbeer':http://youtu.be/J6cfWroNcNY
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    Tadbeer Se Bigdi Hui Taqdeer Bana Le - Baazi
    Watch the music video of Tadbeer Se…
    YOUTUBE.COM
    September 18, 2014 at 12:01am · LikeShow more reactions · 1 · Remove Preview
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia kuchh baat banii...?! ab yaar,tum to teenon deviyon se aaziz aa gaye. ho..Sangeet bhii tumhen sukoon nahiiN deta ( Ab yeh,Aurangzebii hath chhodo )...Tanveer pesh kar dete,par woh bhii is duniyaa se kooch kar gaye...ab kaa karen ?!
    See Translation
    September 18, 2014 at 12:15am · LikeShow more reactions · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Thanku for the drive...Harish Bhatia
    September 18, 2014 at 12:39am · LikeShow more reactions
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    Swaran Singh
    Swaran Singh Banda vaise Atul Arora be-nazeer hai! Kabhi kabhi kar jaata takhseer hai. Par peeron ka peer hai, doodh vali kheer hai, kabhi Ghalib to kabhi Meer hai.

    Haan, kabhi kabhi paaon ki janzir hai, to kabhi kabhi aankh ka neer hai. ...See More
    September 18, 2014 at 1:01am · Like
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Yahi to samajh nahiiN paaye hum...AtulVIR thaa...VIR hataa diyaa,mahaz Atul ho gayaa...VEER mein apanii Taseer hotii hai...

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  80. Atul Arora
    September 18, 2014 at 10:08pm ·
    जीते जीते
    कभी
    यह ख़याल आया हो
    जिया जा रहा है जो
    यादों का एक जंगल बन जाएगा
    किस्म किस्म के दरख़्त ,
    झाड़ झंखाड़ ,फूल पत्ते कांटे ,
    बेसबब उगते चले जाएंगे वहां
    और तुम
    उनमें से किसी भी एक को
    चुन नहीं पाओगे कभी
    पुनः हरे होने की लालसा में
    याद करने के वक़्त
    यादों का कोई सिलसिला
    अपने बीतते हुए वर्तमान में बैठा सको तुम
    संभव नहीं है
    जीने के क्षण जो बीत गए हैं
    या जो अब
    बीतने की रफ़्तार के लपेटे में हैं ,
    सोख लेंगे तुम्हें
    जीना तुम्हारा नए सिरे से खोदते हुए
    छूमंतर हो जाओगे
    अभी इसी वक़्त
    आता तो होगा ख़याल
    कि यह सब बीत जाएगा
    और तुम बैठ कर जिया हुआ कभी
    अपने पास बुलाओगे
    वह नहीं आएगा
    आया तो एकदम पहचान नहीं पाओगे
    तसवीरें तक मैली हो जाती हैं।
    पीली।
    दागीली।
    वर्कों में चिपकी हुईं।
    कहीं से कोई दृश्य सरक गया है
    कहीं मिट गयी है लौ
    जीवन की
    कहीं नासूर की तरह कुछ फट गया है
    दूसरा ही कोई ज़ख्म रिस आया है उसमें से
    इस जंगल से कैसे निबटोगे ?
    और फिर
    दावानल !
    वह तो पहले से ही रगड़ किसी सूखे में की
    इंतज़ार करता हुआ
    पत्तियों के आलम में सुलग रहा है !
    हरे , ओ हरे !
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    8 Nilim Kumar, Virender Kapur and 6 others
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Friction brings lacerated soul n that leads to poem good feeling type poem keep on ji keep on
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    September 18, 2014 at 10:16pm · Like
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia humarii raakh hii kare gii ab haraa bharaa nayaa gulzaar...yaadein,tasveeren,drishya sab khaak ho jaayenge...hum naa honge,humaarii yaad bhar rah jaayegii...
    See Translation
    September 18, 2014 at 11:08pm · Like · 2
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia 'jaane kyaa dhoondhatii rahatii hain,yeh aankhen mujh mein,raakh ke dher mein sholaa hai naa chingaarii hai.'
    See Translation
    September 18, 2014 at 11:09pm · Like · 3
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    Virender Kapur
    Virender Kapur जो कुछ भी उसने दिया है या दे रहा है उस सब के लिए उसका धन्यवाद करते हुए निबटा लेंगे अतुल जी।
    September 19, 2015 at 1:44am · Like · 1
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    Chitra Mohan
    Chitra Mohan यथार्थ तो यही है
    जो भीतरी रगड़ की आहट पा सुलग रहा है,
    अंतिम परिणिति इसकी दावानल ही,
    पहले मन फिर तन की है ।
    हा समय, हो परे !

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  81. Atul Arora
    September 18, 2010 at 9:36pm ·
    पुराने माल सबने कर दिये बाज़ार से बाहर
    नया नौ दिन के चक्कर में बढ़ाएं हम दूकान क्यों ?
    1 Comment
    13 Prabhat Ranjan, Manjot Kaur Josan and 11 others
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    Ratan Chand 'Ratnesh'
    Ratan Chand 'Ratnesh' उम्मीद से कम चश्मे -खरीदार में आए
    हमलोग ज़रा देर से बाजार में आए...

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  82. Atul Arora
    September 18, 2010 at 2:53am ·
    समंदर भी पूछ थके बादलों ,आकाश से /कब रुकोगे, कब की नदियाँ मुक्त हैं तट पाश से /जलपरी सा तैरती हुईं बदहवास मछलियाँ /लो पटक दीं ,तडफड़aaतीं, पाखी सब हताश से /बाँध टूटे, लेके डूबे ,जीव जंतु , घर उजाड़ /लोग बेबस बच गए जो ,अर्थ के अवकाश से /हैं, हया जो बेच खाए हैं, हवाले ज़िन्दगी /उनकी जलाई आग के ,हम जल रहे है लाश से ...!
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    9 Manjot Kaur Josan, Surender Varma and 7 others
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    Shailendra Bhardwaj
    Shailendra Bhardwaj Kya bat ... Unki jalai aag ke ham jal rahe hain lash se ..... Bahut khub...
    September 18, 2010 at 3:04am · Like
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    Nirmal Paneri
    Nirmal Paneri Khub badya Kataksh !!!!
    September 18, 2010 at 4:06am · Like
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA: aap itni mushkil hindi kyon likhtey ho? kis ko impress kar rahey ho? hum to pehley se hi aap k fan hain:)
    September 18, 2010 at 4:20am · Like
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia @AS/AA :):D
    September 18, 2010 at 4:21am · Like
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    Rewa Rishi
    Rewa Rishi Excellent.
    September 18, 2010 at 5:29am · Like
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    Neenu Kumar
    Neenu Kumar wah!
    September 18, 2010 at 6:44am · Like
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    विनोद शर्मा
    विनोद शर्मा अरोड़ा साहब, बहुत ही दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ दी हैं आपने-
    मार्मिक चित्रण-
    हैं, हया जो बेच खाए हैं, हवाले ज़िन्दगी /उनकी जलाई आग के ,हम जल रहे है लाश से ...!

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    Atul Arora
    September 20, 2012 at 9:30pm ·
    सांस ली थोड़ी सी
    थोडा कुछ कहा
    कहते कहते निकट मेरे
    चले आये पहाड़
    चढ़ना दूभर था
    दूभर था भरपूर लेकिन चढ़ना मुझे पड़ा ..
    कोई कोई चोटी तक
    कहीं फिसलना पड़ा
    सारे के सारे जो निकट आये थे
    वे दूर चले गए
    दूरियों को पूरी उम्र पाट नहीं पाया
    घट घट जो व्यापी था
    वह घाट नहीं पाया ..
    फिर सांस ली थोड़ी सी
    फिर थोडा कुछ कहा
    कहते ही में अपने निकट जंगल को पाया
    जहां मोरों ने बुलाया
    लेकिन मैं मोर बन कर
    नाच नहीं पाया
    पता नहीं कितने कितने जंगल काट आया ...
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    8 Shruti Sharma, Suman Tiwari and 6 others
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia 'Human Condition'...succinctly summed up by a Poet!!
    See Translation
    September 20, 2012 at 9:36pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Ek baar phir,ik khoobsoorat kavita ka anuvaad karane kii dhrishtataa kar rahaa hoon!?: I breathed a pause/
    uttered a brief.

    As I talked,/close upon me/
    Mountains stalked
    Ascent was difficult
    Well nigh difficult ,but I had to ascend

    Some peaks!!/
    Slippingly I peaked.
    One and all who drew near
    Withrew distant afar

    All my life, couldn’t bridge distances.
    Couldn’t find the berth ashore
    That all pervasive shore!!

    Again breathed a pause
    again uttered a brief
    As I uttered,close-by I came upon the forest
    Where voiced peackocks to me
    But I couldn’t become a peacock
    And dance,……..and dance

    How many forests I cleared
    I don’t know.
    See Translation
    September 20, 2012 at 10:28pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Thanku.. Harish ji ...Dhrishthta per badhaayi ...! meri ek kavita jaise aapko bhaayi..angarezi mein aapki vo daudi bhaagi aayi ..meri akal mushkil se thikaane lag paayi ....(.haaaahaaa.....!)
    September 21, 2012 at 5:27am · Like

    ReplyDelete
  84. tul Arora
    September 20, 2011 at 8:01pm · Chandigarh ·
    पढोगे मुझे तो वाही न जो पढ़ सकते हो या फिर पढना चाहते हो .. आखिर तो मैं भी एक लिपि ही हूँ जिसे आप थोडा बहुत पढना जानते हैं ...
    2 Comments
    16 Manoj Chhabra and 15 others
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia tedhi Lipi ho,Bandhu !!
    September 20, 2011 at 8:20pm · Like · 3
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder aa---lipi shipi koi naa jannat-- likh do char silly chtkaley--jokes-- yaan fake id mein apna naam kavita kumari raakh lo---phir dekho comments ki bahar--

    ReplyDelete
  85. Atul Arora
    September 20, 2012 at 10:09pm ·
    कीजिये थोडा कभी मज़ाक कीजिये ...हम इंतज़ार में हमें हलाक़ कीजिये ...!
    1 Comment
    13 डॉ. सुशील चौधरी, Shruti Sharma and 11 others
    Comments
    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma khush kismiti hamari ki aap sweekar kijiyey mazaaq haammaaaar, shukraan sir ji :)

    ReplyDelete
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    Atul Arora
    September 20, 2015 at 6:53pm ·
    नरेंद्र ओबेरॉय : नईं , तूं मेरी गल नईं समझेया : ४ / अतुलवीर अरोड़ा
    =================================
    दूर चली जाती हैं
    बहुत दूर चली जाती हैं
    निकट की चीज़ें
    बहुत निकट की चीज़ें।
    निकट चले आते हैं
    बहुत से कुछ इतना
    दूर चले गए हुए लोग ही लोग
    निकट , बहुत निकट।
    नईं ?
    नईं तू मेरी गल नईं सम्झेया।
    नहीं , यह कहना अनुचित है
    अन्धेरा होता है
    अन्धेरा नहीं होता
    रौशनी कुछ इतनी ज़्यादा चली आती है
    कि अंधी होती आँखों में
    अँधेरे का भरम जैसा होने लगता है
    दीखता है जो कुछ भी
    बहुत ज़्यादा रौशन होकर दिखने लगता है
    रंग बहुत ख़ास
    मसलन, बहुत बहुत हरा और हरे में नीला
    नीला हरहराता
    पीला
    और अधिक पीला
    लगातार
    लगातार।
    काले को काला तुम कैसे कह सकते हो जो नज़र ही नहीं आता
    न लाल रक्तिम लाल।
    ये तुम्हारी नयी
    कुछ भिन्न हो गयी
    उस दुनिया के अंतरंग
    दंग रंग हैं
    भरा भरा उजास।
    उदास नहीं बिलकुल भी
    कैसे कहूँ , उदास ?
    यह अलग ही कोई जगह है
    जहां मैं नहीं न तुम
    न मेरी न तुम्हारी
    मैं कहना कुछ चाहूँ
    और बोलने के क्षण में वह
    हो चुकी होती है
    उसकी मैं जिससे
    सम्बोधित होता हूँ।
    हम नए सिरे से उद्भूत होते हैं
    खुद से अपरिचित
    नए किसी परिचय के लिए
    अपने से बाहर
    भीतर ज़्यादा तड़पते हुए
    अंतराल में।
    कहा जा चुका हुआ नए सिरे से कहते हुए
    भाषा कोई अभिनव।
    नकलों में माहिर उठाईगीर हम !
    भावों और विचारों में संवेदनाएं झोंकते हुए
    फटे पुराने मैले चलचित्रों की प्रतिलिपियाँ।
    मैं कौन हूँ ?
    नरेंद्र ओबेरॉय !
    तुम कौन हो ?
    अतुलवीर अरोड़ा !
    शायद कुछ कुछ हाँ लेकिन ज़्यादातर नहीं !
    समझने बूझने की कोशिश में लगे हुए
    नाम रूप धाम।
    नाटक ख़त्म हुआ।
    वह जगह भी गयी।
    दिन हुआ समाप्त।
    उन्माद कहीं है
    दर्द उसका तीखा
    और तीखा होता हुआ
    हम थक गए हैं।
    अब वक़्त ही वक़्त है
    नींद में टँगा हुआ
    अदृश्य का दृश्य !
    नईं ?
    नईं , तू मेरी गल नईं सम्झेया !

    ReplyDelete
  87. urendra Mohan अद्भुत ! विचित्र है ये संवाद...कि अंततः यादों के संवाद ही टंगे रह जाते हैं ..कालांतर में चेहरे धुंधला भी जाएं तो जाएँ ..संवाद सर्वदा याद रहते हैं..!
    Like · Reply · 2 · September 20, 2015 at 7:43pm
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    Anil Sharma
    Anil Sharma "नाटक ख़त्म हुआ।
    वह जगह भी गयी।
    दिन हुआ समाप्त।
    उन्माद कहीं है
    दर्द उसका तीखा
    और तीखा होता हुआ
    हम थक गए हैं।
    अब वक़्त ही वक़्त है
    नींद में टँगा हुआ
    अदृश्य का दृश्य !
    नईं ?
    नईं , तू मेरी गल नईं सम्झेया !" :-)
    Like · Reply · 1 · September 20, 2015 at 8:55pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Shukriya...ab delete na kar dena pichhli waali ki tarah...
    Like · Reply · 1 · September 20, 2015 at 9:10pm
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    Atul Arora

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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Aaj kal mein dhal gaya/din hua tamaam/zeest khel khatm hua/maut kaa pii lo jaam/tu bhii do jaa so gayii/ rang bharii shaam'''''''''
    Like · Reply · 1 · September 20, 2015 at 9:11pm
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    Virender Kapur
    Virender Kapur Wonderful.जो वस्तु जिस रंग को रिफ्लैक्ट करती है यानि अन्दर नही आने देती उसका रंग वही होता है विचित्र विरोधाभास।
    Like · Reply · September 20, 2015 at 11:03pm
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    Virender Kapur
    Virender Kapur जो चला गया उसे भूल जा?
    Like · Reply · September 20, 2015 at 11:09pm
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma Atulaya ji....ek lekhak hua karta tha.....kehta tha : whats in a name, Rose by any other name would still smell the same !" Main Anurodh Sharma hu ya aisey merey ma baap ne decide kiya jab mujhey yeh bhi na pata tha ki main hu bhi ya nahi.... aaj bhi...main hu ya nahi...ki farak penda hai? Narender Oberoi ji ajj vi haigey ne....shayad jadon sigey oston to jayada...:)
    Like · Reply · September 21, 2015 at 6:08am
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    Shailendra Shail
    Shailendra Shail narendra obrai ki kai baaten, kai aadten yaad aati hain. maine use roshni khote hue nahin dekha. aur haan---kai baar zyada saaf dekhne ke liye aankhen band karni padti hain.
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    · Reply · 1 · September 21, 2015 at 10:28am
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    Gul Chauhan
    Gul Chauhan Great SIR......
    Baarbaar bulaegi yh kavita....

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  88. Atul Arora
    September 20, 2016 at 11:32pm ·
    (Just like that … A reaction in the context of tota Bala thakur’s poetry ..
    अपना तन उघाड़ दिया
    मन के साथ साथ
    जादू टोना तंत्र मन्त्र
    काम ने लूटा
    मिथक सारे भूल गए
    अपनी अपनी चाल
    कूट छल फरेब ह्त्या
    प्रेतवाणी सब
    बन गए चरित्र
    लिंग
    योनि पर टूटा ! )19.09.2016
    Contd….
    21.09.2016
    कोई था
    सिरे से बौखलाया हुआ
    कोई कोई झुंझलाया
    उकताया हुआ भी
    धमकी आ रही थी कहीं से
    उतार लो इसके अधोवस्त्र तक
    जैसे उतार लेते हैं
    खोलकर धर्मी विधर्मी
    उन्माद के सिखाये हुए
    खतना किसी का
    और गाड़ देते हैं
    गहरे
    ज़मीन में
    ज़िबह किये जा चुके किसी
    पशु की तरह
    कामातुर व्यसनी बलात्कारी को
    पाशविक
    झूठा
    छद्म काव्य व्यापार !
    नखशिख प्रमाणित करो
    केश कर्तन करो
    करो भग को करो भग्न
    और नहीं तो करो
    किन्नर
    कौन जाने कौन वानर
    नफरत की हूकूमत को भीतर आने दो
    आंसुओं की लज्जित फज्जित
    औलाद इसकी
    नष्ट कर दो।
    3 Comments
    3 Agneya Dube, Vidya Dhar Dwivedi and Mayank Sharma
    Comments
    Atul Arora
    Atul Arora
    Like · Reply · September 20, 2016 at 11:44pm
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    Atul Arora
    Atul Arora OM SHAANTIHI ....SHAANTIHI... SHAANTIHI...!
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    · Reply · September 20, 2016 at 11:45pm
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    Vidya Dhar Dwivedi
    Vidya Dhar Dwivedi बहुत खूब
    Like · Reply · 1 · September 20, 2016 at 11:52pm

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  89. Atul Arora
    September 21, 2012 at 9:46pm ·
    हमने कहा था कब
    कि आप रहस्य ही बुनें
    रहस्य खोल दोगे सब
    तो कविता सूख जायेगी
    कविता सूख जाए तो
    कवि का क्या करें
    जो सोखता है बन गया
    कविता में
    कथन का
    सूख जाना उसका यूं
    स्वभाव नहीं है
    पर सोख लोगे तुम तो यह
    कविता करेगी क्या
    फिर जान कर न जानना
    और जानना इसमें
    है जो
    गुनाह है
    तो फिर कविता
    करोगे क्या ...?
    2 Comments1 Share
    6 Chitra Mohan, Shruti Sharma and 4 others
    Comments
    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder behtareen likha hai
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    September 21, 2012 at 9:50pm · Like
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    Satish Shukla
    Satish Shukla Bahut khoob......Raqeeb Lucknowi
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    September 21, 2012 at 10:59pm · Like

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  90. Atul Arora
    September 21, 2010 at 7:11pm ·
    लगता है कभी कभी
    जानना क्या है
    जान गया हूँ
    और नहीं तो फिर
    जान जाऊंगा
    एकदम अभी
    जान जाने के बाद...!
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    12 Prabhat Ranjan, Manjot Kaur Josan and 10 others
    Comments
    Vijay Shankar
    Vijay Shankar aatmagyan ke baad,,,,
    Na kuch jaananae yogya,,,
    Na kuch NA-jaananae yogya reh jaata hai,,,
    September 21, 2010 at 7:13pm · Like · 1
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    Ramesh Mehta
    Ramesh Mehta चलो मान लिया कि तुमने जान लिया
    मगर इस का क्या करें कि
    "अभी इश्क के इम्तिहान और भी हैं"
    September 21, 2010 at 7:43pm · Like
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia '...Jaan pyari bhi nahin,Jaan se jaate bhi nahin.'( Uzr aane main bhi hai,aur bulaate bhi nahin)---- darted suddenly in my mind,after musing on your'...jaan jane ke baad...!'
    September 21, 2010 at 7:50pm · Like · 2
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    Nirmal Paneri
    Nirmal Paneri Superb one !!!!!!!!!!!!!
    September 21, 2010 at 8:43pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora jananey ke dheron nuksaan bhi hain....
    September 22, 2010 at 6:48am · Like
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    Ramesh Mehta
    Ramesh Mehta @Atul You mean to say, "Ignorance is bliss".
    September 22, 2010 at 6:51am · Like · 1
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    Ramesh Mehta
    Ramesh Mehta Sahi hai Sherren. Har saans ke saath zindgi kam hoti jaati hai.
    September 22, 2010 at 5:34pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora saans kitani saadh leingey saans hi to hai
    kab nibat legi vo humsey khabar nahin hai
    September 22, 2010 at 8:23pm · Like · 1
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    Reena Satin
    Reena Satin Sherren Hayat, Atul ji's opening lines of this post for you:
    Lagta hai kabhee kabhee
    Jaan-na kya hai
    Jaan gaya hoon
    Aur naheen to phir
    Jaan jaaunga
    Ek dum abhee
    Jaan jaane ke baad...!
    September 22, 2010 at 8:26pm · Like · 1
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    Reena Satin
    Reena Satin :)
    September 22, 2010 at 8:32pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora patli gali se nikal loon ....?
    September 22, 2010 at 8:48pm · Like
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    Pramod Kaunswal
    Pramod Kaunswal सादर सुप्रभात... इससे आगे कुछ ऐसा-
    जान जाने के बाद भी
    लगे कि बाक़ी रग गया कुछ और जानना
    जैसे खुद के बीते दिन
    खुद की उतरती या चढ़ती सीढ़ियां
    नहीं तो फिर यही लगेगा
    जो जानना था
    भूल गया याद न आया
    शरीर का पसीना
    जो उम्रभर बहा
    दिल जो बच्चों जैसा मासूम था
    अब न रहा
    क्यों न रहा जान जाने के बाद भी
    जानना क्या है जान ही तो गया हूं
    इतने सालों में कितना पानी
    जेब से बहती दरिया से पार हुआ।
    ....................(जै हो)
    September 22, 2010 at 9:53pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora जय हो, देवता ....प्रभु ,मेरे ..!.'जान जाने के बाद' में कुछ छिपा लिया था ,कुछ व्यक्त कर दिया...अब आप जो भी अर्थ निकालें ,अपनी अर्थी अभी बची हुई है...जय हो ,बीत चुकी श्मशानी पीढ़ी की ...!
    September 22, 2010 at 10:26pm · Like

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  91. Atul Arora
    September 21, 2015 at 6:48pm ·
    फ़िक्रें और फिकरे / अतुलवीर अरोड़ा
    ===========
    ये चीज़ें ऐसी हैं जो घुल मिल जाती हैं , आपस में।
    बाद में ये अपने मालिक की जान को रोती हैं।
    कल्पनाओं का जन्म यहीं होता है और फिर इनमें युद्ध छिड़ जाता है।
    जीवन और मृत्यु !
    बोध के धरातल पर खड़ी शाश्वतियाँ !
    चिंता के चित्त में लगातार मंडराती हुईं।
    जलाप्लावन से जूझती हुईं।
    तुम अमरत्व की दिशा में सक्रिय हो रहे हो और यकायक असहाय और खलास !
    कौन है वह जो अजनबी है तुम्हारा और जिसके प्रति सम्बोधित हैं तुम्हारी तमाम आदिम प्रार्थनाएं ?
    तुम्हारी तो प्रार्थनाएं तक आतंकित हैं कि आ कहाँ से रही हैं !
    जिस बिंदु या जिस छोर से चलकर जिस बिंदु या जिस छोर की तरफ जा रही हैं , वह किसी उपस्थिति से व्याप्त है कि नहीं ?
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  92. Kapur, Surendra Mohan and 4 others
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia sirf ek subatomic bindu hai,humare antastal mein, jahaan se sab shuroo hotaa hai,aur jahann sab shesh ho jaata hai...shesh sab kuchh tamaashaa,ek lambaa swapn hai...makadjaal,jis mein ulajhe,lipate,tarah tarah ke khel,ulatbaaziyaan,daanv lagate rahate hain....koyii apane maalik,ya sambandhii kii jaan ko nahiin rotaa...uske guzar jaane se jo khaliipan vyapt ho jaataa hai,use trast hokar rota hai...
    Like · Reply · 1 · September 21, 2015 at 8:30pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Aapke pass aakhiri ved vaakya hai harek cheez ko lekar..main to. khaali ko bhartalikhta hoon , Guru ji .khushphami meri...
    Like · Reply · 2 · September 21, 2015 at 8:54pm · Edited
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia hadd ko dhoondhate rahate ho...aur hadd kahiin hai hii nahiin...anahad naad main doob jaao,paar lag jaaoge...
    Like · Reply · September 21, 2015 at 8:55pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Aur main soch raha tha main anhad ke bheetr hoon ..aapne baahr se keel thonk diya..analhaqq...!
    Like · Reply · 1 · September 21, 2015 at 8:59pm
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia ab keel,kaantaa chubh/khubh gayaa,use nikalne mein lag jaao ge...
    Like · Reply · September 21, 2015 at 9:04pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Vo khol lega ji.chaabiyaan aur screw d usike pass hain.
    Baaki aapka naach nachaiya..Atomautumn
    Like · Reply · September 21, 2015 at 9:08pm
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia aise karo:anaap-shanaap ke monologue likhte raho,enact karo,video banaao,YouTube mein Upload kar do...achhe actor to ho hii...kuchh 'creative work'posterity ke liye siikhana laayak chhod jaao...(Main swayam yahii karne kii soch rahaa hoon...Ek hii manch par ikhathe utarna to mushkil ho gaya hai ab!!)...
    Like · Reply · September 21, 2015 at 9:08pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Sarvagyaanisarvvyaapi...
    Like · Reply · September 21, 2015 at 9:10pm
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Uske paas koyii chaabiyaan,scewdriver nahiin hain;,zyaada uchhalKood machaaoge to,tumgein Inferno mein daal dega...'FireDance' karte rahanaa bhasm ho jaane tak...
    Like · Reply · September 21, 2015 at 9:11pm
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Bas Omnipotent hii nahiin....Ho gaye naa khalaas/khassii...antatah...hahahahahahahahahahahahahahaha....................teen taal ka thekaa Accompaniment to your FireDance !!
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    Like · Reply · September 21, 2015 at 9:15pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Kitni der khalaas ho jaane ke baad..? Kab take ka theka..Anhad..?
    Like · Reply · September 21, 2015 at 9:19pm · Edited
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia :):)
    Like · Reply · September 21, 2015 at 9:44pm
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia button dabaao,aur jitani der chaaho,nacho;theka bajataa rahegaa,jab tak ke tum thak kar dher na ho jaao..Anathak bajata rahe gaa...
    Like · Reply · September 21, 2015 at 9:46pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Connection to chaahiye naa..And then every connection has a disconnection too..! Anhad..!
    Like · Reply · September 21, 2015 at 10:00pm
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    Atul Arora

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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Connect!Connect!! Forster baar baar kahate rah gaye. Connect hii to nahiin karte tum. Anhad shuroo kaise ho...
    Like · Reply · September 21, 2015 at 10:53pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Vo theka bhi apke pass hi hai
    Like · Reply · September 22, 2015 at 12:35am

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    6 YEARS AGO TODAY

    Atul Arora
    September 23, 2011 at 8:05pm · Chandigarh ·
    मैं उसे शायद कभी
    देख नहीं पाता
    अगर उस वक़्त खुद वहां न होता
    जहां से वह मुझे दिखाई दे रही थी
    उसकी उत्सुक पूंछ
    दीवार पर ठहरी थी
    ज़रा देर दिशाओं के मुआयने के लिए
    फिर वह मुड़ी
    मेरी तरफ मुंह किये
    ऐसे देखने लगी
    जैसे कि पीछे से
    इस तरह अपना
    देखा जाना उसे
    बिलकुल पसंद नहीं
    बिलकुल पसंद नहीं
    उसे दीवार पर
    हमेशा के लिए
    ऐसा वैसा बना रहना
    थोड़ी देर
    अपने को दिखाकर वह कूदी
    और मेरे पलक झपकने तक की
    ज़रा सी पाबंदी में
    कब वह उतरी नीचे
    जाने कब झाड़ियों की
    जंगली कुछ पालतू
    सरसराहट हो गयी
    पता नहीं सच ...

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  94. armila Bohra Jalan, Prabhat Ranjan and 8 others
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    Atul Arora
    Atul Arora Arun ji , abhi thodi baaki hai ... comments mein poori karoonga ..
    September 23, 2011 at 8:07pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora दीवार के हिस्से पर
    जहां वह ज़रा देर
    नर्तकी की देह में फुदकती टपूसी थी
    अब तक लरजता है

    हिस्से का हिस्सा
    गिलहरी समेत फरार हो चुका है
    आकाश की तरफ ...

    मैं उस गिलहरी को उड़ते हुए देख रहा हूँ
    आकाश की तरफ
    उसे मैं फुदकता आता देख रहा हूँ
    दीवार से अपनी तरफ
    वह मुझे झाड़ियों की सरसराहट सी
    फैलती हुई सुनाई दे रही है
    जंगल जंगल जंगल जंगल ....

    हालांकि जैसी अभी मैने देखी थी वह
    अब इस वक़्त
    कहीं आस पास नहीं है .......
    September 23, 2011 at 8:14pm · Like · 2
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    पंकज मिथिलेश व्दिवेदी
    पंकज मिथिलेश व्दिवेदी बहुत खूब. शुभ प्रभात, मित्र.
    September 23, 2011 at 8:27pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder palak jhapktey hi badal jaata sansar--khoobsoorat kavita gehri sooch
    September 23, 2011 at 9:10pm · Like · 2
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    Leena Malhotra
    Leena Malhotra behtareen
    September 23, 2011 at 9:44pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora sabhi mitron ka aabhaar ...
    September 24, 2011 at 8:15am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Arun ji ,aapne us din gilahri ka zikr na kiya hota to is kavita ka smaran mujhe is tarah na aata.. ab to iski smriti ka ek aur sanderbh jud gaya na ... vaise yah kisi ko sambodhit karke bhi likhi gayi thi .. uski smriti ka zikr phir kabhi ....like click karne ka silsila bhi dekhiye to kitna adbhut hai ... aabhaar ...ek baar phir ...
    September 24, 2011 at 8:33am · Like
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder galhari as leitmotif in atul poetry---a man killed for rs 27 i am deperessed

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    5 YEARS AGO TODAY

    Atul Arora
    September 23, 2012 at 8:29pm ·
    भावनाएं / संभावनाएं
    भावनाओं की भी एक व्यवस्था होती है
    भीतर इंसान के
    लगता नहीं है
    कि संस्कृति ने उसे कुछ
    बेहतर बनाने में
    हमारी मदद की है
    की होती तो ज़िंदगियाँ
    दूसरों की इतने
    अपमान
    अवमानना की शिकार नहीं होतीं
    जितनी अभी हैं
    हमारी व्यवस्था में
    या तो फिर
    हम कोई दिमागी चोट खायी
    पीढ़ी के हाकिम हैं
    शताब्दियों पहले के
    आदिम ताकतों के पैरोकार
    हमारी भेजे का कोई एक हिस्सा भरपूर जंगली है
    करुणा का वहां कभी कोई उद्रेक नहीं होता
    जीवों का तो खाते है तर्क जुटाते हुए
    मनुष्य के मांस तक का भोग लगाते हैं
    पकाते परोसते हुए
    सारे सम्बन्ध हमारे
    भव्य दूकानों के
    शो केस में सजी सजाई
    जिंदा खुराकें हैं
    आकर्षक लिबासों में एकदम तैयार
    पैकिंग खुलने तक
    किसका गला रेतेंगे
    कहाँ कब चाकू से
    रिप रैप रेप ओपन मन्त्र पढ़ते हुए
    इतिहास के सबसे खौफनाक अध्याय
    हम जो बनते जा रहे हैं
    सूदखोर जमाखोर
    हमारी पूँजी पर लगे न फिर ग्रहण क्यों
    श्राप नहीं पाप
    बदले की कामना
    ईश्वर ने ली थी तो तुम भी तो लोगे अब
    खुद से ही खुद
    शताब्दी तुम्हारी का है नया काव्य न्याय
    संभावनाएं
    थक कर जब चूर हो जाती हैं
    आदमी के आदमी होने का एहसास
    आदमी के भीतर तभी रौशन होता है
    हमेशा होता रहेगा कहना नामुमकिन है
    संभावनाएं
    आखिर तो संभावनाएं ही हुआ करती हैं ...
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    9 Sharmila Bohra Jalan, अविनाश कुमार तिवारी 'सन्नि' and 7 others
    Comments
    Bhupinder Brar
    Bhupinder Brar क्या बात है? बहुत अच्छी लगी.
    September 23, 2012 at 8:48pm · Like
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    Anil Sharma
    Anil Sharma काव्यात्मक खरी - खरी !!

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  96. Atul Arora
    September 23, 2015 at 7:12am ·
    मखमल जी , मखमल तुम
    ऊना उनते जाना : अतुलवीर अरोड़ा /
    बुनती में मैल इसकी
    तहों तक जाती हुई
    धुल नहीं पायेगी
    रेशम तो रेशम है
    कठिन इसकी कठिनाई का
    क्या करोगे अब
    मिला लो सूत
    रूँ का रोआँ रोआँ
    ऊन भी धुना लो
    कृत्रिम
    जोड़ कर सिला लो
    भाषा पकड़ी जायेगी
    ज़ुबान से जो उतर कर
    बिस्तर में आयी है
    कांटे साथ लायी है
    भीतर पशु बैठा है
    कैसे भूल जाएगा वह ज़ालिम तमीज
    आदतें
    ब्यौहार
    पंजे
    नाखून
    गढ़ते जाएंगे
    अनचाहे भी
    गप्फागप्फ गुम्प्फे
    सभ्य
    तकिये
    उजले रूज बादल
    शब्दों के नीचे तुम जहां जहां बिछाओगे
    हिंस्र होकर
    छिन्न भिन्न करते जाएंगे
    सारे के सारे तार
    उलझ
    खिलज जाएंगे
    तंग आ जाओगे
    खूंखार छिपी बिफर बिफर आती
    चली आती हुई
    आततायी नफ़रत
    इतना बीमार समय
    अफरा तफरा आया है।
    देख लिया है मैंने होंठों को तुम्हारे
    यह हिलती हुई ठुड्डी
    बेरहम इशारे
    तुम्हारी शालीनताएं बेपर्दा हो गयीं
    कैसे तुमने कहाँ कहाँ
    टिका टिका कर मारा है
    बेशक ,
    तुम्हारी जुबान मखमल सी मुलायम है !
    आफरीन बाप !
    उफ़ ,इतना कितना ताप !
    1 Comment1 Share
    9 Abha Gautam Sharma, Virender Kapur and 7 others
    Comments
    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Mulayam zubaan/Hinsr jism.......

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  97. Share

    Atul Arora
    September 24, 2012 at 6:59pm ·
    निचुड़ा हुआ कॉर्पोरेट
    उसका वज़न कुल मिलाकर तीन पौंड बताया गया
    बस इतनी सी सृष्टि
    सारी संवेदनाएं
    कल्पनाएँ और स्वप्न
    वहीं जन्मे थे
    वैचारिक्ताओं और रोज़मर्रा कर्मों के सीधे टेढ़े लक्ष्य भी वहीं तन्मय थे
    कुछ भी करता वह
    जीने के लिए
    मरता ज़रूर
    करता
    करने ही को अधिकार मान कर
    झरता ज़रूर
    डरता
    लड़ता हुआ बाज़ारी अफरा में तफरी भी करता
    ठग ठगाई भरता
    ठगा खड़ा रहता
    सहता घेरों को घरों ही के अंदर होकर सुरक्षित भी
    ढहता ज़रूर
    पीड़ा तो थी
    उसके होने की पीड़ा
    जद्दोजहद भी
    स्वीकार अगर करता
    प्रतिरोध कैसे धरता
    हरता बीतते हुए
    बीतता
    समय और स्थान में विभाजित
    जरता ज़रूर
    पराजित उसकी देह के
    उतने
    कितने वज़न ने
    उड़ने की ताकत कब खो दी थी
    उसे पता नहीं चला
    बुझी बुझी रौशनी में
    धीरे धीरे निचुड़ता हुआ
    कोर्पोरेट जगत में कहीं गुम हो रहा था
    दूसरों के लिए ज्यादा
    अपने लिए कम
    यहीं कहीं एक दिन
    यकायक सी चीख में
    खुद की सुनाई में की खौफनाक चुप्पी में
    गर्क हो गया
    वह
    जहां उसे हमेशा के लिए भूला जा सकता था ..

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  98. Atul Arora
    September 24, 2014 at 9:16pm ·
    ऐसे भी होते हैं शब्द
    लिखे जाने के बाद
    अक्सर सुनाई तो देते हैं
    दिखाई नहीं देते
    ढूंढना फ़िज़ूल है
    एक रेखा होती है
    खिंची रहती है
    खींची नहीं जा सकती
    ढूंढने से पहले ही मिल जाती है
    सोचा हुआ अक्सर भूल जाता है
    लिखते लिखते ही
    कभी सोचते हुए भी
    लिखे हुए का सोचना तो हो जाता है
    शोचनीय है पर
    लिखना
    फिर सोचना
    फिर सोच को न लिखना
    ढूंढो न ढूंढो उदास करता है
    खिलखिलाते शब्द भी अक्सर अचानक
    फूत्कार में बदलते है
    चीत्कार भी
    खिलना
    खिलखिलाना
    हो नहीं पाता
    ढूंढ खुद अपने को ढूंढते ढूंढते
    श्वास निश्वास में गर्क हो जाता है
    थक मर जाता है।
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    18 Nilim Kumar, Virender Kapur and 16 others
    Comments
    Puneeta Chanana
    Puneeta Chanana The first four lines! Ahh.
    See Translation
    September 24, 2014 at 9:21pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia ah...again,the compulsive temptation of translating and reciting good poetry...my newfound interest...
    See Translation
    September 24, 2014 at 9:23pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Words. Are. Fiery sparks or. Can be. Fire. Douser
    See Translation
    September 24, 2014 at 9:23pm · Like · 1
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    SP Arora
    SP Arora "Doond khud Apnei ko doondtei doondtei" epitomizes the inner journey of every poet. Salute. ...
    See Translation
    September 25, 2014 at 4:28am · Like · 1
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    Brij Walia
    Brij Walia HAPPY BIRTHDAY ATUL
    BRIJ
    "THE WALIA FAMILY USA"
    See Translation
    September 25, 2014 at 10:16pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Happy. Birthday. Atul. Very best in life
    See Translation
    September 25, 2014 at 10:22pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Happy. Birthday. Atul. Friend
    See Translation
    September 25, 2014 at 11:33pm · Like · 1
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    Brij Walia
    Brij Walia The whole poem is Ahh

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  99. Atul Arora
    September 24, 2015 at 9:18pm ·
    कॉलर ट्यून : अतुलवीर अरोडा /
    मांगो चाहे न मांगो , वे दे देते हैं। मुफ्त में भी नहीं , अपने आप ही पैसे भी ठोक देते हैं।फिर कभी अपने ही आप उसे बदल भी देते हैं। अच्छी चूत चालाकियां कर लेती हैं ये कंपनियां।
    बताते हैं , तेरी कॉलर ट्यून बज रही थी। मैं पूछता हूँ ,कौन सी ? तो वे बताते हैं , गायत्री बजा करती थी पहले , अब हरे रामा करता फिरता है तू।
    नाम नहीं लेता उनका , बड़ा मसला हो जाता है नाम लेते ही। उनके कुछ फिकरे हवा में लटके हैं। छिम्मियों की तरह बजते हुए !
    सुबह सुबह ही अच्छा नाम याद करवा देता है तू। तेरी इस कॉलर ट्यून की वजह से ही शायद बेड़ा पार हो जाएगा किस दिन हमारा।
    वे मेरे जवाब की प्रतीक्षा नहीं करते।
    सुबह सुबह ही ! सुबही !
    हाँ , ,सच सुबही का मतलब जानता है तू ?
    यार , क्या शब्द बनाया था उसने। सुबही !
    मतलब , टोटा रात का तो पियो थोड़ी थोड़ी सुबह सुबह ही , सुबही शराब ! उसका सारा काव्य इस सुबही में से निकला है।
    मैं उनकी आवाज़ सुन रहा हूँ। हाँ हूँ मेरी बेमतलब की। की कैंदा , पूछेंगे तो करेंगे इंतज़ार मेरे जवाब की। नहीं तो फिर किस्सा , सुबही का बार बार.!
    'गगन मय थाल ' की स्क्रिप्ट उसकी थी लेकिन गार्गी ने उससे उसका लेखकीय रुतबा छीन लिया था। यार , हरामज़ादागी दी हद्द है, हद्द ! तैनू पते लॉ कॉलेज दे गेट ते मैं ते बटालवी , असीं पिकेटिंग कीती सी जदों ऐ नाटक ओत्थे खेलेया जा रिहा सी।
    रेकार्डिंग मशीन होती कोई मेरे पास तो मैं उनकी ऐसी स्म्रतियां उनकी आवाज़ में भर भरा लेता।
    भरभरा कर टूट रही है किसी की आवाज़।
    सहमति के रिश्ते होते हैं सब ! टूटी ज़रा सी सहमति कि रिश्ता ये जा , वो जा।
    मोयां सार न काई !
    ये कॉलर ट्यून उनकी है लेकिन अब नहीं बजेगी ! मेरी सहमति थी , लेकिन रिश्ता ! ये जा वो जा !
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  100. Atul Arora
    September 24, 2016 at 10:01pm ·
    हुम्मा हम्मी गुंजन
    पुष्पगंध मन भुंजन
    मिरचा डींग काली का दाना
    भुनगा शहदीला मरजाना
    बैठे बैठे आयी चुप्पी
    डंक सी
    ललराई
    लललुप्पी
    जलथल कूप से
    निकली कुप्पी
    कुप्पी में थे मोती मूंगा
    हींगा धींगा मुश्ती खूँगा
    शब्द की कुश्ती ,
    वाक् में टूँगा
    मस्तक उड़ा तो उड़ा पहाड़
    तिसपर चिंतन गया पछाड़
    सड़कें खाली शहर मसान
    दिल में उठते थे तूफ़ान
    भाव में घाव करें घमसान
    बस्ती बस्ती में कश्मीर
    घुपे तो घुपा करे शमशीर
    घिरे तो घिरा करे आकाश
    रक्त में रक्तिम हुआ पलाश !

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  101. Atul Arora
    September 29, 2010 at 8:18pm ·
    मैं एक लगभग बुर्जुआ हूँ ,दोस्तों ..!छोटी कार , मकान वाला/शहर में दूकान वाला /बीवी बच्चे परेशान वाला सड़कों पर दौड़ता हूँ /साठ की रफ़्तार पर..
    आपने लेकिन देखा होगा /इतनी ही सी गति मात्र में/ आदमी और आदमी
    के बीच का फर्क/ आसमान हो जाता है ./.एक ज़मीन पर लुच्चा कमीन बना /उड़ती हुई नज़र में /थुक्का फजीहत
    का सामान हो जाता है..दूसरा पुश्तों की पुश्तें संवारता/ टुच्चे बैंक बैलेंस की शान हो जाता है ...
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    14 Prabhat Ranjan, Surender Varma and 12 others
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia How very true,Gautam!! All of us are petty bourgeios,clinging to our colourful masks:)
    September 29, 2010 at 9:51pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora mera khayaal tha lagbhag sab kah dega ..per ab 'neech ' hi kahna padeyga is aadmi ko...dookaandaari mein mubtila hai aakhir ..kaamgaar to hongey hi is ke paas bhi ... laabhaanvit bhi hota hi hai ...Marx ke shhastra mein is ki ijaazat nahin hai shaayad ... deceptin mein to har koi dhadaaley se nimagna hai...
    September 29, 2010 at 10:19pm · Like
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    Surender Varma
    Surender Varma petit-bourgeois was more than covered in 'lagbhag'..poetry expresses by synthesis-philosophy explains by analysis.....poetic truth you know...
    September 29, 2010 at 11:58pm · Like · 2

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  102. Atul Arora
    September 29, 2011 at 8:46pm · Chandigarh ·
    कहाँ चले गए वो दिन जब कहीं भी बैठ कर लिखना पढना हो जाता था ..अपनी कहानी को भी वास्तविकता ही समझ लिया जाता था ...लिखना पढना लगभग खुलआम इश्क करने जैसा था ...सांप की तरह पूरा अस्तित्व कुंडली बन जाता था...फनफना सम्मोहन ...! लहराता ...लपलपाता हुआ ... ! कौन दिशा गए श्याम .....?
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    14 Divyabha Divyabha, Kamal Prakash and 12 others
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder likhna padna ---ek man ki mauj hai meethi kheer ki rarah likhna padna bhi ek sweet dish hai
    September 30, 2011 at 12:42am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora jinhein abhyaas ho jaataa hai iska , unhein yah susu-potty ki tarah aataa hai ...aur jab chhootane lagta hai yah abhyaas to dikktein kuchh kuchh vaisi hi hoti hain jaise susu-potty mushkil ho jaane per ....tab yah tedhi kheer ho jaataa hai ...
    September 30, 2011 at 2:05am · Like · 1
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    Anita Dagar
    Anita Dagar Atul ji it very enriching reading your updates..
    September 30, 2011 at 2:36am · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder tedi kheer khoob kaha---ultey log teedi kheer hum oldies ki ulti ginti--atul ki kavita ultey pultey sab sey pungarti--pathak hi jaanat hey lekhak kaa haal --emotional constipation hoo to atul likhey hum padey--emotional release hoo to atul likhey hum pathak padey--sab release kaa chakkar hai swarn sahi mein sab bahar ko aata hai
    September 30, 2011 at 2:44am · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA....sab yahin hain......its just a state of mind :)
    September 30, 2011 at 3:21pm · Like · 2

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  103. Atul Arora
    September 29, 2012 at 11:06pm ·
    वह हँसता है
    हम रोते हैं
    और जगत को / की
    मिथ्या ढोते हैं
    फिर मिथ्या में जो सत्य छिपा है
    बीज उसी का बोते हैं .. !

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  104. Atul Arora
    September 29, 2015 at 9:42pm ·
    ठेठ फेसबुकिये कॉमेंट : अतुलवीर अरोड़ा /
    मेरे मित्र सरदार स्वर्ण सिंह जी पता नहीं कहाँ चले गए हैं ? काफी दिनों से मेरे ऊपर उनकी कोई मेहर नहीं हुई है। तंदरुस्त हों सही , यही मनाता रहता हूँ।
    देखो जी , मन चंगा रहना चाहिए। नहीं तो वह जो बड़ा मिथकीय दरिया है , माँ की जगह लेता हुआ। कठौती में आता नहीं है !
    उनकी एक बात अक्सर याद आती है। ठेठ फेसबुकिया कॉमेंट।
    क्षमा करना , भाई , आपकी पोस्ट पर लाईक क्लिक का बटन तो मैं बिना सोचे ही दबा देता हूँ। अब ऐसा कोई बेईमान भी नहीं हूँ। होता तो इस तरह इतना सोचने का जोखिम क्यों उठाता ? बात दरअसल यह है कि कहने लायक स्थिति हमेशा होती नहीं है मेरी और जब होती है तो बहुत देर हो चुकी होती है। वैसे सच यह भी है कि लाइक करता हूँ तभी लाइक दबाता भी हूँ , सोचने की प्रक्रिया में बाद में दाखिल होता हूँ। शायद मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए।
    मैं कहता हूँ , क्यों नहीं ?
    वे असहमत ही बने रहते हैं।
    फितूरी मैं अपनी चाल में फिकरे लिख देता हूँ।
    लाइक यू लाइक यू करते करते लव यू लव यू कह बैठा।
    फिर सोचा तो पता चला मैं कितनी गलती कर बैठा !
    दिलफेंक किस्म का इंसान । गलती तो हो ही सकती है न !
    नहीं यह वो नहीं कह रहे , मैं कह रहा हूँ।
    और मेरे कहने में सौ शगूफे।
    अभी कुछ दिन पहले एक अज़ीज़ कवि की कुछ पंक्तियाँ ,बड़े मासूम तसव्वुर में से चमक कर पैदा हुईं अचानक मेरे करीब से गुज़रीं तो मैं बेहूदा ढंग से वहीं कुछ ऐसा चस्पां कर आया जो बाद में मुझे वहां से हटाना पड़ा। डिलीट की व्यवस्था अच्छी व्यवस्था है लेकिन कभी कभी डिलीट होने के बावजूद आपकी टिप्पणी गायब नहीं होती तो आप बड़े असमंजस में पड़ जाते हैं कि अब क्या हो ? तो आप तरह तरह से सेंध मारने /लगाने की कोशिश करते हैं कि जो गलत आप कर आये हैं ,उसमें कुछ सुधार हो जाए लेकिन जद्दोजहद फ़िज़ूल !
    कठिन कार्यवाही ! दरारें बड़ी होती जाती हैं और आप नंगे होने लगते हैं। सेंध फिर सेंध नहीं रहती और नाज़ुक खयाली किसी की आपकी फितूरी उड़ान के साथ आप ही के ज़हन में उजड़ कर वीरान होने लगती है ।
    अगर मैं कहूँ या पूछूँ कि यह वीराना ऐसे कैसे जन्म ले लेता है ?
    मेरे मित्र सरदार स्वर्ण सिंह जी के पास इसका कोई जवाब हो न हो लेकिन वह यह ज़रूर कहेंगे कि बड़े खतरनाक सवाल पूछते हो , यार ! कुछ करना पड़ेगा तुम्हारा ! नहीं तो प्रिटेंड करना तो सीखना ही पडेगा कि तुम्हारा सवाल समझ में नहीं आया !
    तो ?
    तो , फिलहाल चाँद की फसल चांदनी ! लहके कहीं नीला तो नील नीले श्याम मेरे , बजाना अपनी बांसुरी !
    सरदार स्वर्ण सिंह जी , मितर पियारे , कहाँ हो ?

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  105. 15 Rachna Vasisht, Ajay Singh Rana and 13 others
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder You are the most ingenuous of all "bloggers" and what you write is so unexpected n brain teasing ..one says ... wow.. .I hope Swaran Singh is in good health now.. .he was in hospital for some days.. .I again wish him good health
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    Like · Reply · 1 · September 29, 2015 at 9:58pm
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Viyang king ...Atul Arora yo yo yo
    Like · Reply · 1 · September 29, 2015 at 10:00pm
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder
    Like · Reply · 1 · September 29, 2015 at 10:01pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Love u
    Love u ...
    Like · Reply · 1 · September 29, 2015 at 11:17pm
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    Atul Arora
    Atul Arora
    Like · Reply · 1 · September 29, 2015 at 11:18pm
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder
    Like · Reply · 1 · September 29, 2015 at 11:18pm
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    Atul Arora
    Atul Arora U r out of d world...All superlatives will become breathless.
    Like · Reply · 1 · September 29, 2015 at 11:22pm
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    Atul Arora
    Atul Arora
    Like · Reply · 1 · September 29, 2015 at 11:25pm
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Talent like yours made dictionary makers find superlatives. ...your style of writing is worldclass.. .you have that dark humour n art of putting together sublime n ridiculous to create razor sharp satire. ....aur Atul Arora jo na samajey woo ANARI hain
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    Like · Reply · 3 · September 29, 2015 at 11:25pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Main Anari tu khilaadi.
    Like · Reply · 2 · September 29, 2015 at 11:27pm
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    Atul Arora
    Atul Arora
    Like · Reply · 2 · September 29, 2015 at 11:28pm
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Tu khiladi hindi critics anari kyon ki tu nahi jugadi
    Like · Reply · 2 · September 29, 2015 at 11:28pm
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma Atulya ji SS Sir k barey jaankaari na hona khud me ik swal hai......main to sirf yeh keh sakta hu....." Arrey Bhai itna sannatta kyon hai???"
    Like · Reply · 3 · September 30, 2015 at 2:26am
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Swaran Singh is in the PGI,getting treated for jaundice...will be discharged in a couple of days .
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    Like · Reply · 2 · October 3, 2015 at 9:30pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Get well , Man ..Stay blessed..
    Like · Reply · 2 · October 3, 2015 at 10:16pm
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    Rachna Vasisht
    Rachna Vasisht Ai 'kehne mein sau shagufe' type 'dil phen.k kis.m ke insaan'..we like the 'like you, like you,love you' ehsaas. It comes from the heart. It bonds, connects, gives hope and rejuvenates.
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    Like · Reply · 2 · October 4, 2015 at 5:48am
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    Atul Arora
    Atul Arora O thanku, vishishtaadvait ji .rachna .
    Like · Reply · 1 · October 4, 2015 at 6:28am
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    Rachna Vasisht
    Rachna Vasisht Keep it simple yaar. Itne vazni lafz kai ku waste karta? Ab jo bhi kaha accha hi hoga.
    Like · Reply · 1 · October 4, 2015 at 6:32am
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    Atul Arora
    Atul Arora Vasisht ko mainey vishishta kar diya...meaning special , exception, ...then added adwaita...non dual...a kind of bhakti..Rachna ...you know.. Creation.
    .
    Like · Reply · 2 · October 4, 2015 at 8:45am
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia kya baataan hain...Rach Bas Gaye,Atulya...
    Like · Reply · 1 · October 4, 2015 at 10:47am
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    Rachna Vasisht
    Rachna Vasisht Thankyou Atul :)
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    Like · Reply · October 4, 2015 at 4:29pm
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    Atul Arora

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    Atul Arora
    Atul Arora Marhoom Miter piyaare Sardaar Swaran Singh ji di yaad vich...
    Like · Reply · 2 · September 29, 2016 at 7:21am

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  106. Atul Arora
    September 29, 2016 at 10:26pm ·
    पीछे की तरफ देखने वाली
    आँखों ने देखा
    स्वप्निल आँखों को
    परेशान हो गयीं
    विचित्र इनकी दुनिया
    सबके सब नज़ारे
    बेहद करारे
    दूर बहुत दूर
    ऊंचे टिमकते
    आकाश के सितारे
    हमारे न तुम्हारे
    लौटीं जब धरती पर
    धरती वीरान मिली
    उन्हें अपना पीछे की
    तरफ देखना
    खो देना
    अश्लील लगा बहुत
    भविष्य
    वह देख नहीं सकती थीं
    वर्तमान
    अचानक रेत हो गया था..

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  107. Atul Arora
    October 1, 2015 at 11:15pm ·
    नयी कोई दुनिया / अतुलवीर अरोड़ा
    समन्दरों के समंदर माथा पीट रहे थे
    लहरों को खदेड़ते हुए
    अपनी छाती पर से
    लहरें ख़ौफ़ज़दा थीं
    भागीं
    पहाड़ों की तरफ
    मीलों लम्बे श्वास खींच कर
    स्तब्ध खड़े रह गए पहाड़
    नदियां व्याकुल थीं
    उनके पास जाने की कोई जगह नहीं थी
    पहाड़ झुके
    और डूब गये समन्दरों में
    निःश्वास छोड़कर
    गहरे
    और गहरे
    समन्दरों को
    तल
    ताल देते हुए
    भूचाल
    सारे खामोश हो गए !
    आदमी नए सिरे से जन्म ले रहा था।
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    11 Ruchi Bhalla, Ganesh Pandey and 9 others
    Comments
    Đeep Înder
    Đeep Înder waah... bahut khoob. ...
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    · Reply · October 1, 2015 at 11:33pm
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    Atul Arora
    Atul Arora aakhiri pankti ki jagah agar ye do panktiyaan rakh doon to ?...कहीं कुछ नए सिरे से गलत हो रहा था
    आदमी एक बार फिर जन्म ले रहा था।
    Like · Reply · 1 · October 1, 2015 at 11:35pm · Edited
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    Đeep Înder
    Đeep Înder Yeh kavita ko aur strong bna dengi
    Like · Reply · 1 · October 1, 2015 at 11:37pm

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  108. Atul Arora
    October 1, 2014 at 9:57pm ·
    कलाबाज़ी थी
    लग गयी
    लगानी नहीं चाही थी
    फिर भी लग गयी
    हटाओ इसे
    जीने नहीं देगी अगर इसी तरह लगती रही
    फूल को फूल कहने में शर्म आती है
    कुम्हला जाएगा
    धूल
    मिटटी को धूल
    कहीं उड़कर आँख न अंधी कर दे
    शूल
    कहीं भी उगने लगते हैं
    उनके ज़रा से इशारे पर
    कितने आश्वस्त दीखते हैं वे
    तुम्हें करतब सूझ रहे हैं
    हटाओ इसे
    भाषा के साथ मज़ाक मत करो
    महंगा पड़ सकता है
    फिर कहोगे मज़ाक हो गया
    जाओ
    चले जाओ
    व्याकरण के पास
    ज़िन्दगी से उधार ले लो उनकी
    जो खेलने के तमाम गुर पेट ही में सीख कर आते हैं
    नियम ताक पर रख कर
    अजदहा
    खूब अजगरी पेट बन जाते हैं
    आएंगे
    लौटकर बार बार वहीं
    और निकल जाएंगे
    आगे
    फिसड्डी तुम
    बैठे रहोगे
    करतब काम नहीं आएंगे
    या फिर एक काम कर सकते हो
    और
    तो करो उसी को
    गोली मारो खुद को इस तरह कुछ
    कि लगे जाकर उनको
    करतब तुम्हारा आखिर
    किस दिन काम आएगा
    हैल्लो , मिस्टर इंडिया !
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    8 Virender Kapur, Satyapal Yadav and 6 others
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    Satyapal Yadav
    Satyapal Yadav Waah ji,..sir.
    October 1, 2014 at 10:38pm · Like
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Bitter ness. Plethora.. all. Negativity. No.. solutions. Cribbing about life.. pythom stomach why not eagle flight to some progress however little
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    October 1, 2014 at 11:10pm · Like

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  109. Atul Arora
    October 1, 2014 at 12:24am ·
    यह लड़की प्यार करती है तो इसका मतलब यह नहीं कि काटेगी नहीं। मन आ गया तो पूरा मन लगा कर काटेगी। हल्का फुल्का तो यूं ही काट लेती है। चलते चलते ही। कभी जी भर कर काटती है तो छोड़ती नहीं जब तक दांत और जबड़ा थक नहीं जाते। आज कैसे भी मज़्ज़ल जड़ दी और इसका नहाना हो पाया है। नहलाया तो नहलाने वालों ने है पर मैं ऐसे थक गया हूँ जैसे पहाड़ चढ़ उतर आया हूँ। कुछ भी लिखना कुछ मुश्किल ही लग रहा है।
    चलो यही सही।
    कुछ का कुछ हो जाता
    तो भी
    कुछ का कुछ भी न होता
    कुछ ऐसा है कुछ में
    कुछ कुछ
    होता कुछ
    कुछ न होता।
    1 Comment
    12 Virender Kapur, Swaran Singh and 10 others
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia achchhii ladakii...kaatatii hai par khoon nahii.N karatii...
    See Translation
    October 1, 2014 at 12:49am · Like
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  110. Atul Arora
    October 1, 2012 at 11:16pm ·
    आज सुबह से ही मैं पड़ोसियों की दीवारों पर चढ़ने को आतुर हूँ .. पता नहीं फांद कर कब अंदर घुस जाऊँगा ... ख़याल रखना भाइयो ..!(बहनों से मुखातिब नहीं हूँ ..)
    7 Comments
    11 Madhav Singh, Preetam Thakur and 9 others
    Comments
    Surendra Singh Bhadauria
    Surendra Singh Bhadauria क्या सिक्किम मे हो ..वहा ही बोमेनिया है.
    See Translation
    October 1, 2012 at 11:26pm · Like
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder banda too freudian hai--par natkhat balik padosi key doggie sey bach keh rehna aur cctv bhi laga hoo gaya so yahan aajaa 27 sectortumko apple juice peeney koo doonga
    See Translation
    October 1, 2012 at 11:26pm · Like · 2
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    Ratan Chand 'Ratnesh'
    Ratan Chand 'Ratnesh' पडोसी अच्छे हैं शायद...
    October 2, 2012 at 7:45am · Like · 2
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    Atul Arora
    Atul Arora shaayad ..!
    October 2, 2012 at 8:07am · Like · 1
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    Vijaya Singh
    Vijaya Singh nice.
    October 2, 2012 at 9:23am · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Jaise Georg Samsa giant insect ban jaataa hai...hahaha...
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    October 3, 2012 at 6:04am · Like · 2
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma welcome to sudama's kutiya......achha kiya advance me bata diya....aap ke welcome ka pukhta intizaam kiya jayeyga :)
    See Translation
    October 5, 2012 at 5:26am · Like

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  111. Atul Arora
    October 1, 2011 at 7:19pm · Chandigarh ·
    छोटा अपना टब्बर
    उसमें चार चार गब्बर
    गब्बर गब्बरी गुबारों सा
    उड़ फट जाएगा
    जो भी होगा, होगा
    बेलिया कालिया न होगा ...!(ढिशुम ढिशुम ठा...!!)
    19 Comments
    8 Anand Mohan Pathak, Principal Bhupinder and 6 others
    Comments
    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder merey tabbar --do sher dabang--raat ko 10 bajey gate band --mey billa chalak rakhta duplicate key apney pass--sau jata sher dabang--mey ganey gaon banda mey malang--KITNEY AADMI THEY KALIA--
    October 1, 2011 at 7:36pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder HB---HAAN JI GHAR MEY AB SHER SHERNI RAHTEY --main too darpook rat ban gaya--bill mein chipa rahta--yaa ration dhoota--mein ab ek bas khoota -donkey
    October 1, 2011 at 8:36pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora vahaan bhi kai baithe hain ... de-nominate karne waaley 1996 mein ho chuka hai .. ab tamannaa nahin hai .. kavita bhi thoda aaraam kar rahi hai ..zyaada tunke maar kar bhi kya ho jaana hai ...kaalaa beliya !
    October 1, 2011 at 8:37pm · Like · 2
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder aa---tu hamarey dilon ki sahitya akademi kaa sartaj hai--khoob kavita likhta hai humara atul sher--
    October 1, 2011 at 8:38pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora sher aur shaayari ko juda kaise kar sakte hain ... kabhi kabhi sher jungali bhi ho jaate hain ...shaayari ki jungle main bhi koi akela sher ho sakta hai ...!
    October 1, 2011 at 8:42pm · Like · 2
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    Ramesh Mehta
    Ramesh Mehta Harish, this filbadi shayari is leading towards post-post modernism. LOL
    October 1, 2011 at 8:42pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Post Ghost Modernism,sires...!
    October 1, 2011 at 8:44pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Jugaadiyaa Togaadiya hote to tabhi le liya hota ...! AAAAjpeyeeshaajpeyees...?
    October 1, 2011 at 8:46pm · Like
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder hb--i first sigh and then tell u that even in real life all say--bhupinder is a funny character--mew--bow bow--mey angrezi kavita ka tiger banana mangta --tiger tiger burning bright--WILLIAM BLAKE--
    October 1, 2011 at 8:56pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Take Take Take ...shake bhoopi shake ..!
    October 1, 2011 at 8:59pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder HB--RAHI JUGAD KI BAAT--ATUL KAHA LAGA PAYEGA JUGAD YEH TO FILM MEIN VILLIAN ban kar bhi life mein bholuu hi raha--yeh bechara to ek do kavita ka anthology bhi na publish kar paya ab mujhey hi kuch jugad lagana padega--shayri mein jugad jaisey kavita mein pahad--mew bow bow
    October 1, 2011 at 8:59pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder atul maan maan terey mein nahin abhiman to ek sidha insaan jai ho
    October 1, 2011 at 9:00pm · Like · 2
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder aa--demominate bahut khoob word likha wah ji wah--decompose ,derail,defy,dessicate,degenerate,degrade----yeh hai aaj kal good poetry ko darkinar karneywala caucus
    October 1, 2011 at 9:05pm · Like · 2
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder caucus --demominate krney waley big big sher--mew
    October 1, 2011 at 9:05pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder hb---becket bola--nothing happens no body comes it is awful--par atul harish dono hum jaisey pathak aur darshak key dil dimag mein rahtey --mein tum dono par umarey ghar mein goshti karonga ek din --jab tum log izazat doogey--caucus karey jugali---humarey atul harish hain asli kalakar--kya jaaney deminators kaa sansaar --jai ho
    October 1, 2011 at 9:23pm · Like · 2
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder hb--golden kya phrase hai --like it as i have many gold coins
    October 1, 2011 at 9:30pm · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma ik si rubber......likhya si tubber.....ban gaya gabber....rubber ne mita ditta gabbar :)
    October 1, 2011 at 10:37pm · Like · 2
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA:)
    October 2, 2011 at 2:23am · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma Princy :)
    October 2, 2011 at 2:45am · Like

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    7 YEARS AGO TODAY

    Atul Arora
    October 1, 2010 at 8:04pm ·
    पेड़ की कोई आँख है /आग को देखती हुई /सर्पीली थिरकन में नाचता है धुंआ / नंगी सूनी दीवार की /खुरच भरी औकात /बदल जाती है ...भाषा में रौशनी /कुछ इस तरह भागती है /कि शब्दों कि दरारों में से निकल आते है किवाड़/ खिड़कियाँ / चमकते हुए रौशनदान.... जेल की कोठरी में विचार सुलगते हैं....
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    13 Manjot Kaur Josan and 12 others
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA: kab hongey hum is jail se....isi intizaar me pal pal jal raha hu main!!!kab hogi wo subah jab bharat azad hoga!!!
    kab??? kab??? shayad merey jeetey ji to nahi!!!
    fir bhi yu kabhi kabhi merey dil me yeh aag jalti rehti hai!!...See More
    October 2, 2010 at 1:05am · Like · 2
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    Virendra Raj Mehndiratta
    Virendra Raj Mehndiratta wah wah wah bohut bariya ........ shabdon ki dararo se mujhe tou roshni chahiey . roshni jo sbhi andhero ko cheer saake ........
    deewaro ke distempr se aajkal roshni ki pehchan ho rahi hai
    atul, tomorow kanta,myself rakesh aprajita and satvika all r goin to dharamshala. isse roshni ki talash mai .....
    October 2, 2010 at 7:42am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Dharamshala...?...Buddham sharanam....??...all of you...????...'God 'bless U....!!
    October 2, 2010 at 8:11am · Like
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    Ratan Chand 'Ratnesh'
    Ratan Chand 'Ratnesh' जेल की कोठरी में सुलगने वाले विचार की अग्नि बहुत दूर तक फैलती है...
    October 2, 2010 at 6:08pm · Like · 1
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    Reena Satin
    Reena Satin Waah..
    कि शब्दों कि दरारों में से निकल आते है किवाड़/ खिड़कियाँ / चमकते हुए रौशनदान.... जेल की कोठरी में विचार सुलगते हैं....
    October 18, 2010 at 6:41pm · Like

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  113. Atul Arora
    October 1, 2010 at 12:20am ·
    गुब्बारों की तरह उड़ रहे हैं पेड....
    कलाबाजी खाता हुआ आकाश /हो रहा है /गुत्थम गुत्थ /अपने ही शरीर में ...
    नज़र कहीं टिकती नहीं /फिर भी कहीं टिकती तो है ...
    कैसे कोई बिंदु शरीर /धरती पर लौटता है /आदमी बनता हुआ...
    हालांकि ऐसे चक्र में /धरती कहाँ होगी /जब आकाश ही इस कदर दुर्घटना में है...!!
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    11 Manjot Kaur Josan and 10 others
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    Neenu Kumar
    Neenu Kumar चारों और धुआं ही धुआं है
    कुछ सुझाई नहीं देता
    हाथ को नहीं पहचानता
    एक काट रहा है
    एक चीर कर साफ़ निकाल जाता है
    काला गहरा धुंआ
    परिंदों की चीत्कार
    नदियों की पुकार
    कोई सुन रहा है क्या?
    अरे, देखो
    वो एक पेड़
    पड़ा है धरती पर
    अब तो केवल ठूंठ ही बचा है
    जड़ें तो कब की सूख चुकीं
    धरती जर्जर हो चुकी
    आसमान सफ़ेद हो चला
    इंसान अभी भी सोया है
    कुभ्करण की नींद
    उठेगा तो कुछ नहीं बचेगा
    शायद अभी जाग जाए
    शायद धुंआ छट जाए!!!!
    October 1, 2010 at 3:36am · Like
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA: merey sar k upar se gujar rahi hain aap ki baat...maafi chahta hu iq kam honey k liyey:)
    October 1, 2010 at 6:12am · Like
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    Reena Satin
    Reena Satin हालांकि ऐसे चक्र में /धरती कहाँ होगी /जब आकाश ही इस कदर दुर्घटना में है...!!
    वाह, अतुल जी, वाह!!
    October 1, 2010 at 8:32am · Like
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    Reena Satin
    Reena Satin October tak kee aap kee saaree rachnaayen ek baar aur dekheen. Kya inheen mein woh panktiyaan hain jo mil naheen rahee theen, ya aur bhee koi hain?
    October 18, 2010 at 6:43pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Home page per 'thaaliyaan...'walli aur abhi wali 'pakshi aakaash ' ... devnaagri mein milli kya...? agar mili hain to meri nazr zaroor kamzor ho gayi hogi ...Thanku,Reena for making such loving efforts... i'm obliged...
    October 18, 2010 at 8:35pm · Like · 1

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  114. Atul Arora
    October 2, 2016 at 9:28pm ·
    तेरह चौदह वर्ष पहले जब किन्हीं विवशताओं की वजह से मैं और मधुरिमा पंचकूला में अपना घर -ठिकाना निश्चित करने के निर्णय पर पहुंचे तो इस ख़याल से बिलकुल नहीं कि हरियाणा हिंदी प्रदेश है और यहां वजूद के स्तर पर चंडीगढ़ से बेहतर या भिन्न किस्म की कोई बहुत मार्का लड़ाई हमें जीने लड़ने को मिलेगी या हम अपनी कोई अलग पहचान बना सकेंगे अपने सृजनात्मक धरातलों पर। मधुरिमा शुरू से ही अंग्रेजी में लिखती आयी हैं और मैं हिंदी में। दोस्तों और जानपहचान वालों ने मुझे अलग से बधाई दी कि मैं हिंदी प्रदेश में जा रहा हूँ जबकि मुझे ऐसा कोई मुगालता नहीं था और मधुरिमा का बस चलता तो वह चंडीगढ़ कभी न छोड़ती। सच तो यह है कि पंचकूला में हमें ज़्यादा ज़मीन वाला घर उतने खर्चे पर मिल रहा था जितने पर उससे आधा भी चंडीगढ़ में शायद मुनासिब नहीं था।हमारे पास दो से तीन और फिर चार और फिर कितने ही बच्चे (पेट्स) थे जिनके लिए ज़मीन कुछ ज़्यादा और आँगन बाग़ की सहूलियत और भरोसा था। हिंदी बेचारी तो दूर दूर तक कहीं नहीं थी। दूकानदार तबका या फिर पुराने चंडीगढ़िये ही थे जो चारों तरफ फैले हुए थे और अब खुद को पंचकूलाइट कहने कहलवाने में मुब्तिला थे। कुछ ख़ास हिस्सा ऐसा भी था जो राजस्थान से यहां आ बसा था और कुछ ठेठ हरयाणवी जो व्यावहारिक स्तर पर जीवन जीने की अपनी ख़ास प्रादेशिक शैली में भीतर ही भीतर निचुड़ रहा था हालांकि उनकी संततियां अमरीका या दूसरे देशों में अपनी तरह की जद्दोजहद में मसरूफ थीं।कुल मिलाकर यह दुनिया ट्राई सिटी की दुनिया में घुल मिल रही थी और मॉल्ज़ और मेट्रो की आमद की इंतज़ार में थी। मॉल्ज़ को आने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगा। टूटी फूटी सी आयी टी पार्क जैसी चीज़ें भी चली आईं जबकि मेट्रो को अभी बहुत वक़्त है। इस बीच मध्य मार्ग की ट्रैफिक आपाधापी बढ़ती गयी। तरह तरह की बड़ी गाड़ियों की रफ़्तार का मंज़र गाली गलौच से भर गया। लेकिन मानसिकता में दकियानूसी का आलम पूरे हरियाण को पछाड़ दे रहा था और सत्ता के धरातल पर भी एक अजीब पिछड़ा मानस ही हावी हो रहा था।दरअसल यही वह बिंदु है जिसके जरिया मैं वह बात कहने की कोशिश में मुब्तिला हूँ जो गाहे ब गाहे आज की सोच के बीच एक गहरा गड़ाप है जो हमें सदियों पीछे धकेल सकता है पूरे देश की सांस्कृतिक अग्रसरता के बीच। आप कहेंगे ,मैं कहना क्या चाहता हूँ ? शायद कुछ वह जो महेंद्रगढ़ की किसी यूनिवर्सिटी में हाल ही के विवाद को शैक्षिक वातावरण और उच्च शिक्षा तथा रिसर्च इत्यादि se जोड़ता है और जे एन यू के बरक्स कुछ कुछ वैसे ही वैचारिकता का सवाल उठाता ही कि आखिर हम विवेचना को खुली और सोच के मंच से विलग क्यों कर रहे हैं। किस किस्म की मजबूरियाँ है कि हम बेवकूफी भरे 'बैन' और बंदिशों की जकड़न में खींचे चले जाते हैं ज़रा ज़रा सी बात पर ? संस्कृति , विचार और राजनीतिक सोच का बदलता हुआ ग्लोबल परिदृश्य हमें अपनी कूढ़मग़ज़ छिछोरी सोच से आगे बढ़ने में मदद क्यों नहीं करता जबकि चप्पे चप्पे पर हम ग्लोबल की जकड में खुद ब खुद जाने के लिए बेताब भी नज़र आते हैं।टेक्नोलॉजिकल प्रगति को अपने हक़ में हड़पने को तैयार लेकिन महाश्वेता की कहानी 'द्रौपदी " की हक़ीक़त से मुँहामुँह नहीं हो सकते। क्या वजह है कि एक मंच हमें खुली बहस की तरफ खींचता है और दूसरा अपनी पिछड़ी हुई सोच के जाल , पाखण्ड और प्रपंच के ज़रिये राजनीयतिक धरातल पर सर्थक बहस को खारिज करने लगता है?किस किस्म के हिंदी - हिन्दू (?) प्रदेश में ?
    3 Comments
    7 Surendra Mohan and 6 others
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia We have to eat,and live with,the concoction of the times...
    See Translation
    LikeShow more reactions · Reply · October 3, 2016 at 1:17am · Edited
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Tu kamal likhta hain.
    Kya khata hain
    LikeShow more reactions · Reply · October 2, 2016 at 10:01pm
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar सार्थक हस्तक्षेप के लिए नमन! विशेषत: " हिन्दी -हिन्दू" जैसी विषाक्त विचारधारा की ओर प्रश्नवाचक (?) संकेत करते हुए। !! सादर

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  115. Atul Arora
    October 2, 2015 at 10:00pm ·
    अंकुरायेगा , बीज कुछ यूं ही / अतुलवीर अरोड़ा
    होता तो होगा ज़रूर कोई व्याकरण
    सांध्य उसकी भाषा का
    धोखा नहीं देता
    जब तक खाना न चाहो !
    ऐसे सीधे सीधे अपने आप चली आती है
    जटिलाई नहीं
    कहीं
    बिलकुल भी
    वैसे ही।
    तरलताएं इसकी
    जैसे लोल
    कल्लोल
    गीले
    रक्त अगन होंठ
    जुम्बिश भर उकसाते
    तासीर को बताते
    चुंबन कोई चीन्हा हुआ
    इच्छा भर हो
    लेकिन दिया कभी लिया नहीं
    हिया ही में हो।
    मखमल मासूम आया अर्थ
    भला चंगा
    मस्तकायी आँख
    लोच
    लोचन में फांक
    अनुवाद किसी अनजानी अन्य पानी
    भाषा का
    ध्वनित गुनगुन संगीत
    स्वाद
    स्वरित
    त्वरित गीत
    सुर सुरीला
    सुरा का मद
    हठीला
    कहो कविता
    कहानी कहो
    सीखो
    पढ़ाओ
    इसका व्याकरण भुलाओ !
    नहीं तो यह भाषा अभी
    उन्मुख होते होते ही
    उन्मुन हो जायेगी
    मिटटी में इसके जो बीज छिपा आया है
    यूं ही अंकुरायेगा
    नहीं तो फिर चुपके
    से नष्ट हो जाएगा !
    तर्जुमा ना तर्जुमा , तुम पीटते रहना ढोल !

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  116. Harish Bhatia Unique !!
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    · Reply · October 2, 2015 at 10:07pm
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia गीले
    रक्त अगन होंठ
    जुम्बिश भर उकसाते
    तासीर को बताते
    चुंबन कोई चीन्हा हुआ
    इच्छा भर हो
    लेकिन दिया कभी लिया नहीं
    हिया ही में हो।...Beautiful poetic manifestation of desire...
    Like · Reply · October 2, 2015 at 10:09pm
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    Đeep Înder
    Đeep Înder kamaal. ...
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    Like · Reply · October 2, 2015 at 10:28pm
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia 'Saandhya' hai yaa 'saadhya'??...please clarify...So I can recite & record correct !!
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    Like · Reply · October 2, 2015 at 11:00pm
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia somehow,somewhere,your poem takes me to Sudeep Sen's poems 'Sixteen Movements on Erotica" ( titled 'Love','Kiss','Desire','Longing'...and so on...)
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    Like · Reply · October 2, 2015 at 11:57pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Saandhya Bhaashaa.……
    Like · Reply · October 3, 2015 at 1:43am
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia OK ,Bhishma Pitamah !!
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    Like · Reply · 1 · October 3, 2015 at 7:05am
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    Atul Arora
    Atul Arora Hahaaaa... But then ,I can't help it . It is a kind of riddled language...vajrayaani poets wrote in this language...Tantra saadhakon ne bhi isi ka sahaaraa liya.. I
    Like · Reply · October 3, 2015 at 8:30am · Edited
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    Madan Gandhi
    Madan Gandhi superb
    Like · Reply · 1 · October 3, 2015 at 10:41am
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    Govind Singh
    Govind Singh Bahut Sundar!!!
    Like · Reply · October 2, 2016 at 8:56am

    ReplyDelete
  117. Atul Arora
    October 2, 2012 at 8:09pm ·
    पत्तियों में सिसकियाँ
    किसी पेड़ की पत्तियाँ सूखती हैं
    और हम उसपर
    पतझड़ की आमद की सूचना को पढ़ते हैं
    सचमुच देखे सोचे समझे
    गौर किये बिना
    यही वजह होती है कि ओझल हो जाती हैं
    डालों पर से झूलती हुईं
    टूटी हुईं रस्सियाँ
    सुराग हो सकती हैं जो हत्याओं
    आत्महत्याओं का
    लाशें अगर गायब हैं
    तो इसका मतलब यह नहीं कि वारदातों से भी
    इनकार कर दें
    गिरती हुईं पत्तियों के भीतर रुंधे श्वास उनके
    सिसकियाँ भी तुम्हें सुनाई नहीं दें
    तो हैरतंगेज़ करिश्मे को देखना
    अपराध और दुःख कुछ ऐसे भी होते हैं
    जो घटित तो धरती पर ज़रूर होते हैं
    लेकिन हवाएं उनकी अनसुनी आवाजें
    अपने साथ अक्सर ले उड़ा करती हैं
    आकाश में खिलती हुईं
    वनस्पतियों की
    शिराओं में उनके आलेख
    लिपिबद्ध करती हुईं ...!
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    10 Dariye Achho, Neelotpal Ujjain and 8 others
    Comments
    Dariye Achho
    Dariye Achho Bahut bahut sundar
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    October 2, 2012 at 8:11pm · Like
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia ...ek samvedansheel kavi kii srijnaatmak kalam se...kya baat hai !!
    See Translation
    October 2, 2012 at 8:20pm · Like
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    गीता पंडित
    गीता पंडित आकाश में खिलती हुईं
    वनस्पतियों की
    शिराओं में उनके आलेख
    लिपिबद्ध करती हुईं ...! ,,,,,,,,,,,,
    See Translation
    October 2, 2012 at 8:34pm · Like
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    Rachna Vasisht
    Rachna Vasisht run.de shwaas..
    aah ko chahiye ik umr asar hone tak..
    See Translation
    October 2, 2012 at 11:34pm · Like · 1
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    Taseer Gujral
    Taseer Gujral wah !
    October 3, 2012 at 12:12am · Like

    ReplyDelete
  118. Atul Arora
    October 3, 2014 at 8:51pm ·
    मिलते तो होंगे कभी
    अपने आप से
    आप
    जैसे मुझे यह मुगालता है
    कि मिल ही लेता हूँ
    मैं भी कभी कभी
    अपने आप से
    हालांकि सुनता हूँ
    खो दो
    बस खो दो
    बेसबब उड़ा दो
    कहीं चला जाए
    वह
    ढूंढ नहीं पाये कोई
    मिलने न पाये
    तुम्हें
    वह तुम्हारा तुम
    जब ढूंढ रहे होते हो
    तुम
    अपना आप
    खोना एक कला है
    कलाकार जी
    कभी खोकर तो देखा होगा तुमने
    अपना आप
    अब यह भी बता ही दो
    वह
    मिल कैसे जाता hai
    जंगल का जंगल
    सुनसान बयाबान ...
    5 Comments1 Share
    11 Virender Kapur, Lily Swarn and 9 others
    Comments
    Harish Bhatia
    Harish Bhatia A poem of Ego and AlterEgo:[AlterEgo a second self, which is believed to be distinct from a person's normal or original personality. A person who has an alter ego is said to lead a double life. The term appeared in common usage in the early 19th centur...See More
    See Translation
    October 3, 2014 at 8:56pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Most of us,so called artistically evolved personalities,have heightened alter egos !!
    See Translation
    October 3, 2014 at 8:57pm · Like · 1
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    Virender Kapur
    Virender Kapur I see some positivity in this ego.
    See Translation
    October 4, 2014 at 1:14am · Like · 1
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    Preetam Thakur
    Preetam Thakur मुगालता ही, सही है दिल को समझाने को!
    October 4, 2014 at 3:28am · Like · 1
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    Manjit Handa
    Manjit Handa जंगल का जंगल
    सुनसान बयाबान wah!
    October 4, 2014 at 3:47pm · Like

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  119. Atul Arora
    October 3, 2012 at 6:45am ·
    बजती हुई वोयलिन में इक छिपी हुई बन्दूक है
    इसे ध्यान से बजाना नहीं चल जाएगी ..!
    2 Comments
    8 Pawan Kumar Jain, Vinay Ranjan and 6 others
    Comments
    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder situational irony musical bullet
    See Translation
    October 3, 2012 at 6:49am · Like
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Bandook sandook mein hai...Violin ke to bas taar bajaane hain...haule haule,plaintive...bandook sammohit ho kar tirohit...
    October 3, 2012 at 7:08am · Like · 1

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  120. Neelabh Ashk
    October 3, 2015 at 9:39pm ·
    राग याशी
    (टेक हमारे दोस्त अतुल अरोड़ा के सौजन्य से)
    --------------------------------------------------
    याशीयक्षीमनभावन है,
    मन में अब उमड़ा सावन है,
    हैं मेघ घिरे काले काले,
    सखियों ने हैं झूले डाले,
    रस का होता अब प्लावन है
    याशीयक्षीमनभावन है
    तुम आय बसो मन में मेरे,
    डाले सुख ने कैसे डेरे,
    हम लड़ें ज़िन्दगी के रन में,
    मन मिला रहे अब जीवन में,
    अब तेरो संग सुहावन है,
    याशीयक्षीमनभावन है
    जीवन फूलों की सेज नहीं,
    हर पल ख़ुशियों की रेज़ नहीं,
    रंगरेज़ बना है महाकाल,
    रंगता जाता सब लाल-लाल,
    यह लाल जगत भरकावन है,
    याशीयक्षीमनभावन है
    Atul Arora
    2 Comments
    10 Hareprakash Upadhyay, Ish Madhu Talwar and 8 others
    Comments
    Eskay Sharma
    Eskay Sharma हम जात तुरंतै न्हावन हैं।
    Like · Reply · 1 · October 3, 2015 at 9:52pm
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    Neelabh Ashk
    Neelabh Ashk औ" साबुन खूब लगावन है
    Like · Reply · 3 · October 3, 2015 at 9:53pm
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    Eskay Sharma
    Eskay Sharma मैल उमिर का धोवेंगे, पालकी सजी सुहावन है।
    Like · Reply · 1 · October 3, 2015 at 9:57pm
    Remove
    Atul Arora
    Atul Arora Paalaki mein kaun bithaawan hai..Aur kauno usey uthaavan hai..ye gaunaa kabhoon karaawan hai..Baajaa ji kaun bajaawan hai...Anganaa mein kaun nachaavan hai ..etc. Etc..
    Like · Reply · 2 · October 3, 2015 at 10:24pm
    Manage
    Atul Arora
    Atul Arora BhaujAiyaa ji boojh bujhaavan hai
    Like · Reply · October 3, 2015 at 11:50pm

    ReplyDelete
  121. Atul Arora
    October 6, 2016 at 10:05pm ·
    अभी अभी रौशनी वह
    दिखाए दी थी
    अब लेकिन गायब है
    दोबारा कभी आएगी
    तब तक खाली रहेंगे
    खाली हैं जैसे इस वक़्त भी
    पहले वाले हाथ
    रौशनी भी कभी कोई हाथ आयी है
    हाथों की आवाज़ है
    खाली
    ताली
    अनंत में बजती हुई
    संजो नहीं पाए
    भीतर जब उतरी थी
    तेज़ी से बाहर की तरफ निकलती हुई
    भूल गए लगते हो
    भुगत लूँगा इसे भी
    जैसे सब भुगता है
    अभावग्रस्त होकर
    लट्ठमार आवाज़ कोई
    ज़मीन में से निकली है
    लोहे के बूटों जैसी
    चौकीदारी करती हुई
    अदृश्य अपनी सृष्टि में , सेवा निवृत्त जी !
    युद्धरत वह अपने काम पर तैनात है !
    बर्फ के आलोक में से नमूदार हुई थी
    कभी
    अब लेकिन गहरे
    मानसरोवर में
    डुबकी ले चुकी है
    उछली थी
    मछली की तरह बाहर
    समंदर में से
    गोताखोर हो गयी
    उड़ते हुए धुरंधर
    आकाश की नदी में
    संज्ञाविहीन
    नशे की ठोकर में
    महसूस नहीं पाया
    दबोच लूँगा उसे
    इस ख़याल में
    गुरुत्वाकर्षण के रहस्य में डूबा रहा
    ज़रूरी तो नहीं होता चुम्बक ही हो
    धरती के नीचे
    काया के भीतर भी हो सकता है
    अफ़सोस सिर्फ यह है कि हाथ खाली हैं
    जुम्बिश लेकिन शेष है
    आते आते आएगी !

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  122. Atul Arora
    October 6, 2014 at 9:13pm ·
    तैरते हुए जा रहे हैं
    लट्ठों के लट्ठे
    पहाड़ों का वन्य रस
    चूसते हुए
    अनंत निसर्ग
    करुणा
    जलधार
    पेड़ों की स्मृतियाँ अपने साथ लिए हुए
    अभी इनमें से निकलना बाकी है
    उम्रों से संचित
    वंचित किया गया
    सुप्त
    लुप्त
    गुप्त संगीत
    सौभाग्य जागेगा
    किसके दुर्भाग्य से
    जीवित बने रहने का
    पृथिवी
    जैसे बच कर निकल गयी दुर्घटना
    कब
    जाने कब की
    जब आये थे तुम !
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    17 Virender Kapur, Swaran Singh and 15 others
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Yaar.. tu. Kamal hain...this poem can rank with some of the best in any language..I really mean it.. you are talent untapped
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    October 6, 2014 at 9:16pm · Like · 2
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    Manjit Handa
    Manjit Handa this is special indeed Atul ji.
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    October 6, 2014 at 9:21pm · Like · 2
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    Anil Sharma
    Anil Sharma .......but this is talent unleashed :-)
    See Translation
    October 6, 2014 at 9:38pm · Like · 2
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    Atul Arora
    Atul Arora Thanku , Friends !
    October 6, 2014 at 10:30pm · Like · 1
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    Dariye Achho
    Dariye Achho Bahut sundar
    October 7, 2014 at 4:23pm · Like
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    Virender Kapur
    Virender Kapur Wonderful, SOUBHAGYA kiske durbhagya se.
    See Translation
    October 8, 2014 at 5:58am · Like · 1

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  123. Atul Arora
    October 6, 2011 at 8:45pm · Chandigarh ·
    चीजें यकायक बिफर गयी हैं ..
    बहुत बड़े बड़े सवाल पूछता है वह ..
    मृत्यु , इतिहास और स्मृति से जुड़े हुए ..
    जबकि पेड़ों की जड़ों की रहस्यमयी व्यवस्थाएं
    उसे भीतर अपने घुसते चले जाने को विवश किये देती हैं
    नीचे कहीं बहुत नीचे
    मिटटी की गहरी तहों में
    जाज्वल्यमान अगन दीप जलते हैं
    ऊपर हरा नाचता है ..
    हाथ उठाये हुए पेड़
    नृत्य करते हैं
    ताल पर किसी
    अदृश्य जल स्रोत का
    उत्सव मनाते हुए .. (यह ट्रांसट्रोमर है ...!बोल नहीं सकता तो क्या लिखेगा नहीं ..!अधरंग और फालिज की दुनिया में से बाहर आता हुआ ...)

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  124. Atul Arora
    October 6, 2010 at 8:25pm ·
    आदमी और नदी का पहला संवाद जब
    आखिरी संवाद की शक्ल ले लेता है
    तो चिंता भूगोल की
    अलग अलग आकाश की
    व्यर्थ हो जाती है
    और नदी के सारे सफ़र
    आदमी से आदमी तक
    ऐसे खुल जाते हैं
    जैसे आकाश बरसने के बाद ...
    3 Comments
    17 Manjot Kaur Josan and 16 others
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    Kalu Lal Kulmi
    Kalu Lal Kulmi kya khub
    October 7, 2010 at 7:00am · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AKHIRI SAFAR/ AKHIRI SANVAD/AKHIR KAB ANT HOGA?/ KAB MILEY GI MUKTI ADMI KO?/NADI KA KYA HAI, SAMUNDAR ME VILEEN HO JAYEYGI!
    October 7, 2010 at 3:29pm · Like · 1
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    Reena Satin
    Reena Satin Yeh panktiyaan bahut khoobsurat hain..

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  125. Atul Arora
    October 7, 2015 at 11:38pm ·
    अनकहे में / अतुलवीर अरोड़ा
    हो सकते थे
    लेकिन हुए ही नहीं !
    गति में थे इतने
    कि विगत चला आया
    आगत
    अनागत को
    दूर पार धकेलता हुआ !
    ऐसे
    कैसे खड़े रह जाते हो तुम
    और कह नहीं पाते हो
    वह सब
    जिसे
    भरसक कहा जाना है
    अभी , बिलकुल अभी !
    ज़रूरी भी यही है
    कि कहा सुना जाए
    नहीं तो ढोते रहोगे
    कुलीन
    विलीन होगा शेष
    रहना विगत में
    तल्लीन
    बुझे
    बोझिल ख़याल
    ही के बेख़याल में
    कि उलझना हुआ
    न तो भिड़ना हुआ
    न तो युद्ध ही किया
    और विजित हो गए
    अनछुए प्रदेश
    देशों के देश
    खेत खलिहान
    नदियां पहाड़
    आकाश
    कहीं विद्युत में छिन्न भिन्न प्रकाश !
    फिर कहना तुम्हारा
    कहे सुने जाने से क्या फ़र्क़ पड़ता है !
    रौशनी को बाँध नहीं सकते हो तुम
    हवा तो
    हवा
    बीत जाएगा सब
    तो क्या खड़े रहोगे तुम
    खड़े के खड़े
    जैसे खड़े हुए इस क्षण
    भरकम में बोझिल सब अनकहा भार
    भीतर मार
    बाहर हार
    ऐसे ढोते हुए
    यह मेरा था कभी
    अब तुम्हारा हुआ
    नहीं
    मेरा कहाँ था
    न तुम्हारा
    रहेगा
    कोई सीमित प्रकाश
    एक दूसरे पर पड़ता हुआ
    तीसरे किसी का
    उसे कहकर ही जाना था
    और रुक नहीं पाना था
    वह चुन नहीं पाया
    तो अन्धेरा चला आया
    पंख सबके पास थे
    उड़े नहीं
    झरे नहीं
    खड़े रहे
    अपने अपने अनकहे मे !
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    15 Amitabh Chaudhary, किंशुक शिव and 13 others
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    किंशुक शिव
    किंशुक शिव वाह..:)
    LikeShow more reactions · Reply · 1 · October 7, 2015 at 11:59pm
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    Virender Kapur
    Virender Kapur नहीं मेरा कहां था न तुम्हारा रहेगा,,,,वण्डरफुल।
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    · Reply · 1 · October 8, 2015 at 3:16am
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    Manjit Handa
    Manjit Handa खूब!

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  126. S AGO TODAY

    Atul Arora
    October 7, 2014 at 9:16pm ·
    कुछ थे शब्द
    कुछ थे शब्द
    जो अपने साथी शब्दों की इंतज़ार में
    बेचैन रहते थे
    कुछ ऐसे थे
    जो साथ छोड़ देते थे
    दोनों का रहता होगा
    अपना अपना मंतव्य
    अधीर हुई रहती थी
    अभिव्यक्ति
    कभी उसे लगता
    बुलाने वाले
    या इंतज़ार में बेचैन रहने वाले
    जितने मेहरबान नज़र आते हैं
    साथ छोड़ जाने वाले उनसे कहीं ज़्यादा
    इसीलिए शायद वे
    नज़र नहीं आते।
    इधर वे सहमे हुए से चुप हो गए थे
    उन्हें यह अधिकार था
    इसलिए नहीं कि बोलने का अधिकार
    पहले ही उनसे छिन चूका था
    बल्कि इसलिए कि वकालत के पेशे से
    घबराते थे वे
    कानूनी बहस और संविधान का हवाला
    उन्हें
    बात बात पर बीमार करता था
    अभिव्यक्ति के पक्ष में
    वे बोलना जानते थे
    या चुप रहना
    उन्हें पता था
    जब वे चुप हो जाते हैं तो
    बहुत ज़्यादा बोलने लगते हैं
    लोग यह जानते थे
    पर डरते भी थे
    डर तो वे खुद भी जाते थे
    कि आ गए
    प्रयोग में
    तो हल्ला हो जाएगा !
    11 Comments3 Shares
    16 Virender Kapur, Satyapal Yadav and 14 others
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder this is oxymoron super atul best stroke in poetry वे बोलना जानते थे
    या चुप रहना
    उन्हें पता था
    जब वे चुप हो जाते हैं तो
    बहुत ज़्यादा बोलने लगते हैं
    October 7, 2014 at 9:20pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Bing is very binga ...!
    October 7, 2014 at 9:27pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder your words your lingua3
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    October 7, 2014 at 9:40pm · Like · 1
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    Satyapal Yadav
    Satyapal Yadav Nayab.....sir.
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    October 7, 2014 at 10:04pm · Like · 1
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    Suresh Arora
    Suresh Arora Halla ho jayega es Dar se peryoog ma na aana too theek nahein.
    See Translation
    October 7, 2014 at 10:44pm · Like · 1
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    Dariye Achho
    Dariye Achho इंतज़ार में बेचैन रहने वाले
    जितने मेहरबान नज़र आते हैं
    साथ छोड़ जाने वाले उनसे कहीं ज़्यादा
    Yahan atak gaya main, bahut bar doraunga din bhar in panktiyo ko
    October 8, 2014 at 12:20am · Like
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    Virender Kapur
    Virender Kapur Kuchh kahne pe, toofaan utha leti hai duniyan.
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    October 8, 2014 at 5:55am · Like · 1
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    Madhurima Kaushal Arora
    Madhurima Kaushal Arora nice.....
    October 8, 2014 at 7:06am · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Madurima Kaushal Arora...your comment too minimalistic,needs an adjective...not too subjective/nor too objective...Say what ?!
    See Translation
    October 10, 2014 at 9:11am · Like
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar आदरणीय भाई साहब, "शब्द" अभिव्यक्ति के माध्यम से कितने गूढ़, गहरे और गम्भीर अर्थों का सृजन कर सकता है - जिसका जीवंत उदाहरण आपकी प्रस्तुत कविता है। जहाँ भी इसे अवकाश उपलब्ध होगा, वहाँ" साधारण" "असाधारण" में उत्क्रांत हो जाएगा ! आपकी नवोन्मेषशालिनी काव्य प्रतिभा इसी प्रकार हमें प्रेरणा देती रहे, यही कामना है।
    October 10, 2014 at 7:06pm · Like
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    Virender Kapur
    Virender Kapur चुप्पी बहुत बोलती है।

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  127. Atul Arora
    October 8, 2014 at 8:20pm ·
    होता तो होगा
    अपने लिखे से कुछ
    थोड़ा बहुत
    मोह
    तभी तो इस अंधे कुएं में
    गिरता चला जाता हूँ
    आवाज़ किसको दूँ
    कौन जाने कौन
    निकल आये कहाँ से
    फिर निकाल लाये
    मुझे
    फिलहाल गिरना
    फिर और नीचे गिरना
    कहाँ हो पाताल ?
    मैं तो थक गया हूँ
    गिरते गिरते भी
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    16 Virender Kapur, Dimpy Bhardwaj and 14 others
    Comments
    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder you are going into abyss ---plummeting into darkness ---but only in this poem --n this downfall is uplift for your creativity
    See Translation
    October 8, 2014 at 8:28pm · Like
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    Shruti Sharma
    Shruti Sharma Gir ke uthne ka naam hi zindagi hai...
    October 8, 2014 at 8:28pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia 'Saathi na koyii manzil/diya hai na koyii mehfilchalaa mujhe leke ai dil/akela kahaan...'( listen to it on Soundcloud in my voice...too)
    See Translation
    October 8, 2014 at 8:33pm · Like
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia filhaal hii to...kuchh hii palo mein paaoge ki tum oopar hii oopar ud rahe ho...Yah dvait chakra ant tak chalataa rahegaa....aur samabhavtah us paar bhii...
    October 8, 2014 at 8:36pm · Like · 1
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    Satyapal Yadav
    Satyapal Yadav Andhe kue me..girkar bhi, apne, anubhavo ko,sajha karte rahiye..:)
    October 8, 2014 at 8:42pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia 'palo' ~ 'palon'...

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  128. Atul Arora
    October 8, 2012 at 8:49pm ·
    आतंक की दुनियां में या दुनियां के आतंक में /
    कुछ तो है कहीं कोई न कोई कुछ
    बार बार बुलाता है
    धुरी की तरफ खींचता हुआ
    एक कोई आईना
    दिगंत में अनंत
    साफ़ शफ्फाफ
    दमकता दमकाता हुआ
    अपना आप दिखाता हुआ
    पहचान नहीं पाते हो
    अलग बात है .
    सृष्टि के पता नहीं किन अँधेरे कोनों से
    रौशनी की किरणों सा रूपमय होकर
    सूरज की देह में बलता और तपता हुआ
    सब कुछ राख करता हुआ भीतर उतरता है
    इश्क के फर्यादी तौहीद मांगते हैं
    बजरे के तूफ़ान उमड़ने लगते हैं
    घोडा कोई सफ़ेद
    अरब
    खरब दौड़ता है चारों दिशाओं में
    आकाश में उड़ता है
    भागते हो तुम लेकिन
    जिस किसी दिशा में
    गर्क होते बाहर
    भीतर इमारतों के
    छटपटाते ज़ख़्मी
    मर मर कर जीते हुए
    जीते न मरते हुए
    लाशों के बीच
    नील पंछी रोता है जब
    मोर की आत्मा
    पतित
    शैतान से संधियाँ करती हुई
    खलाओं में भटकती है .
    तोते की तरह कोई तोता रटंत
    शाश्वतता के झरने तलाश करता हुआ
    पंछियों की महफ़िल से बाहर निकल जाता है ...
    खून ही खून होकर खून
    खून करता हुआ
    मन हत्यारा
    फिर जग
    हत्यारा ...!
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    19 Amitabh Chaudhary, Chitra Mohan and 17 others
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    Rakesh Mohan Hallen
    Rakesh Mohan Hallen <3 http://www.scribd.com/doc/103353647/Terror

    Terror
    We live in a terrorist age!! Now and then we get shocked by a terrorist attack, whether it was 9/11 attack in US…
    SCRIBD.COM
    October 8, 2012 at 8:54pm · Like · Remove Preview
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    Surendra Mohan
    Surendra Mohan क्या बात !
    October 9, 2015 at 7:47am · Like · 1
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    Madan Gandhi
    Madan Gandhi superb.

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  129. Arora
    October 8, 2011 at 7:32pm · Chandigarh ·
    रखता हूँ
    कहीं
    फिर ढूंढता हूँ
    कहीं ..
    मिलती भी हैं तो
    कहीं
    कभी कहीं....
    कभी कहीं भी खोजूं तो
    मिलती नहीं
    कहीं ..
    कहीं मिल भी जाएँ तो
    वो वो मिल जाएँ
    जिन्हें रक्खा था
    कहीं
    और मिली तो
    कहीं...
    कितनी दुनियाएं हैं जो
    हो गयी हैं गुम
    कभी कहीं
    कभी कहीं
    शायद मिल जाएँ
    कभी ऐसे ही
    वो भी
    कहीं न कहीं
    यहीं कभी
    नहीं
    नहीं तो कभी
    फिर कभी
    कभी नहीं ...!
    6 Comments
    20 Pushkar Nath Tharmat, Vinay Ranjan and 18 others
    Comments
    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder paradox of life---metaphysical points in poem like john donne
    October 8, 2011 at 7:36pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder RAKHNA DHONDNA PAKAR NIRASH HOONA PHIR HAR KHUSHI SEY NIRAS HOONA AUR NAI LALSAA--SAB TRISHNAA KAA JAAL HAI--five senses ka khel--touch,smell,taste,sight,hear---or i have in my head only nonsense--mew
    October 8, 2011 at 7:44pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder drum hb drum --footfalls footfalls----CRESCENDO ATUL NAACH
    October 8, 2011 at 8:43pm · Like · 2
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA dhhoondo, kahin miley to batana mujhey bhi, main to thak chuka hu dhhondh dhhoondh kar......jo bhi milta hai na jaaney kyon ajnabi lagta hai?
    October 8, 2011 at 9:54pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder AS--AJNABI TUM JAANEY PEHCHANEY SEY LAGTEY HOO
    October 8, 2011 at 9:56pm · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma princy ji ab to hum mil chukey hain jaan pehchaan to chuki...ab to chalo fir se anjaan ban jayey hum dono :)

    ReplyDelete
  130. Atul Arora
    October 9, 2011 at 9:34pm · Chandigarh ·
    छोटे छोटे बच्चे
    शरारती और भोले से
    अचानक पढ़ाकू भी
    चढ़ गए हैं इधर उधर
    अपनी कुछ दूसरों की
    खतरनाक दीवारों पर
    गाते हैं गीत
    ऊंचा सुनाते भी हैं
    तुम दौरे पर रहो
    दौरान दौरे के ये लूट ले जाएँगे
    तुम्हारी दीवार
    बोलते बतियाते
    तुम्हें चढ़ेगा बुखार ..
    अपना चेहरा तो देखो
    कैसा पीला था लाल ...!
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    6 Manoj Chhabra, Neeraj Sharma and 4 others
    Comments
    Atul Arora
    Atul Arora ठहरो तो , नाराज़ क्यों होते हो ..?
    इनकी दीवारों पर पोस्टर भी होते हैं ..
    अभी तुम देखना
    वहां से छलांग फलांग कर आयेंगे
    सबकी सब असुरक्षित दीवारों पर
    अजीबोगरीब तस्वीरों के साथ
    देखते ही देखते भीड़ लग जायेगी
    पसंद करने वाले दस्तखत सजाती
    बदले में सहलाती
    सुगबुगाती
    भनभनाती दीवारों पर धूप..
    थोडा नहाओ
    थोडा नहलाओ
    फिर पोचा लगवाओ
    या बादल राग गाओ ...
    बारिश आये शायद
    कुछ ऊँगली का इशारा
    कुछ सोच का किनारा
    बुझाओ बुझाओ ..
    ये इबारत बुझाओ ...
    नहीं तो यह तुम्हें
    तुम्हारी ही नज़रों में उजाड़ डालेगी ...
    दीवार पर कचरा कबाड़ डालेगी ...
    हुशियार
    खबरदार ...
    चंट खुरंट हैं ये बच्चे
    चहबच्चे
    कीचड से खेलते हुए
    कच्चे कुछ सच्चे...
    लच्छे के लच्छे....!
    October 9, 2011 at 10:08pm · Like · 2
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder chehra peela lal---fareb mei rahey har maa kaa lal--swarath kaa hai yeh jaal
    October 10, 2011 at 3:32am · Like · 2
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    Atul Arora
    Atul Arora baal baal bach gaya ...naachtaa main thak gaya... gir hi chali thi aaj to deevaar...facebook ke mitron ne taar diyaa taar ...!
    October 10, 2011 at 7:07am · Like · 2

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  131. Atul Arora
    October 9, 2012 at 8:58pm ·
    यात्राएं /
    कुछ लोग यात्राएं करते हैं
    किताबों के ज़रिये
    कुछ दूसरे किताबें लिखते हैं
    यात्राओं के हवाले से
    कुछ हैं जो विचारों में करते हैं यात्राएं
    विचारों की यात्राओं के साथ
    उनकी यात्राओं पर करते हैं विचार
    कुछ और हैं जो पढ़ते हैं किताबें
    गुनते हैं विचार
    विचारों को फेंकते हुए अपनी / उनकी यात्राओं में
    कुछ ऐसे भी हैं
    जो दूसरों की यात्राओं की किताबें पढ़ कर
    अपनी यात्राओं पर जाते हैं
    और कैसे कैसे हैं जो निकले ही रहते हैं बस
    यात्राओं के मतलब सीखे समझे बगैर
    किताबों पर दूसरी किताबें लिखते हुए
    वर्णित यात्राओं के किस्सों की पुनर्रचना में गर्क
    यात्राएं
    विचार
    किताबें और लोग
    कुछ लोगों के लिए
    उनकी जीवन यात्राओं के बीच
    कुछ ऐसे मुकाम होते हैं जहां कुछ देर ठहरा भी जा सकता है
    हमेशा के लिए ठहर जाना
    भीतर
    बाहर
    तमाम यात्राओं को व्यवस्थित कर पाना
    जीवन की यात्रा में संभव नहीं होता
    फिर भी कभी कभी
    यही सब लक्ष्य भी बन जाता है उनका
    जिनकी यात्राएं
    संभव था
    वहीँ समाप्त हो जातीं
    लेकिन चलती रहती हैं
    ठहर ठहर कर ठहरे हुए
    ठहराव में भी
    बहरहाल क्या कुछ नहीं करती हैं यात्राएं
    और क्या कुछ नहीं करते होंगे लोग यात्राओं पर जाते हुए
    शरीर ही नहीं मन भी बताता है
    कथन विचार उनके
    संगुम्फित कथाओं में
    स्वेद कण गिराते हुए
    श्रम के माणिक्य मोतियों की तरह
    ज़रा देर विश्राम करती यात्राओं में चमकते दीख जाते हैं
    कुछ लोगों को यात्राओं की कुल
    इतनी सी चमक भी भारी पड़ती है
    यात्राएं करना जिनके बस की बात नहीं होती ....
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    22 Gul Chauhan, Jayprakash Manas and 20 others
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma Atul ji: aap ney yatra aur lekhan ka, lekhak aur pathak ka, aisa sunder varnan kiya hai ki....yatra ka asli arth...sirf lekhan nahi....anubhav hai....waah :)
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    October 10, 2012 at 4:26am · LikeShow more reactions · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma Shukraan sir ji :)
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    October 10, 2012 at 5:24am · LikeShow more reactions
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    Satish Jayaswal
    Satish Jayaswal yaataayen naheen kar paanaa aakhir tham jaanaa hee to hai. aur jo tham jaaye wo jeevan kaisaa ..?
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    October 25, 2012 at 11:30pm · LikeShow more reactions
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    Đeep Înder
    Đeep Înder waah.... Atul...bahut kamaal ki yatra. ...
    October 9, 2015 at 10:09am · LikeShow more reactions
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    Surendra Mohan
    Surendra Mohan अभिनव ख्याल
    October 9, 2015 at 9:30pm · LikeShow more reactions
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    Atul Arora

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    6 YEARS AGO TODAY

    Atul Arora
    October 9, 2011 at 11:47pm · Chandigarh ·
    वो इक्क तोहफा सुरों का था ग़ज़ल निखरी थी नखरों में
    वो गाता था कि जीता था ग़ज़ल जगजीत नखरों में
    4 Comments
    12 Dushayant Shaarma, Taseer Gujral and 10 others
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    Prashant Kr Sharma
    Prashant Kr Sharma So Sorry.....
    ईश्वर उनके आत्मा को शान्ति देना _/\_
    October 9, 2011 at 11:51pm · LikeShow more reactions
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    Dushayant Shaarma
    Dushayant Shaarma RIP
    October 10, 2011 at 12:02am · LikeShow more reactions
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    Atul Arora
    Atul Arora ग़ज़ल के नाज़ोनखरे हैं बहुत मुश्किल उठाने में
    वो था जगजीत उसने जीत ली थी ग़ज़ल नखरों में
    October 10, 2011 at 9:09pm · LikeShow more reactions · 2
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma JEET K JAG KO JAB VO GAYA, BADA SOONA SA JAG KO KAR GAYA !!!!

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  132. Atul Arora
    October 10, 2014 at 9:03pm ·
    बोलते ही रहते हैं
    झूठ
    कई कई तरह के
    और पता भी नहीं चलता
    कब बोल गए झूठ
    चलता भी होगा शायद
    ज़रा सा अटकती होगी
    फर्राटे से दौड़ती हुई जुबान जब
    रुकते ही
    और दूनी तेज़ी से दौड़ दौड़ जाती होगी
    आँखें तो एकदम हैरान करती हैं जब
    हंसती खिलती
    खेलती खेल
    बोल रही होती हैं
    भीतर वह
    दुबका हुआ
    ज़िबह हुआ जाता है
    मुहावरे की तरह जैसे
    काटो तो खून नहीं
    कहते ही सच तुम
    देश
    खो देते हो
    समय में यकायक
    रुका हुआ श्वास
    फिर सांस जब आती है
    तुम लुट चुके होते हो
    कैसे तुमने कहा वह
    जो मैंने नहीं सुना
    तुम खुश हो गयीं
    और कैसे मैंने कहा
    जिसे खुद मैंने नहीं सुना
    और तुम खुश हो गयीं
    पता था दोनों को
    जैसे पता होती है
    पते की बात।
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    18 Virender Kapur, Dimpy Bhardwaj and 16 others
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    Surendra Mohan
    Surendra Mohan फर्राटेदार कविता ...:)
    October 10, 2014 at 9:11pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia adhiktar,-andar jhaank ke dekhen hum-to adhiktar hum aadha sach-aadha jhoot bol rahe hote hain...aadhe adhura hai insaan abhii..Theory of Evolution bhii yahii siddh karatii...Shayad poora ho jaane par poora nirmal sach bolne lage...
    October 10, 2014 at 9:12pm · Like · 1
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    Satyapal Yadav
    Satyapal Yadav Pta hoti hai,pte ki baat..
    October 10, 2014 at 9:14pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Humpty Dumpty .... stay blessed ..!
    October 10, 2014 at 9:26pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Prevarication is frequently
    See Translation
    October 11, 2014 at 12:23am · Like · 1
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    Bindu Singh
    Bindu Singh Wah Wah !!
    October 11, 2014 at 12:31am · Like · 1
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar थसच के दंश को न सहने की हिम्मत - यही तो नियति बन चुकी है - मेरे जैसे और भी होंगे - जिन्हें यह कविता आत्मालोचन के लिए बाध्य करती है!
    October 11, 2014 at 4:10am · Like · 1
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar सच के दंश ..
    October 11, 2014 at 4:14am · Like · 1
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    Virender Kapur
    Virender Kapur पता होती है पते की बात, सत्य

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  133. Share

    Atul Arora
    October 10, 2012 at 7:19pm ·
    आके चला जाता है सैलाब बार बार ...कुछ बात होगी डूबने में तैरने की भी ..!
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    9 Jayprakash Manas, Taseer Gujral and 7 others
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    6 YEARS AGO TODAY

    Atul Arora
    October 10, 2011 at 6:02pm · Chandigarh ·
    तमन्ना फिर जीने की मरने की होती है
    झरने के भीतर जा झरने की होती है

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  134. अपने भीतर छिपा हुआ सूखी कराह था
    बाहर गीला ज़ख्म था मेरा वो हमशकल

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  135. GO TODAY

    Atul Arora
    October 13, 2015 at 11:14pm ·

    प्रतिरोध का एक पक्ष : अतुलवीर अरोड़ा /
    सुना तो था शब्द
    सूनेपन में उनके
    ह्त्या के हिज्जों को लक्षित करता हुआ
    चुप लेकिन
    बैठे रहे
    गोश्तखोर हवा को
    रास्ता देते हुए

    अनसुना किया
    प्रतिरोध तक को भी।
    बहरे के जैसे
    अभिनय में निष्णात
    अपने वर्तमान में
    बने रहे
    वे।
    सींग घुँपे हुए थे
    निहत्थे
    किसी मनुष्य की
    अंतड़ियों में
    फेंक दिया था जिसे
    खूनी किसी दृश्य की भूख के अपने
    शमन के लिए
    खुद उन्होंने।
    लाल के विरुद्ध
    दौड़ते भागते आते
    सांडों की प्रायोजित
    भूमिका के एकदम बीचों बीच ।
    पूँजी के लुटेरों की धर्मांध
    हिंसा के
    हत्यारे पक्ष में
    जिन जिनको कहनी थी
    मृत्यु की कथा
    वे
    खूब बेच लेते थे
    होली के रंग
    झोली भर भर कर।
    बेचते रहो
    बेचते रहो
    अपना अपना झूठ
    खरीद सकते थे जो कभी
    शायद लुच्ची झोंक में
    वे तक भी दिए हुए
    तुम्हारे व्यापारिक
    जहाज़ों में बैठे
    नोंचे खोंचे
    कमाए हुए
    गलीज़ बिचौलिए तमगे
    लौटा रहे हैं ,
    कैसे भी सही
    धीरे धीरे।
    खैर मांगो अपनी !
    सुधर जाओ वरना !
    भाषा के संगी
    काव्य जीने वालों को
    दूसरे हथियार भी उठाने आते हैं।

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  136. EARS AGO TODAY

    Atul Arora
    October 13, 2012 at 11:22pm ·
    जब कभी देह में तुम्हें
    कांटे मिलते हैं
    और कभी
    उडती हुईं नन्हीं चिड़ियाएं
    तुम हतप्रभ हो जाते हो
    चिड़ियाओं को तो हालांकि आकाश मिल जाता है
    काँटों को जल भी नहीं
    तपती हुई देह की आग में जलते हैं
    देह
    राग गाती हुई जलती चली जाती है
    और तुम सुनते नहीं
    राग ही की सुलगन में भी
    राख हर शर्त पर देह को ही होना है
    तुम्हें इससे क्या
    उसके बाद धैर्य हो तो देखना तुम
    धरती
    उतनी सी झरती
    उडती हुईं चिड़ियाएं थके हुए
    पंख लिए
    यहीं कहीं उतरेंगी
    राख में सुलगता हुआ देह का राग
    चोंच से अपनी अस्थिर करती हुईं
    बचे खुचे शब्द यहाँ वहां बीन कर ..
    8 Comments2 Shares
    17 Chitra Mohan, Lily Swarn and 15 others
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    Neenu Kumar
    Neenu Kumar absolutely beautiful
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    October 13, 2012 at 11:23pm · Like · 2
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    सुरेन सिंह
    सुरेन सिंह क्या बात है ..
    October 13, 2012 at 11:23pm · Like · 1
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    Reenu Talwar
    Reenu Talwar Wah!
    October 13, 2012 at 11:30pm · Like · 1
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    सुरेन सिंह
    सुरेन सिंह देह का राग ...देह से परे महसूसने का जज्बा ..ये जिद तो नहीं ना , एक निवेदन ही है न ... Atulji
    October 13, 2012 at 11:30pm · Like · 1
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    Bhupinder Brar
    Bhupinder Brar I repeat what I wrote on Sadho page: Atul, I am speechless. What a sensitive poem. Just superb.
    See Translation
    October 14, 2012 at 12:24am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora भूपिंदर बराड़... तुम हो बड़े उदार ...!
    October 14, 2012 at 5:26am · Like
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    Suman Tiwari
    Suman Tiwari waah
    See Translation
    October 17, 2012 at 3:05am · Like
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    Dimpy Bhardwaj
    Dimpy Bhardwaj Beautiful!!
    See Translation
    October 13, 2015 at 1:05pm · Like

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  137. Atul Arora
    October 13, 2011 at 8:29pm · Chandigarh ·
    जहां कहीं
    हरा
    होता है
    पहाड़
    धूप
    वहां सुस्ताती तो है
    पर हवा के
    जंगली
    आदिम शोर में
    चिंतित भी दिखाई देती है
    अपने ही शरीर के
    किसी हिस्से को लेकर
    जिसे खुलकर अपना आप दिखाना
    मिलता नहीं है
    और फिर यही नहीं
    जहां कहीं वे
    नहीं होते हरे
    वहां जलता ही रहता है
    उसका बदन
    इस तरह कुछ
    खुद अपने आप में
    जैसे खाल फट रही हो किसी
    नंगी चट्टान की
    लावा ही लावा
    बाहर फेंकने को तैयार
    धूपीले मेरे पहाड़...!
    4 Comments
    12 Sujata Singh, Manoj Chhabra and 10 others
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    Reenu Talwar
    Reenu Talwar Wah!
    October 13, 2011 at 8:31pm · Like
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    Ashok Gehlot
    Ashok Gehlot Excellent Sir...
    October 13, 2011 at 8:39pm · Like
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma kaash kabhi khul k khil sakey!!! ya fat sakey lava !!!
    October 14, 2011 at 11:25am · Like · 2
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA Sir ji :)
    October 14, 2011 at 7:10pm · Like

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  138. Atul Arora
    October 13, 2010 at 9:41pm ·
    किसने कहा था यह
    गीत एक नौका है
    लहरों पर छोड़ दो उसे
    वे शांत हो जायेंगी ......
    6 Comments
    13 Pranay Bhanot, राजू मिश्र and 11 others
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    Mrunalinni R Patil
    Mrunalinni R Patil beautiful sir...
    October 13, 2010 at 9:50pm · Like
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA: om shanti , snanti, shanti namaha!!!!
    October 14, 2010 at 3:25am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora @ Anusha ji >Shanti paath theek karo ji ...log naraaz ho saktey hain ...Shantipriya desh ke...!
    October 14, 2010 at 7:30am · Like · 1
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    Harshita Mishra
    Harshita Mishra geet man ki gati k samaan hai...shaant..kintu chanchal....
    October 14, 2010 at 7:37am · Like
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    Reena Satin
    Reena Satin Khoobsurat
    October 14, 2010 at 5:15pm · Like
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA: hun ki galti kar betha ji?:)
    October 14, 2010 at 8:29pm · Like · 1

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  139. कवि अतुलवीर अरोड़ा
    अतुलवीर अरोड़ा से मेरा वर्षों पुराना परिचय रहा है। अर्थात 20वीं शताब्दी के आठवें दशक से। मित्रता का मजा भी चखा है। हालांकि पिछले अनेक वर्ष अंतराल की तरह भी बीत गए। आज तक मुझ पर उनका प्रभाव साहित्य के एक अच्छे और गम्भीर अध्येता, नाट्यकर्मी और मजबूत व्यक्तित्व के धनी के रूप में अधिक रहा है। ऊपर से कड़क लेकिन अंदर से परले दरजे के भावुक भी- आवेश की हद तक। मुझे हमेशा लगा है कि ये कविता लिखते जरूर रहे हैं लेकिन उनके प्रकाशन के प्रति न जाने क्यों प्रारम्भ से ही उदासीन-से भी रहे हैं। सुखद है कि अब उनके कविता संग्रह(एक समुद्र चुपचाप, मिले तुम्हें समय तो ढूंढ़ लेना पृथ्वी) भी हमारे बीच हैं। 1981 में जब मैंने अपने संपादन में आठवें दशक की कविताओं का संकलन ‘निषेध के बाद’ प्रकाशित किया तो उसमें इनकी कविताओं को सम्मिलित किया था। मैंने लिखा था –“ अतुल की कविताओं में जहां एक संघर्षशील व्यक्तित्व स्पष्ट दिखाई पड़ता है वहीं आत्मालोचन और आत्मव्यंग्य की धार भी इनकी कविताओं में बराबर मिलती है। साफ दृष्टि की वजह से इनकी कविताओं में झोल या धुंधलाहट नहीं आने पायी है। बड़बोलेपन से आगे की ये कविताएं संयत ढंग से स्थितियों की गहरी जांच-पड़ताल करती हुई अपने लक्ष्य की ओर सुदृढ़ ढंग से ले जाती हैं।“ 1982 में प्रकाशित तीन कवियोंकी कविताओं के समवेत संकलन में अतुलवीर अरोड़ा की भूमिका है जिसमें कविता संबंधी इनकी कुछ अवधारणाओं को समझा जा सकता है। इसी संकलन के आवरण पर छपा है –“ अतुल पूरे सामाजिक परिवेश में व्यक्ति की पीड़ा को पहचान कर संघर्ष-बिंदु की खोज करते हैं।‘ और यह उचित ही है। अपने प्रारम्भिक दौर में ही अभिव्यक्ति के प्रति कवि की मान्यता थी-‘ अभिव्यक्ति क्या है?/ दृष्टि में बंद इतिहास का खुलना/ या/ दृष्टि में खुले इतिहास का बंधना’। आज कह सकता हूं कि अतुलवीर अरोड़ा की कविताएं अपना पाठ बहुत धैर्य और अपनेपन की अपेक्षा के साथ चाहती हैं। अन्यथा वे आपको आनन्द के उस स्तर से वंचित छोड़ देंगी जो उनके पास बखूबी मौजूद है। एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि अपनी अभिव्यक्ति में अतुल उन कुछ कवियों में आते हैं जो भाषा के साथ कुशल खेल खेलना जानते हैं और खेलते-खेलते ही कहन, बिम्ब, नाटकीयता आदि के प्रयोगों का ऐसा सहज संसार रचते चलते हैं कि पाठक कव्याभिव्यक्ति के जरूरी चमत्कार से भी सरोबार होता चलता है। इनकी ‘लहूलुहान कविता’ का यह अंष देखिए- ‘ अल्हड किसी बच्ची की भाग थी वहां/ भागती हुई दौड़ में’। या ‘स्वच्छ भारत’ की इन पंक्तियों पर गौर कीजिए –‘ हंसोड़ के हंसोड़ / जमा हो गए थे/ राष्ट्रभक्ति का मुकुट पहन कर’।आज के समय की पूरी यथास्थिति इनके इसी अंदाज में इनकी कविता ‘ शब्द चालाक थे’ में भीतर तक उजागर हो जाती है। अंतिम पंक्तियां हैं –‘ आदमी एक बहुतहीबारीक हिज्जा था/ वह पूरी उम्र उनसे/ खुद को बुलवाना सीखने की कोशिश में/ बीत जाता था।‘ कवि की इस तैयारी को ध्यान में रख कर ही उनकी कविताओं का पाठ किया जाना चाहिए। इस कवि के पास आज अनेक सशक्त कविताएं हैं जिनमें से कुछ्ह हैं – कहते-कहते मूक, खोज, एक टैटू कविता, शब्द नहीं शब्द, होने दो, श्वेत श्याम रंग, भीतर बाहर भीतर, रंग खतरनाक, अनागत, मसखरे, सुच्ची सच्चे शब्द, आत्मा जिसकी कांपती है, सबके साथ सबका विकास, आजादी, स्वच्छ भारत, फंतासियां, शब्द चालाक थे इत्यादि। अतुलवीर बेशक एक बौद्धिकता के आस्वाद के कवि हैं- चेतस और सजग। पीठ पर हिंदी की कविता की परम्परा के श्रेष्ठ को सजाए, कदम बढ़ाते हुए। इस अर्थ में वे आसान कवियों की श्रेणी में नहीं आते। इन्ही के शब्दों में कहूं तो-
    उठो
    तन कर खड़े हो!
    आगत हूं मैं!
    मेरा स्वागत करो!

    दिविक रमेश
    एल-1202,
    ग्रेंड अजनारा हैरिटेज,
    सेक्टर-74,
    नोएडा-201301
    मो. 9910177099

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  140. Atul Arora
    October 14, 2015 at 10:01pm ·
    संभव यह भी है : अतुलवीर अरोड़ा /
    कैसे ?
    कैसे सम्भव है ?
    चीज़ें तुमने छुईं
    और वे अनछूईं रहीं।
    कोई शिनाख्त नहीं न कोई निशान
    तुम कहीं तो रहे हो
    वे भी मरी नहीं हैं
    सब कुछ यहीं कहीं है।
    स्पर्श के मुक़ाबिल तुम जैसे
    छुए हुए
    अछूत
    किसके दूत ?
    स्मृति में तो थे
    स्मृति ने खुद बताया था
    इतिहास में से वर्तमान में कैसे चले आये ?
    किताबों में से उठकर
    खलबली विचार
    संदर्भ से अलग
    प्रसंगविहीन
    तुम कितने लाचार !
    कभी चाँद न हुए
    न सूरज
    सितारा
    मंगल कब कैसे
    फिर हो गया तुम्हारा ?
    लौटो
    लौटाओ धरती
    मिट्टी को देखो
    कबकी ऐसे ही मिटटी है
    होती है गीली
    फिर सूख जाती है
    छुओगे तो
    सम्भव है
    छूना
    जान जाओगे।
    5 Comments1 Share
    15 Ruchi Bhalla, Arvind Singh and 13 others
    Comments
    Jaidev Taneja
    Jaidev Taneja Sprsh ki marmsprshi kavita,ek naye kon se.Atulji Badhaee.
    LikeShow more reactions · Reply · 2 · October 15, 2015 at 1:17am
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    Madan Gandhi
    Madan Gandhi BRILLIANT.
    See Translation
    LikeShow more reactions · Reply · 1 · October 15, 2015 at 1:41am
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    Atul Arora
    Atul Arora Thanku, Jaidev Taneja . prasanna kar dete ho jab bhi yahaan aate ho...Aate raha karo, yaar...!
    LikeShow more reactions · Reply · October 15, 2015 at 1:44am
    Manage
    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Bahut khoob...
    LikeShow more reactions · Reply · October 15, 2015 at 2:37am
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma Aa ab laut chalen......reminds me of a song by beatle.... Get back, Get back to where you once belong !!!!

    ReplyDelete

  141. Atul Arora
    October 14, 2014 at 9:59pm ·
    sarvahaaraa jeena
    नहीं ,
    यह कोई तरीका नहीं है
    इसलिए नहीं बनायी गयी है
    इतनी
    कितनी
    जितनी दुनियाँ ,
    फरेबी !
    कहीं भी
    कभी
    किसी भी द्वार से
    खिड़की
    दरार से
    खोल कर
    ज़बरदस्ती तोड़ कर
    ताले
    चौड़ चकला रास्ते बनाते हुए
    तुम ,
    चले आओगे

    विकृति की अपनी
    सेंध लगाओगे
    सब ध्वस्त कर जाओगे

    नहीं ,
    यह कोई तरीका नहीं है।
    हालांकि मैं कोई संतरी नहीं हूँ
    फिर भी कभी कभी सिपहसालार जैसा
    कोई जन जागता है
    मेरे भीतर भी
    सहसा जैसे खंड तलवारें
    चल निकलती हैं
    भाले
    तीर कमान ,
    हाथी और घोड़े
    रथवाह तैयार
    पैदल
    हुंकार
    गोला बारूद
    तोपें दागते हुए
    मैं किसी भी लड़ाकू में
    प्रविष्ट हो जाना
    चाहता हूँ
    हो नहीं पाता हूँ
    यह भी जानता हूँ
    जादू को बुलाओ तो जादू नहीं होता
    बड़े ही जटिल अभ्यास का नाम है
    सर्वहारा
    जीना
    कला कोई दिव्य
    मिटटी से आती है
    मिटना सिखाती है
    कैसा तो प्रवंचक मैं
    मिटटी हूँ
    लेकिन
    मिटटी होने से पहले
    मिटटी हो नहीं पाता हूँ !



    4 Comments
    8 Virender Kapur, Swaran Singh and 6 others
    Comments
    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder the good earth ----
    See Translation
    October 14, 2014 at 10:01pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia ..Maati kii Gaadii/Sanjoye ik divya swarnim 'soul'./raktim hriday aur asankhya Naadiyaan ..
    See Translation
    October 14, 2014 at 10:19pm · Like
    Remove
    Harish Bhatia
    Harish Bhatia LikeLike...
    See Translation
    October 14, 2014 at 10:19pm · Like
    Remove
    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar जो "सर्वस्व" "हारा"/ वही सर्वहारा , / उसका आक्रोशित शब्दकोश !/ परन्तु सत्ता,बुद्धिजीवी, भद्रलोक ,../ सब के सब औचक , खामोश ?"

    ReplyDelete
  142. Atul Arora
    October 14, 2012 at 10:00pm ·
    वैसे तो होती हैं जल के पास भी
    अपनी स्मृतियाँ
    आकाश की आकाश के अनंत का हास
    परिहास पृथिवी का ले जाता है
    अपनी गहरी तहों में
    सदियों तक चलने वाले
    उत्खनन का इतिहास
    हवा कहीं से भी
    चुरा कर ले आती है जंगल के जंगल
    समुद्र अपनी सहम में से
    अचानक
    निकल आते हैं
    वहन करते हुए आन्दोलन
    तल भूतल सृष्टि का
    होकर बेरहम
    नदी ही साक्षी नहीं बनती kabhi
    जैसे साक्षी होता है चाँद उसके sthaayi bhaav का ...
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    17 Vaneeta Malhotra Chopra, Bhupendra Khurana and 15 others
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    Atul Arora
    Atul Arora 'हो कर बेरहम
    नदी ही साक्षी नहीं बनती कभी
    जैसे चाँद होता है साक्षी उसके स्थायी भाव का ...'
    October 15, 2012 at 7:33am · Like
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    Chitra Mohan
    Chitra Mohan स्थायी भाव की उपमा चाँद से ? जब चाँद का ही स्थायी भाव स्थिर नहीं तो अस्थिर नदी के साक्षी का अस्थिर भाव , गहन सागर में भी आंदोलन पैदा कर ही देगा ।नहीं ?
    October 14, 2015 at 12:28pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Saaraa khel hii isi pankti mein hai .....Chitra Mohan ji

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  143. Atul Arora
    October 14, 2011 at 6:37pm · Chandigarh ·
    घास ने घास को देखा
    देखा ज़मीन को
    देखा आकाश को
    उसका रंग उड़ गया
    घास वहां भी थी
    नीले में कुछ हरा
    मिलाती
    हिलाती hui ...
    थी वह भी ज़मीन की !
    पर चली गयी थी आकाश में !
    इस घास को
    उस घास का कुछ
    ज़्यादा शायद पता न था ...!
    1 Comment1 Share
    10 Dharmendra Gangwar, Sujata Singh and 8 others
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    Prashant Kr Sharma
    Prashant Kr Sharma Ati sundar sir ji, suprabhat apko.

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  144. Atul Arora
    October 14, 2016 at 9:15pm ·
    फेसबुकी आँखें उनकी
    लंबे पैने दांत
    शांत शांत कहते कहते
    मन हुआ अशांत !
    बात में से बात निकली
    हो गयी दुर्दान्त !
    सोते जगते हो रहे हैं
    गुरुचरण "आक्रान्त" !
    3 Comments
    9 Anju Thakral Makin, Surendra Mohan and 7 others
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Jai ho...ho ho ho ... diehard Face bhookhian...
    Like · Reply · October 14, 2016 at 9:17pm
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Facebook ek tub hain. aatey jao nahatey jao
    Like · Reply · October 14, 2016 at 9:36pm
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    Atul Arora
    Atul Arora Tub ! paani to hai na ? keechad ho gayaa ki nahin ? logon ko nahaate nahaate sussoo karney ki aadat bhi hoti hai , Principal Bhupinder.
    Like · Reply · 1 · October 14, 2016 at 9:52pm
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Ha ha sab nazirya hain.. Facebook jharna bhee hain
    Like · Reply · 1 · October 14, 2016 at 10:03pm
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia FACADE bahut badaa hota ja raha haa...'kayii baar 'fasaad' bhii ban jaata hai...Saar nissaar !!

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  145. Atul Arora
    October 15, 2011 at 9:18pm · Chandigarh ·
    रात ने क्या क्या खाब दिखाए ......
    एक किसी बस जैसी कोई चीज़ है जिसमें बैठा हुआ हूँ जो बिलकुल अजनबी दुनियाओं में लिए जा रही है ... अजीबोगरीब चेहरे हैं आस पास .. एक चेहरा कभी कभी पहचान में आता है .. उसे मैंने सालों से देखा नहीं है ....उड़े हुए बाल ..छोटे छोटे घूंगर ...मटमैले .. दांत बहुत ऊबड़ खाबड़ ... ऐसी तो नहीं थी कभी दिखने में वह ...पर पहचान रहा हूँ ...दूर दे कुछ तांत्रिक मुद्राएं बनाती हुई ...हवा में ...
    दूसरे बहुत से चेहरे लगभग मास्क्स पहने हुए हैं जैसे ...
    उडी जा रही है बस ...
    किसी वीरान प्रदेश में पहुँच कर अचानक रुक गयी है ... झाड झंखाड़ हैं चारों तरफ .सर में से जैसे कोई दूसरा सर निकल आया है ...मैं खुद को हालांकि देख नहीं पा रहा पर बीच बीच में मैं ही जैसे अपने दोनों सिरों में से बाहर आ जाता हूँ और उस पहचाने हुए चेहरे को खोजता हूँ जो इस वक़्त वहां कहीं नज़र नहीं आ रहा ...सारी दुनिया एक टीले पर टिक गयी है ...टीला कभी जेल के भयानक किसी द्वार में तब्दील हो जाता है ..मैं जैसे कोई राक्षस हूँ और मुझे उसके पीछे धकेल दिया गया है .रीछ के से हाथों से मैं जेल की सलाखों को भडभड़ा रहा हूँ ... बाहर एक गार्ड बैठा है ...उसके हाथ में एक डंडा है जिसकी मूठ ध्यान से देखने पर वही चेहरा दिखाती है जिसके ऊबड़ खाबड़ दांत खुलते बंद होते हैं ...गार्ड का चेहरा हिंदी के एक प्रसिद्ध लेखक की झलक दिखा कर लुप्त हो गया है ... इस लेखक को अगर पहचान लूं तो सारे खाब का खुलासा हो जाए ... पर इस वक़्त तो में किसी भिखमंगे की तरह लुटा पिटा फटे हाल गिड़गिड़ा रहा हूँ ...मेरी भूख आग हो रही है और वो चेहरा हमारी बुढ़िया के नाटक का मुख्य किरदार बन गया है ...में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में पहुँच गया हूँ ...!
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    7 Manoj Chhabra, Principal Bhupinder and 5 others
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    Rewa Rishi
    Rewa Rishi Thank GOD it was a dream......these are subconsciousness stresses and resentments. Get rid of them ...fast...and have sweet dreams.
    October 15, 2011 at 9:46pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora स्वप्न का अंत नहीं हुआ है ... याद रहा तो आगे भी धारावाहिक रूप में चलेगा ...
    October 15, 2011 at 10:41pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora reality is stranger than fiction ...
    October 15, 2011 at 11:01pm · Like
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma fiction is chid of reality :)
    October 15, 2011 at 11:31pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora एक के बाद एक कंगारू बड़ी बड़ी छलांगें मारते हुए मेरे ऊपर से गुज़र रहे हैं .
    अभी कुछ दिन पहले किसी कंगारू की दुलत्ती से कोई आदमी सर फुड़वाकर राम नाम सत्त हो चुका है ... अरे ,यह तो नीलम मान सिंह चौधरी का कमाल है .टीला भरभराकर खंडित होता हुआ मेरे स्वप्न की दहलीज पर ही धूल धूसरित हो रहा है.नक्काल जैसे लोग हैं जो शायद पिछले स्वप्न वाली बस में सवार थे ...यहाँ खूब नाच रहे हैं. कंडीयाले जंगले में .ऊबड़ खाबड़ दांतों वाला चेहरा इस स्वप्न में कहीं नहीं है .न ही नीलम कहीं दिखाई दे रही है .हालांकि नीलम के घर का थियेटर बीच बीच में लपक झपक रहा है .पता नहीं कैसे इसी के अंदर से भारत भवन भी अपनी झलकी दिखलाकर यकायक नदारद हो गया है ..संगीत है ... सुन्नमसुन्न तरकालों का ..बी. वी. कारंत ...? टीले के नीचे बहुत तेज़ी से कोई कार जंगल की बजरीली सड़क पर से दौड़ गयी है .यह शायद वो बेवकूफ सा दिखने वाला लड़का है जो नीलम के नाटक में कभी सुर में कभी बेसुरा गाता है ...उससे डांट खाता हुआ जो रात के अँधेरे में मेरे साथ चल रहा है ... हम घर नहीं पहुँच सकते ...घर है कहाँ ?

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  146. Anurodh Sharma AA: ab aankhen kholo....maamu subah ho gayee.....madhu ji ne to aap ki pyali chai ki rakh di...vo bhi thandi ho gayee..shayad vo bhi aap k swapan me gum ho gayee :)
    October 16, 2011 at 1:21am · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA kadi asi twadey naal hadd to aggey vadd jayee da ..ho sakey muaaf kar dena ji :)
    October 16, 2011 at 1:45am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora यह सवाल मैं अपने आप से पूछ रहा हूँ .. मधु से विदा लेते हुए यह सवाल उठा था .
    अब आएगा तुम्हें घर याद ! जा रहे हो न.. जाओ .लेकिन घर तुम्हारा पीछा करेगा .. !
    समंदर के साथ साथ यह सड़क कितनी वीरान . कितने टीले बिखर गए ..कितने छूट गए जिनपर कई कई दुनियाएं सुस्ताती रहीं .जेल की सलाखों के पीछे से रीछ वाला हाथ उस गार्ड तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है . इस आदमी को नोंच लूं तो स्वप्न से छुटकारा हो जायेगा . jaagaa hua आदमी जब अपने स्वप्न में jaata है तो स्वप्न kuchh और hi rang roop le leta है . kabhi kabhi तो aisi aisi daastaanein usmein jud jaati hain jo jhoothi तो nahin hoteen per स्वप्न waali sachhaayi bhi nahin bayaan करतीं .
    मैं मधु को स्वप्न suna रहा हूँ और usmein गार्ड के haathon में dande की jagah tez nukeela हथियार thama deta हूँ .अभी इस हथियार से मुझे गोद गोद कर हलाक़ किया जाएगा.
    और खाओ मांस ..चिकन बिरयानी , कबाब , गोश्त गोश्त करते रहते हो..अब पता चलेगा जब तुम्हारी चान्पें निकाली जायेंगी ...
    October 16, 2011 at 1:59am · Like · 2
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA : Madhu ji khud ik sapna hain ik deevaney ka...sab jaanti hain....aap ko to bahut achhi tarah se...ha ha ha ...how is she now? u both mk such a wonderful couple....meri bhain da

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  147. Atul Arora
    October 15, 2012 at 8:01pm ·
    आकर वह मेरे नासापुटों में बैठ गया है
    अब मैं सूंघ ही सूंघ हूँ
    मेरे फेफडे सांस नहीं ले रहे
    सांस हो गए हैं
    अरबों खरबों मीलों की लम्बाई ताने हुए
    मेरे भीतर से निकलता हुआ श्वास
    इमारतें सूंघ रहा हूँ
    सूंघ रहा है कब्रिस्तान
    शेष हो रहे हैं मेरी साँसों में
    देश ही देश
    समंदर की नाभि में जा कर बैठ गया हूँ
    आकाश को लपेट कर
    आकाश मुझ से घबराता है
    मैं ब्रह्म का रंध्र हूँ कि हूँ रंध्र में
    शब्द निः शब्द
    आकृति विहीन
    भाव नहीं कोई
    फिर भी रसना की लपट में
    अग्निशिखा मैं
    सांस हूँ .सांस ..........!
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    5 Taseer Gujral, Akhil Gautam and 3 others
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    Atul Arora
    Atul Arora ek pankti chhot gayi ... srishti , मुझसे बचकर तू कहाँ जायेगी ..?
    October 15, 2012 at 8:12pm · Like · 2
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    Bhupinder Brar
    Bhupinder Brar भाव नहीं कोई / फिर भी रसना की लपट में.... sahi hai, yahi hai.
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    October 15, 2012 at 8:14pm · Like · 1
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    Dariye Achho
    Dariye Achho ब्रह्म का रंध्र !!
    October 15, 2012 at 8:26pm · Like · 1

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  148. RS AGO TODAY

    Atul Arora
    October 15, 2014 at 9:57pm ·
    नाज़ नखरे उठाने तुम्हें आते नहीं हैं
    नायिकाओं के
    और चढ़ने चले हो विंध्याचल पहाड़
    कोई प्रेम पर्वत नहीं जो सिनेमा देख लिया
    थोड़ा गुर सीख लिए उस्तादी झाड़ लेने के
    तो बाज़ी नहीं पीट लोगे गली नुक्कड़ में
    सड़क छाप होना भी आसान नहीं होता
    बराबर मुंहफट और बेशर्म होना पड़ता है
    गाली गलौच की तो ऐसी कैसी तैसी
    तुम्हारा तो सुस्सू ही निकल जाता है
    धत्त जैसे गीले मैं पैर रख दिया
    हाय कीचड ही कीचड
    जाओ ,
    रंग पहन आओ
    कमीज हो कि पैंट
    नंगा नाचता गोविंदा
    ऐनक चढ़ाओ काली
    गले में रूमाल भी
    कुछ ऐसे फहराओ कि
    झण्डाबरदारी में लगे नंबर वन
    उसके बाद रांड से पुरान्ड में से लाओ
    कृष्ण कन्हैया
    मोरपंख सजाओ
    माउथ ऑर्गन बजाओ
    राधा को सुनाओ
    यूथ किसी फेस्टिवल में योयो जैसे गाओ
    हनी सिंघ बन जाओ
    होते होते होगा कुछ अंग्रेजी प्यार
    फर्राटेदार
    मीका से लेना कोई बोल भी उधार
    बस फिर चीका ही चीका
    आया गाल पे गुलाल
    क्यों न है कि नहीं कमाल
    बजता बैंड है न बाजा
    खा जा सबको कच्चा खा जा
    आजा मेरी गली आजा !
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  149. Surendra Mohan
    Surendra Mohan बड़ी `दुर्धर्ष` कविता ...:)
    October 15, 2014 at 10:03pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia sadiyon se ,/isii vakr dhun mein/baaje ishq ka baaja...http://youtu.be/HsjCSO-DhO0
    See Translation

    Kabhi aana tu meri gali - Euphoria
    Full of Masti n Dhamaal all peoples in this…
    YOUTUBE.COM
    October 15, 2014 at 10:06pm · Like · 1 · Remove Preview
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    Satyapal Yadav
    Satyapal Yadav Kya baat, gazab..
    See Translation
    October 15, 2014 at 10:09pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia and a new genre
    See Translation
    October 15, 2014 at 10:31pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia and this song fro 1952 Dev Anand film " Jaal" ( Music SD Burman )...'Chori Chori Meri Gali Aana Hai Bur...Tayta...'http://youtu.be/YjSZJym7cKQ

    Chori Chori Meri Gali Aana Hai Lata Mangeshkar Chorus in Jaal
    Movie: Jaal (1952) Director:Guru Dutt…
    YOUTUBE.COM
    October 15, 2014 at 10:37pm · Like · 1 · Remove Preview
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    Atul Arora
    Atul Arora Ek pankti aakhiri aur thi....kaat di thi ..phir add kar raha hoon ..." kal ko MP banker chha jaa...'
    October 15, 2014 at 10:55pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia the irony of cyber age...Baad mein jodii pankti par kisii ka dhyaan nahiin jaata...sab kooch kar gaye hote hain...kisii aur post par batiyaate...
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    October 17, 2014 at 5:10am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Aap to lautey is koochey mein Le
    Kin.
    October 17, 2014 at 5:30am · Like
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia yeh koochey yeh galiyaan zigzag facebook ke...
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    October 29, 2014 at 11:13am · Like

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  150. DAY

    Atul Arora
    October 16, 2015 at 9:24pm ·
    होने दो / अतुलवीर अरोड़ा
    होने दो , इसे होने दो !
    सम्भव है
    आता हुआ घनघोर अन्धेरा
    कुछ देर टल जाए !
    टूटने से पहले अगर
    जुड़ने की कोई
    क्षुद्र सी संभावना भी बची हुई है
    तो ओट दिए रहना
    बुझती हुई रौशनी को पुनर्जीवन थोड़ा
    कुछ
    ऐसे ही मिलेगा।
    कितने भी बौने सही
    रहो इनके बीच
    बारिशों के जंगल तुम्हें देते रहेंगे
    जीवन
    संगीत
    नृत्य
    वन्य
    धन्य
    जल
    केंकड़े
    और मीन !
    चोरों डकैतों की तरह मत आना
    सभ्यता के वंचक
    ये तुम जैसे अहंवादी
    व्यापारी नहीं हैं
    तिजारत से खाली
    शिकारी तो हैं
    पर रहना इन्हें आता है
    दूसरे के साथ
    होने दो
    इसे होने दो
    कि होने से इनके
    हमारा होना है
    इनकी वन्य
    प्रसन्नताओं की तरह
    हरा हरा
    जंगल की खुशबू से भरा
    झर
    भरा !
    चुनना ही चाहो तो चुनना
    उन्माद
    या फिर अवसाद
    होना न होना
    खुद करना बर्बाद
    कितने भी विकसित हो जाओ तुम
    कद्दावर
    ऊंचे
    भड़कीले
    भव्य
    विराट
    बौनापन इनका है
    आकर्षक
    सरासर
    सिरे से संस्कारित
    प्राकृत प्रकृति संग
    बहुत मूलयवान !
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    15 Bhupendra Khurana, Ashish Mishra and 13 others
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar अकथ का कथन !!
    LikeShow more reactions · Reply · October 16, 2015 at 9:47pm
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    Anil Sharma
    Anil Sharma "चोरों डकैतों की तरह मत आना
    सभ्यता के वंचक
    ये तुम जैसे अहंवादी
    व्यापारी नहीं हैं

    तिजारत से खाली
    शिकारी तो हैं
    पर रहना इन्हें आता है
    दूसरे के साथ"

    क्या बात है
    :-) :-)
    LikeShow more reactions · Reply · October 16, 2015 at 10:38pm
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    Anil Sharma
    Anil Sharma "कितने भी विकसित हो जाओ तुम
    कद्दावर
    ऊंचे...See More
    LikeShow more reactions · Reply · October 16, 2015 at 10:49pm · Edited
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    Madan Gandhi
    Madan Gandhi superb.
    LikeShow more reactions · Reply · October 17, 2015 at 1:57am
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma Atlul ji Ati uttam.......punjab vich ik badi ghat istemal keeti gayee gall hai....CHADAR PANA....asi sab jandey haan eda matlab...chalo koi gall nahi mitti pa do asi mar chukey haan...ped tey sada punar jeevan hagey ney :)
    LikeShow more reactions · Reply · October 17, 2015 at 9:44pm

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  151. Atul Arora
    October 16, 2014 at 9:29pm ·
    पात्र नहीं था वह
    फिर भी मिल गया दर्जा उसे
    पात्र का
    अब वह सोच रहा था
    पहले जैसा नहीं
    कि कोई कुछ भी भर देता उसके भीतर
    और वह स्वीकार कर लेता
    आकार की आज्ञा के बाहर
    अब वह मिटटी के अलावा भी कुछ था
    धातु में से बोलता हुआ
    अपना सॉफ्ट वेयर तौलता हुआ
    कभी उसे लगता वह
    जानता नहीं है खुद को
    पूरी तरह वैसे
    जैसे जानना होता है
    अधूरा भी सुनता खुद को
    हैरान हो जाता
    शब्द उसके खुद
    उसे अटपटे लगते
    जैसे किसी अपरिचि भाषा के ज़बरदस्त
    शिकंजे में हो
    एक दिन उसकी मृत्यु हो गयी
    पुलिस उसके घर पर थी
    तलाशी और तफ्तीश दोनों फुर्ती में थे
    साज़िश होगी किसी की
    या आत्महत्या है
    मौत उसकी कैसे भी सहज नहीं लगती
    दूसरे बता रहे थे
    दब गयी होगी ज़रूर कोई ऊँगली
    गलत किसी जगह
    अपने ही आदेशों का पालन करते हुए
    अस्पताल में उसने
    मरने से पहले
    बयान देना चाहा
    भाषा नहीं मिली !
    5 Comments2 Shares
    13 Virender Kapur, Swaran Singh and 11 others
    Comments
    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder e ---poem------by satire poet atul-----धातु में से बोलता हुआ
    अपना सॉफ्ट वेयर तौलता हुआ
    October 16, 2014 at 9:32pm · Like · 1
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    Swaran Singh
    Swaran Singh 'पात्र का दर्जा' मिलना, फिर 'आकार की आज्ञा' के बाहर कुछ न होना, मृत्यु पर बयान की भाषा तक न होना, 'तलाशी और तफ्तीश' के लिए 'पुलिस' का मोहताज होना - आह!
    October 16, 2014 at 10:50pm · Like · 3
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder swaran singh too good what a style of commenting I like this way
    See Translation
    October 16, 2014 at 11:00pm · Like · 1
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    Balvinder Balvinder
    Balvinder Balvinder ungli, (galat ya sahi): aaj aadmi isi key ishaarey pey naach raha hai :-)
    October 16, 2015 at 8:30pm · Like
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar अद्भुत अर्थ -गाम्भीर्य !!! मांत्रिक कविता!
    October 16, 2015 at 9:27pm · Like · 1

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  152. Atul Arora
    October 16, 2012 at 11:22pm ·
    एक बार हलाक़ हो जाने के बाद वह उगता नहीं था ..कफ़न में दफ़न होता था ...
    2 Comments
    4 Vinod Vishwakarma, Dariye Achho and 2 others
    Comments
    Narendra Dutt Sharma
    Narendra Dutt Sharma " बेगुनाह होने के गुनाह मे"
    यहीं पर
    कुछ गुमनाम शख़्सों को
    लटकाया गया था
    लोहे की सख़्त सलीबों पर
    जिनकी जुबान ने
    पालतू होने से इनकार कर दिया था
    See Translation
    October 16, 2012 at 11:35pm · Like · 3
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    Atul Arora
    Atul Arora ताबूत बनकर ..!
    October 17, 2012 at 12:24am · Like
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  153. Atul Arora
    October 16, 2012 at 10:19pm ·
    होना था जो हो लिया अब कितना और होना है
    न हुए में से निकल कर बीज कैसा बोना है
    होते होते ही हुआ था जिसका होना सार्थक
    व्यर्थ निकला वह भी उसको कितना और ढोना है

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  154. Atul Arora
    October 16, 2011 at 5:27pm · Chandigarh ·
    इतनी सुबह ....ऊपर ...!
    सुपर डूपर....!
    रैग्ज़ उठा रही है और
    गा गा गा रही है
    गति मति अति सुंदर
    आज मैं ऊपर ...!

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  155. Image may contain: 1 person, stripes and text
    Hindi Pu
    September 15, 2012 at 5:44am ·
    लोग, कवि लोग

    लोग अचानक बाजार में थे
    और उन्हें पता नहीं था
    वे लोग वहीं रहे ।
    कुशल
    या कि अकुशल संसाधन बन चुके हैं
    कहने को विशेषण
    बच रहा है मानवीय।
    जैसे हर वस्तु का मूल्य है बाजार में
    उनका भी था।

    औरतें,
    जो बच्चों के भरण-पोषण में
    घरों के भीतर बाहर
    अहर्निश खटती थीं
    निकम्मी और जाहिल घोषित होकर
    बेकमाऊ-सी बीत रही थीं
    हमारी सामाजिकता में।
    बेहद प्रताडि़त और अपमानित थे।
    प्रश्न खड़े थे
    दायें
    बाएं। क्योंकि
    पूछने की ताकत मरी नहीं थी।
    सूचनाएं
    उत्तर
    जानकारी के स्रोत
    लक्ष्य थे हमारे
    नई शिक्षा के।

    अनुभव और विचार
    शोध के अलंकार
    दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में
    हवाई जहाजों में बैठकर उड़ते हुए
    विश्वभर में इधर-उधर आ-जा रहे थे।

    जीवन के प्रति उत्साह की भाषा को
    तेजी से कवि लोग
    अपनी कविता में दर्ज कर रहे थे। ..

    -अतुलवीर अरोड़ा
    अनुवाद देखें
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    25 Bhupendra Khurana, Ashish Mishra and 23 others
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    Surendra Mohan
    Surendra Mohan अहा ! क्या बात है !
    Like · Reply · October 16, 2015 at 7:20pm
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Taha,Tanha;math socha kar/mar jaawega,mar jaawega,mat socha kar...
    Pyar ghadi bhar kaa hii bahut Hai/Jhoota sachcha mat socha kar...
    Like · Reply · October 16, 2015 at 9:21pm
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar कवि आ खड़ा बाज़ार में !- कविता का, कविता में समय !!
    Like · Reply · October 16, 2015 at 9:32pm
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    Chitra Mohan
    Chitra Mohan विषय चिंतनीय मुद्रा प्रशंसनीय

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  156. Atul Arora
    October 19, 2010 at 9:02pm ·
    हाथ कोई हाथ है कि अकेले इस क्षण में जैसे कोई साथ है /माई के झाटे सा रेशम उड़ाता है यादों की तैरती हुई हवा में का रंगीन बड़ा संगीन जादू झांसा देता हुआ /वक्ष पर से फर्श पर गिरते दुपट्टे के उचके हुए छोर में कहीं कुछ ढांप लेने की हरकत दिखाता है /हाथ कोई हाथ है जो चौखट में से उगता हुआ दीवार पर चढ़ता है हाथ में छिपे हुए हाथ भर के चेहरे को हाथों में लो और दीवार के साथ साथ तैरती हुई स्मृतियों की नयी यात्रा बो लो ....
    1 Comment
    5 Pranay Bhanot and 4 others
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    Rakesh Shreemal
    Rakesh Shreemal Haath bhar ke chehre ko haatho main lo.......Kya likha hai Atulji...wah

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  157. YEARS AGO TODAY

    Atul Arora
    October 19, 2011 at 7:23pm · Chandigarh ·
    किसी ने कुछ चाहा था
    जिसे पाना
    इतना सहज था
    उसके लिए
    कि पाने के क्षण में
    वह लेते
    लेते ही भूल गयी
    कि उसने चाहा था जो पाना
    वह सच में था
    क्या
    वही
    जो उसे मिल रहा था
    और इस तरह जो मिल रहा था
    मूल्यवान
    होकर भी
    मूल्य खो बैठा
    तो
    जो मिला
    वह मिला ही नहीं
    दरअसल ...
    पड़ा रहा उसकी झोली में
    और वह सो गयी
    बेखबर
    जागी तो अनुपस्थित हुआ
    उप
    लब्ध ....!

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  158. eenu Talwar Wah!
    October 19, 2011 at 8:34pm · Like · 1
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    Reenu Talwar
    Reenu Talwar mil jaaye to mitti hai...
    October 19, 2011 at 8:34pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora कायनात
    अगर कुछ
    सुलभ करती है
    तुम्हारे लिए
    तो क़द्र करो उसकी
    छीन
    क्यों नहीं लेगी
    अगर आओगे पेश
    कुछ इस तरह
    न मुखातिब होकर ...!
    October 19, 2011 at 8:52pm · Like · 3
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    Atul Arora
    Atul Arora मंडराता रहता है हवा में
    भंवरे की तरह
    अपना गीत गुनगुनाता हुआ
    और झटकते रहते हैं हाथ
    हम
    उसे दूर फटकारते हुए ...!
    October 19, 2011 at 9:13pm · Like · 2
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    Atul Arora
    Atul Arora रस की वास्तविकता का सार
    उसकी निष्पत्ति में होता है
    वैसे ही जैसे
    बिखरने में होती है
    सार्थकता सुगंध की.
    घुलनशील नहीं हो पाते हम
    ऐसे प्राकृतिक पदार्थ बन
    जबकि है तो
    कुछ
    हकीकत
    पादार्थिकता में भी
    या कि कहो
    ही ....
    हालांकि यह भी
    आधात्मिकता है हमारी
    जो हम सोच पाते हैं
    यूं
    करते
    न करते....
    करतार जी ...!
    October 19, 2011 at 9:49pm · Like
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma tera na milna hi, milna hi tha....tera na hona hi hona hi tha...to kya ki tu na mili, par milna tera na hona hi tha...terey milney ki aas me, yu hi ghut k jeena to hona hi tha!!!
    October 20, 2011 at 3:05am · Like · 2
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder jo mil kar bhi de naa milney kaa ehsaas
    October 20, 2011 at 3:07am · Like · 1

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  159. Atul Arora
    October 19, 2014 at 9:21pm ·
    वह सीढ़ियां उतर रही थी
    आवाज़ नहीं थी
    सीढ़ियां चढ़ते हुए भी उसे
    मैंने सुना
    कोई आवाज़ नहीं
    सीढ़ियां ही थीं शायद जो सुना रही थीं
    अपना उतरना चढ़ना
    नीचे से ऊपर की तरफ
    ऊपर से नीचे की तरफ
    बिल्ली के पाँव में की गद्दी की छपाक
    मखमल सी आवाज़
    हवा की तरह तैरती हुई वह अभी पास से गुज़री
    फिर साफ़ सुनाई दी
    दिखाई दे जाती शायद
    दिखाई नहीं दी
    बच्चे साफ़ दिखाई दे रहे थे
    एक फ्रॉक दिखी
    गहरे लाल फूल
    गुलाब के पंख
    तार तार उजड़े हुए
    काँटों में उलझी हुई
    आवाज़
    सूख गयी
    अटकी हुई गले में की चीख
    रोना सुनाई दिया होगा
    सुना नहीं
    नहीं
    मैंने भी कहाँ
    सीढ़ियां थीं
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    15 Virender Kapur, Balvinder Balvinder and 13 others
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Life's irony/essence--Ambivalence...
    See Translation
    October 19, 2014 at 9:24pm · Like · 1
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    Bhupinder Brar
    Bhupinder Brar Great poem. Very suggestive and evocative.
    See Translation
    October 20, 2014 at 2:05am · Like · 1
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    Soumitra Mohan
    Soumitra Mohan बहुत सुंदर कविता है.
    October 20, 2014 at 7:47am · Like · 1
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar अब तक जो अबोली रही, उसी कविता का सृजन ! अतुलनीय! अपोह को आक्रांत करती हुई कविता ! नमस्कार!

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  160. Atul Arora
    October 20, 2014 at 9:10pm ·
    ज़िक्र मेरा था
    नहीं
    पर मैं वहां भी
    था
    कुछ नामचीनों में जहां
    हमनाम
    मेरा था
    उसके बहाने से
    अलग
    ज़िक्रे ख़याल में
    उन ने बताया उनको जो
    मेरा वजूद

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  161. Atul Arora
    October 20, 2011 at 8:24pm · Chandigarh ·
    सच जानने
    या उस तक पहुँचने के भी
    कुछ
    बड़े अजीब ही से तरीके होते हैं
    मसलन
    जब कोई नंगा नाच नाचता है
    या फिर इस मुहावरे में नाचता नचाता है
    खुद को
    या दूसरों को
    तो प्रकट तो किसी न किसी तरह से
    सच ही को करता है
    पता नहीं
    उस वक़्त
    वह कितना दुखी होता है
    या कितना सुखी .
    जो भी हो
    सूरज को
    सलीब दिखाना आता है
    chadhna usper
    sab के bas के baat
    नहीं hoti ...
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    14 Balvinder Balvinder, Surendra Mohan and 12 others
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    Atul Arora
    Atul Arora chipak chipak chipka .....
    October 20, 2011 at 9:03pm · LikeShow more reactions
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    Atul Arora
    Atul Arora ek sookha swarg aur ek geela narq ....donon nange hain ....sookhe mei kodh phoot raha hai aur geela mavaad phaink raha hai ...chunaav kya karein ...!donon mein chipak to shesh hai...!
    October 20, 2011 at 9:55pm · LikeShow more reactions
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder salib----sab ko shayad jhelna padta hai kabhi na kabhi
    October 21, 2011 at 3:15am · LikeShow more reactions
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar Some of the best poetic utterances I ever heard on the dance of "naked truth"! Only one whose "truth-sensitivity" may have been brutalised for trying to practice " satya" amidst wild revelries of "naked asatya" can write these lines! Lage raho Atul bhaai saheb!
    October 21, 2011 at 9:07pm · LikeShow more reactions · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder gargi novel the naked triangle---stirred persons all around
    October 21, 2011 at 9:09pm · LikeShow more reactions

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  162. Atul Arora
    October 20, 2011 at 3:07am · Chandigarh ·
    किसी ने दिखाया मुझे
    गोल रोलगोल टॉप !
    लैपटॉप डेस्कटॉप गोल कर दूं क्या ....?
    हो क्या गया है ..?
    एक चीज़ लाता हूँ घर
    घर गोल कर देती है
    जब तक संभालता है घर
    घर ही में
    घर में मैं खुदबखुद
    गोल हो जाता हूँ ..
    गोल आपकी पृथिवी
    गुम्बद आकाश
    गोल गोल शब्द सारे
    अर्थ गोलाकार .....!
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    7 Vikas Rozal, सदोष हिसारी and 5 others
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    Maya Mrig
    Maya Mrig .... इस तरह काम की बातें इन सबके बीच गोल हो जाती हैं....
    October 20, 2011 at 4:37am · LikeShow more reactions · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora लैपटॉप ,डेस्कटॉप तो चल रहे हैं ..एक रोल टॉप भी आ गया है ... कंधे पर लटकाओ...जूलियन असान्झ की तरह सबको रोल गोल किये जाओ ... जाओ..! तथास्तु ..!
    October 20, 2011 at 6:48am · LikeShow more reactions · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder gool maal hai sab gool maal hai---seedhey rasttey ki tedi chaal hai--jai ho mew
    October 20, 2011 at 10:24am · LikeShow more reactions

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  163. Atul Arora
    October 20, 2010 at 8:38pm ·
    ek jhakh safed ghoda
    daud raha hai barf ke samander mein
    adrishya hota hua....
    baarish aur dhoop ke jaise beshumaar
    aashay hotey hain ....mantavya bhi....
    sachmuch ..
    barf inke mukaabil
    aagrah viheen hoti ...tatastha aur uddeshyaheen ...
    7 Comments
    11 Prabhat Ranjan and 10 others
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    Reena Satin
    Reena Satin Sundar..
    October 20, 2010 at 8:51pm · Like
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    Mrunalinni R Patil
    Mrunalinni R Patil apratim sir..
    October 20, 2010 at 9:11pm · Like
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    Reena Satin
    Reena Satin एक झक सफ़ेद घोड़ा
    दौड़ रहा है बर्फ़ के समंदर में
    अदृश्य होता हुआ....
    बारिश और धूप के जैसे बेशुमार
    आशय होते हैं.... मन्तव्य भी....
    सचमुच....
    बर्फ़ इनके मुक़ाबिल
    आग्रहविहीन होती....
    तटस्थ और उद्देश्यहीन....
    October 20, 2010 at 9:11pm · Like · 3
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    Atul Arora
    Atul Arora @REENA>आपने कर दिखाया .. वाह ! शुक्रिया...
    October 20, 2010 at 9:24pm · Like
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    Reena Satin
    Reena Satin Comments mein type karne se to aa hee jaata - par agar aap post bhee type kar den to woh bhee shaayad aa jaayegee. Yeh copy-paste kee hee samasya lag rahee hai.
    October 20, 2010 at 9:52pm · Like · 2
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    Atul Arora
    Atul Arora post bada freb dikhaati hai .pahley aa jaati hai ,phir ud jaati hai ...
    October 20, 2010 at 9:58pm · Like · 2
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA: aap ki jitni tareef karen kam hai ji!safedi ki itni achhi misaal...wah lagta hai detergent waley aap k peechhey lagey hain ji!

    dil ka kya hai ji jo bhi man me aata hai bol deta hai

    udhel deta hai syahi safed panno pe

    aur kehta hai ab arth dhhondhho

    aisey hi khayal aaya ki AA se poochho, is liyey likh diya :)

    ReplyDelete
  164. Atul Arora
    October 21, 2010 at 9:24pm ·
    Is gufa mein daakhil hona bahut mushkil tha .ab jabki main bheetar aa chuka hoon ...andhere ke bheetar ...vo mujh se bhi zyaada sahama nazar aa raha hai.... haalaanki nazar kuch bhi nahin aa raha....
    7 Comments
    10 Raghavendra Pati Tripathi and 9 others
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    Atul Arora
    Atul Arora इस गुफा में दाखिल होना बहुत मुश्किल था ...अब जबकि मैं भीतर आ चुका हूँ ...अंधेरे के भीतर ...वो मुझ से भी ज्यादा सहमा हुआ नजर आ रहा है ...हालांकि नज़र कुछ भी नहीं आ रहा...
    October 21, 2010 at 9:31pm · Like · 5
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    Mrunalinni R Patil
    Mrunalinni R Patil gud mrng sir wah! vo mujhse bhi zyada sehma nazar aa raha hai..
    October 21, 2010 at 9:38pm · Like
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    Saba Badr Khan
    Saba Badr Khan Atul sir hum bhi aap k kheyal se itefaq rakhte hain,insaan k apne andar ka dar hi use darata hai, jis ne is par qabu pa liya koi shye use nahi dara sakti.
    October 21, 2010 at 9:47pm · Like · 2
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    Arvinder Kaur
    Arvinder Kaur ss..how can u think n talk like me !
    October 21, 2010 at 10:46pm · Like
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    Arvinder Kaur
    Arvinder Kaur oh..apologies for being presumptuous...lekin main yahi kehne wali thi jo apne likha
    October 21, 2010 at 11:02pm · Like
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    Shuchi Arora Kataria
    Shuchi Arora Kataria mei darta nhi, is duniya se.
    mujhme aag hai, aakrosh hai.
    Mei bhasm kar sakta hu, dwesh aur rosh ko....See More
    October 22, 2010 at 12:17am · Like
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    Shuchi Arora Kataria
    Shuchi Arora Kataria @Rajinderji shukriya
    October 22, 2010 at 2:00am · Like

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  165. Atul Arora
    October 21, 2011 at 6:21am · Chandigarh ·
    खोली थी
    हमजोली थी
    लक्खी लक्खा
    डोली थी
    डोली थी
    बड़बोली थी
    झूला झूली
    रोली थी
    खुल्लमखुल्ला
    होली थी
    नंग मनंगी
    टोली थी
    टोली लक्खीलाल की
    गोली मक्खीलाल की
    ताम तमंचे ढाल की
    तीर न तलवार की
    लक्खी खालिस सोना थी
    मीठा कोई भगौना थी
    लच्छी थी या मच्छी थी
    उम्र की बेहद कच्ची थी
    शहर पुराना पापी था
    लक्खा नया मिलापी था
    हंगामे हंगामे में
    कुछ होना बड़ा सरापी था
    शहर पुराना पापी था ...
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    4 सदोष हिसारी, उत्तमराव क्षीरसागर and 2 others
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    Anjesh Kumar
    Anjesh Kumar WAH KYA ANDAJ HAI
    October 21, 2011 at 6:27am · Like
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder behatarin
    October 21, 2011 at 7:02am · Like

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  166. Atul Arora
    October 21, 2011 at 5:36pm · Chandigarh ·
    उसका सीना
    खोल गयी धीरे से हवा
    मिन्नतें कर करके उसे
    नदी ने बुलाया था ....
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    6 Shrikaant Saxena, Manoj Chhabra and 4 others
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    Atul Arora
    Atul Arora रात ज़ालिम ने उसे यूं बेतरह रुलाया था
    October 21, 2011 at 6:16pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora जाने किसकी सोहबत ने कैसे किसे सुलाया था
    October 21, 2011 at 6:22pm · Like
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  167. Atul Arora
    October 22, 2011 at 8:21pm · Chandigarh ·
    मुमकिन नामुमकिन सी कोई अजब कहानी होती है
    अक्सर उसकी ग़ज़लों में कोई बात सयानी होती है
    हालांकि कहता है वो भी पहले कहा कहाया जो
    कुछ लेकिन अंदाज़ है उसका अजब बयानी होती है
    करने को तो वाजिब ही को लाज़िम करना होता है
    फिर भी कहा सुनी में कोई बात टिकानी होती है
    नया नकोर मुसलमाँ है वो उम्र तो हासिल करने दो
    गले से उसके निकली जो आज़ान रूहानी होती है ...

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  168. Atul Arora
    October 22, 2010 at 10:11pm ·
    kaisee hoti hogi zindagi
    jisey koi kharch karta hoga
    zindagi ki tarah hi
    aur bhool jaata hoga....
    vaisey nahin
    jaisey koi poonji...
    hum kharch to kartey hain
    lekin bhool nahin paatey
    kitana khach kar diya ...
    4 Comments1 Share
    11 Dilip Kumar Jha and 10 others
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    Mrunalinni R Patil
    Mrunalinni R Patil brilliantly sensitive sir.. Good morning..
    October 22, 2010 at 10:37pm · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA: I live life as u know on the pattern u just described in ur poem.....just hand to mouth!!!1
    October 23, 2010 at 4:10am · Like
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    Mool Chandra Gautam
    Mool Chandra Gautam yah philosophy hi jindagi ko bachaye rahti hai .
    October 23, 2010 at 8:44pm · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma SS: onion in delhi is @30 per kg
    October 24, 2010 at 12:19am · Like

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  169. कैसी होती होगी ज़िन्दगी
    जिसे कोई खर्च करता होगा
    ज़िदगी की तरह ही
    और भूल जाता होगा

    वैसे नहीं जैसे कोई पूँजी
    हम खर्च तो करते हैं
    लेकिन भूल नहीं पाते
    कितनी खर्च कर दी।

    ReplyDelete
  170. tul Arora
    October 23, 2011 at 9:15pm · Chandigarh ·
    पत्थरों में ठोकरों सा बैठ गया हूँ
    ऊबड़ों में खाबड़ों सा बैठ गया हूँ
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    Atul Arora
    October 23, 2011 at 9:06pm · Chandigarh ·
    सबब कोई बन पड़ा तो सर उठाऊंगा
    हाल को तो झाग बनकर बैठ गया हूँ
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    Atul Arora
    October 23, 2011 at 8:58pm · Chandigarh ·
    मुद्दतों से इक ठिकाना ढूंढ रहा था
    मिल गया तो चौखटे पर बैठ गया हूँ
    2 Comments
    9 Principal Bhupinder and 8 others
    Comments
    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder chookhat is your anchor -i-ti twould hold you fast to stability
    October 24, 2011 at 12:18am · Like
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma aap ka swagat gai atul ji, jion aayyan nu :)
    October 24, 2011 at 5:27am · Like
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    Atul Arora

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    Atul Arora
    October 23, 2011 at 8:30pm · Chandigarh ·
    इतने जंजाल जी के साले छूटते नहीं
    ऊपर से संजाल ओढ़ कर बैठ गया हूँ
    दिखाऊँ कैसे सफ़ा अपने मकड़जाल का
    jaal mein khud kaid hokar बैठ गया हूँ ...( Shit ..!What translitteration ...)
    1 Comment
    5 Sujata Singh, Vinod Sachan and 3 others
    Comments
    Atul Arora
    Atul Arora इक जगह थी छूट गयी बैठ गया हूँ
    खुद ठिकाने का ठिकाना बैठ गया हूँ

    ReplyDelete
  171. Atul Arora
    October 25, 2016 at 12:41am ·
    रूप रूपा रुपी ..
    यह इंस्टाग्राम जी के जागने का वक़्त है,
    "दूध और शहद"
    पियो !
    ऐमज़ॉन जी !
    जियो !
    एक लड़की
    सिर्फ रजस्वला ही नहीं होती
    कि जिसकी रक्त बूँद का दृश्य
    उसी की चाह का हिस्सा बनकर
    पालतू कुत्तों कातर कूतर बिल्लियों के
    वीडियोज़ पर हावी हो जाए !
    इतना आततायी हो जाए
    कि तुम और तुम्हारे खेल
    युद्ध तमाम
    वॉटरलू हो जाएँ !
    वह जानती है
    समझती उससे भी ज़्यादा है
    तुम्हें उसके नंगे घुटने
    जाँघों और गुप्तांगों के दृश्यों से परहेज़ नहीं होगा
    इसीलिए उसकी कविताएं बताती हैं कि तुम कभी कज़िन
    कभी अंकल की शक्ल में
    उसके शरीर पर अपनी हुकूमत की छाप अंकित करोगे
    ऐसी तमाम जगहों को ठंडा बर्फ करते हुए
    जहां निग्घा ताप
    हंसता
    खिलखिलाता है !
    यह लड़की सर्जनात्मकता का क्रांतदर्शी अध्याय है
    स्त्री विमर्श नहीं कोई
    जिसके पीले पन्नों पर तुम्हारे हस्ताक्षर हैं !

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  172. 14 Ruchi Bhalla, Chitra Mohan and 12 others
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    अम्बुज पाण्डेय
    अम्बुज पाण्डेय अंतर्मन को स्तब्ध कर देने वाली मर्मांतक कविता।अपूर्व चाक्षुष बिंब...।बधाई..
    Like · Reply · 1 · October 25, 2015 at 9:34pm
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar और देखता हूँ कि अतुल भाई साहब घिरे हैं येट्स ,इलियट ,पाउंड, निराला, मुक्तिबोध, नज़रुल, टैगोर, साहिर, फ़ैज़, इत्यादि कालजयी कवियों से और वे सब उनसे बार-बार कह रहे हैं -" प्रिय बन्धु, शब्द ब्रह्म की ऐसी अद्भुत साधना कैसे संपादित की ??" - सुधीर
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    · Reply · 1 · October 26, 2015 at 5:00am
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    Atul Arora
    Atul Arora Aap bahut udaarmana hokr padhtey hain mujhe...stay blessed
    Like · Reply · 1 · October 26, 2015 at 8:22pm
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar शब्दों से होकर शब्दों के पार, अर्थों से होकर अर्थों के पार-- परमार्थ परक काव्यात्मक अभिव्यक्ति, वर्ण , अर्थ, रस, लय, के अद्भुत छन्द बुनती हुई नितान्त लोकधर्मी, लोकसंग्रही कविता ! प्रणाम स्वीकारें ॠषिवर !!
    Like · Reply · 1 · October 26, 2015 at 8:39pm

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  173. 1 Atul Arora

    Atul Arora
    October 25, 2012 at 10:50pm ·
    'कुछ नए किस्म की नागरिकता थी उसकी इस देश में .उसका दावा था कि वह वो नहीं हैं जो तुम हम हैं .उसे कभी कभी गुम हो रही या गुम हो चुकी गुफाओं के बारे में भी बात करनी होती थी क्योंकि वह वहीं से आया था .अपने भित्ति चित्रों के साथ . . कहने को वह और उसके जैसे दूसरे भीमबटेका जैसी चीज़ों के मुरीद भी थे पर किन्हीं बहुत मजबूर ढंग से हो चुके प्रवासियों की तरह रहना उन्हें स्वित्ज़रलैंड में पड़ता था . उनका एक विचित्र खप्पर था . खपरैली मस्तक , जो वैसे तो सिन्धु नदी के किनारे पर मंडराता रहता था पर जब कभी मन होता वह तैर कर किसी भी नदी में गोते खाने के लिए चला जाता था जिसे वह नदी दूसरी किसी नदी को संप्रेषित कर देती थी और कभी दूसरी कोई नदी पहली किसी नदी को फिर लौटा देती थी हालांकि लौटा हुआ खप्पर जिस नदी के हवाले से उनके भित्ति चित्रों को साथ लेकर लौटता था वह दूर देशों की यात्राओं पर होती थी . नदी जानती थी यह खप्पर सिन्धु नदी में रहता है . उसी के साथ बहता हैं .उसी से संसर्ग भी करता है फिर भी वह कभी मुखर होकर उसकी अवज्ञा में अप्रस्तुत नहीं होती थी . आखिर उसकी नागरिकता नदियों की थी नदियों की अपनी नागरिकता में घुलती हुई . समन्दरों को फलांगती हुई आकाश के रास्ते से ...!खप्पर हाथ में लिए हुए .. !
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    7 Sayed Rezaul Kabir, Surendra Singh Bhadauria and 5 others
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    Surendra Singh Bhadauria
    Surendra Singh Bhadauria सुन्दर अभिव्यक्ति है.
    October 25, 2012 at 10:57pm · Like · 1
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    Satish Jayaswal
    Satish Jayaswal asaadhaaran aitihaasik-kalpnaasheeltaa kee utnee hee asaadhaaran is gadya prastuti ke saamne vismit hoo...
    See Translation
    October 25, 2012 at 11:08pm · Like · 1
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    Dariye Achho
    Dariye Achho आपके नोट्स पढता हूँ मैं. जैसे पढता हूँ, उसे महज़ चाव कहना उनका अनादर होगा. मगर तब नहीं जब कोई छात्र किसी शिक्षक से कहे. सो वैसे ही कहता हूँ.
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    October 26, 2012 at 1:22am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora खासे अच्छे दरिया दिल हैं आप ...!अपनी अनुकम्पा बनाए रखिये ...!वैसे तो मैं खुद आपका मुरीद हूँ जी ...!
    October 26, 2012 at 5:53am · Like
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder badiya sociologist hoo khoob likha vivid imagination
    See Translation
    October 26, 2012 at 7:00pm · Like
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma ab kya tareef karoon main aap ki likhayee ki......yeh prashan nahi....yeh ek tareef hai aap ki soch ki gehrayee ki :)

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  174. TODAY

    Atul Arora
    October 28, 2014 at 9:22pm ·
    अकेले का नृत्य है अकेले में
    सुलगना
    भीड़ को देखना
    भीड़ में से निकल कर
    बाहर का
    बाहर
    भीतर उत्पात
    लचक अपनी उपस्थिति मे
    हौले हौले हिलता हुआ
    जिस्म का झूला
    हवा के खिलाफ
    खौफ को आराम मिल सके संभव
    है ही नहीं
    दुर्घटना बेसब्री में
    अपना आतंक
    भूल जाए शायद
    मस्तक से लिपटी
    सर्प की फुफकार
    दुबारा लौट आएगी
    दुनियाँ भूल भुलैयाँ
    सो जाओ के
    ख़याल में
    ख़याल
    पागलों की तरह
    सिरहाने तुम्हारे
    नींद जागती रहेगी
    स्वप्न नहीं राग
    याचना में बने रहो
    नाचते रहो
    नाच।
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    11 Reena Saxena, Virender Kapur and 9 others
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar "अकेला / भीड़ " और "बाहर/भीतर" के सुंदर द्वंद्वात्मक संयोग द्वारा भावाभिव्यक्ति ! सादर
    October 29, 2014 at 3:12am · Like · 1
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar सारी दुनिया का बड़ा सच - कि हमारी ज़िंदगी " याचना" और"नाचना" के निर्देशांकों से ही निर्देशित होती रहती है - और हम लोग इस स्थिति से अनभिज्ञ बने रहते हैं - कैसा सच रच दिया भाई साहब !
    October 29, 2014 at 3:20am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora thodi mehnat to padti hai kabhi kabhi ...tumne kar dikhaayi .. shukriya ..mere samarpit paathak , Sudhir Kumar.

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  175. Atul Arora
    October 28, 2011 at 9:04pm · Chandigarh ·
    अंतर्विरोधों से भरी रहती हैं
    व्यवस्थाएं
    उन्हें बदलने के लिए
    जद्दोजहद
    ख़त्म नहीं होती
    गति
    भई दुर्गति
    मति
    विगत शती
    आगे चलो ,रति ....!
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    6 Sujata Choudhary, Principal Bhupinder and 4 others
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder aagey chalo rati---aagey gehraa andhera hai
    October 28, 2011 at 9:06pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder DURGATI MATI----khoob likhtey hoo atul
    October 30, 2011 at 10:15am · Like · 1

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  176. Atul Arora
    October 29, 2011 at 8:35pm · Chandigarh ·
    रास्ते होते हैं
    बड़ी अजीब चीज़ होते हैं
    आदमी कहता है
    निकालो
    कोई रास्ता
    दूसरे आदमी से
    और वह निकाल नहीं पाता
    जबकि पहले के सामने
    वह खड़ा होता है
    चलता हुआ
    जाता हुआ
    दूसरे किसी रास्ते पर
    रास्ते होते हैं
    बड़ी अजीब चीज़ होते हैं
    निकालते निकालते
    हम थक जाते हैं
    और वो निकल आते हैं
    किसी दूसरे रास्ते से
    रास्ते
    जो दरअसल रास्ते नहीं होते..
    रास्तों के भी दो दो हाथ होते हैं
    जो अक्सर हमारे साथ होते हैं
    दायें चलते हुए और बायें चलते हुए
    चलाते हैं हम
    अक्सर बीच चलते हुए
    रास्तों के अपने अपने बीच होते हैं
    खतरनाक भी और बेहद सुरक्षित ...
    बीच का रास्ता निकाल कर दिखाने वाले
    रास्तों की बातें भी अजीब होती हैं
    अपना रास्ता नापती हुईं
    नपा तुला सिखाती हुईं
    सीखा हुआ भुलाती हुईं
    रास्ता मिटाती हुईं
    मिटे हुए रास्ते भी अजीब होते हैं
    अमीरों की निस्बत गरीब होते हैं
    रास्तों के मुर्शिद फकीर होते हैं
    ऊंचों के जैसे हकीर होते हैं
    अपनी और दूसरों की
    लुटी पिटी सड़ी हुई
    तकदीर होते हैं .... रास्ता पुराण कहाँ तक खींचूँ ... खिंचती हुई लकीर के फ़कीर होते हैं
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    8 Sankalp Mishra, Principal Bhupinder and 6 others
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder bahut behtarin likha aapney

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  177. Atul Arora
    October 29, 2012 at 9:54pm ·
    ek kaagaz ka tukda .. maila kuchaaila .. mila mujhe apne phate puraane kaagazon ki dheri mein . uthaaya aur yahaan teep diya hai .. उसका जिस्म खुद उस से तो संभल नहीं रहा था और वैसे वह मेरी हिफाज़त में एक दुनाली बन्दूक लिए मेरे साथ नत्थी हो गया था . नहीं हो नहीं गया था कर दिया गया था .जिस फर्राटे से मैं अपनी मोटर सायकिल पर सवार हो कर सारे शहर में घूम आता था वह फर्राटा मेरा उसने मेरे साथ हर जगह अपनी मौजूदगी के चलते मुझसे छीन लिया था . उसकी दुनाली जगह जगह पर अड़ जाती और पिल्लियन पर चढ़ने में कभी उसकी देह आढ़े आती और कभी मेरी फुर्ती . .उसके बिना मैं जितना आज़ाद महसूस करता था ,उसके साथ उतना ही बंदी . अजीब बौडी गार्ड था .
    हिंदी पढ़ाते हैं कि संस्कृत ?
    सवाल एस . एस पी. की तरफ से आया था .
    मैं काफी देर चुप बना रहा जैसे इस सवाल का जवाब दे दूंगा तो मेरी हिफाज़त का मोल तोल और संतुलन बिगड़ जाएगा .
    पेरफेस्सर साहब , आप हिंदी पढावे हैं कि संस्कृत ?
    अब की बार कोई हरयाणवी में बोला .
    मैंने उसे देखा .उसका सारा जिस्म एक तोंद जैसा था . जैसे कद्दू के ऊपर कई सारे कद्दू रक्खे गए हों और नीचे से ऊपर की तरफ हिलते हुए उछलने की फ़िराक में हों .
    साहित्य पढाता हूँ .हिंदी साहित्य .
    हमारे पास जो लिस्ट आई है उसके मुताबिक़ आप हिंदी संस्कृत पढ़ाने वालों में शुमार किये गए हैं .
    जी , ठीक ही होगी लिस्ट तो . पर मुझे लगा कि जवाब ही देना है तो वही दिया जाए जो मैं करता हूँ .
    तो हिंदी संस्कृत नहीं पढ़ाते आप ? एस .एस .पी ने फिर पूछा .
    मुझे लगा मैं फ़िज़ूल ही बारीकियों में उलझ गया हूँ . बेचारा ठीक ही तो समझ रहा है . दोनों ऐसी भाषाएँ हैं जो अंग्रेजी के मुकाबले उनकी नज़र में कहीं ज्यादा साम्प्रदायिक हैं .और मसला इन्हीं भाषाओं का है किन्हीं वजहों से इस प्रदेश में ..तो मुझे मन लेना चाहिए कि मैं हिंदी पढाता हूँ .भले ही सिर्फ भाषा नहीं भी पढाता ,भाषा और साहित्य दोनों की दी हुई रोज़ी रोटी खाता कमाता हूँ .
    पंजाबी के बारे में आपका क्या ख़याल है ?
    नेक ख़याल है जी . मैं खुद भी पंजाबी ही हूँ .
    पर पढ़ाते तो हिंदी हैं न ..?
    तोंद के कंधे पर से लगभग गिरती हुई दुनाली एक कद्दू के पेट में घुसती हुई दूसरे कद्दू को तीसरे की तरफ उछाल रही थी .
    मेरे अंदर पंजाब के हालात को लेकर कितने तप्सरे छिड़ चुके थे ,मैं किसी के हवाले से भी कुछ बोल नहीं सकता था ..

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  178. tul Arora
    October 29, 2014 at 10:33pm ·
    ऐसे करता हूँ
    किये ही लेता हूँ
    थोड़ी सी ज़्यादती
    कविता कहते
    सुनते करते
    रातों की नींद जाती रही है
    मुड़ो
    यहां से कहानी की तरफ
    लम्बी मत कहना
    छोड़ देना उसे बीच ही में
    एक सौ अस्सी डिग्री ऐंगल पे
    नीचे देखो वहां
    जहां एक लम्बी रेखा है
    इसमें कुछ मत जोड़ना
    बहुत ही अधिक ज़रूरी है तो
    बीच में से तोडना
    अब इसे नचाना
    एक कल्पित बिंदु पर
    ऊपर की तरफ
    नीचे गेंद की तरह फेंकते हुए
    नाचती रहेगी जितनी देर
    तुम यह कविता
    नए सिरे से कहना
    किसी निबंध की तरह
    आत्मकथा का कोई सिरा
    उलझाते हुए
    इसका गद्य गोल कर देना
    यह गेंद में से निकल कर बाहर आ जायेगी
    पुचकी हुई हवा
    बाहर हवा में घुलती हुई
    अगर कुछ और न हो पाये तो
    हवा को
    हव्वा में तब्दील होने देना
    आदम के होते होते हो जायेगी
    तुम्हारी कविता ऐसे ही पूरी हो जायेगी।
    8 Comments1 Share
    10 Gul Chauhan, Virender Kapur and 8 others
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Aadim katha (ya Kavita) yahii to hai...You don't need to turn it to 180 degrees...Only Six degrees of separation,and it recurs,repeats,reappears !!
    See Translation
    October 29, 2014 at 11:18pm · Like · 2
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    Atul Arora
    Atul Arora Kavita per bahas na karna...geo...jiyo..
    October 29, 2014 at 11:56pm · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia bahas to Fsacebook par behisaab hove hai...behis log ghus paith na karen,to chokhii bahas ho sake...phir kavita kya aur akavita kya...All is grist to the mill...
    See Translation
    October 30, 2014 at 2:25am · Like
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    Virender Kapur
    Virender Kapur Atulji, aapki Rekha ka nach arambh hote hi uski ankhon ki masti ke hazaron mastane aa jaenge.
    October 30, 2014 at 3:50am · Like
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar "कविता", " कहानी", "निबंध", "आत्मकथा
    "
    October 30, 2014 at 8:59am · Like
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar कविता,कहानी, निबंध, आत्मकथा - सब का अजस्र स्रोत है अतुलजी की कारयत्री-भावयत्री प्रतिभा ! बिम्ब-विधान का उत्कृष्ट उदाहरण!
    October 30, 2014 at 9:09am · LikeShow more reactions · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Shukriya , Sudhir Kumar ...Tumhaare kathan mujhe bal dete hain .
    October 30, 2014 at 9:02pm · LikeShow more reactions
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    Vimal Kumar
    Vimal Kumar सुन्दर
    October 30, 2014 at 9:20pm · LikeShow more reactions

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  179. Atul Arora
    October 31, 2010 at 10:20pm ·
    आज का दिन बड़ा अजीब है
    18 Comments
    6 Jagdish Tiwari, Maya Mrig and 4 others
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    Atul Arora
    Atul Arora nahin aisa kuchh nahin hai... darasal merey computer mein kuchh kharaabi chal rahi hai driver ki ...type kar diya dekhaney ke liyey ki kitani der tikati hai yeh ibaarat...devnaagri mein..roman mein to tik jaati hai ...
    October 31, 2010 at 10:28pm · Like
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    Pranay Bhanot
    Pranay Bhanot Gud mrning unkle...
    October 31, 2010 at 10:33pm · Like · 1
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    Reenu Talwar
    Reenu Talwar ज़मीन पर रेंग-रेंग कर चल रहा है...रोज़ तो हवा होता था
    October 31, 2010 at 10:34pm · Like
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    Rathi Devi Menon
    Rathi Devi Menon Mere liye to har din ajeeb hai.......kyunki hum sab ajeeb hi hai!!!!
    October 31, 2010 at 10:40pm · Like · 2
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    Rakesh Shreemal
    Rakesh Shreemal Kash......Aisi hi ajeeb meri jindgi bhee ban sakti.....
    October 31, 2010 at 10:41pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora nahin, sachmuch ..yakeen na aaye to merey profile per 'aurat jachha hai' ...panktiyaan mileingi ...devnaagri mein ...jo 'aaj ka din '...se pahle aani chaahiyey theen per ud gayeen....
    October 31, 2010 at 11:52pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora अभ्र इस कदर आ गया करीब है...
    November 1, 2010 at 4:51am · Like
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    Rakesh Shreemal
    Rakesh Shreemal Rakib banaane ke liye shukriya Bodhi JI....
    November 1, 2010 at 6:07am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora आँख की रौशनी गरीब है...
    November 1, 2010 at 6:30am · Like
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    Stella Paul
    Stella Paul My Hindi is awful. But how about this ..'phir bhi, doston ke to qareeb hi hai?'
    November 1, 2010 at 10:16am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora banda hind ka adeeb hai....
    November 1, 2010 at 6:28pm · Like · 1
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    Arvinder Kaur
    Arvinder Kaur ''koi koi apne pia ke kareeb hai ''
    November 1, 2010 at 7:46pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora likhney padhney milaney ki tahzeeb hai
    facebook per dhoond lee tarkeeb hai...
    November 1, 2010 at 8:38pm · Like
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    Atul Kanakk
    Atul Kanakk kyon?
    November 1, 2010 at 9:52pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora pahley chhapo phir chhupaao
    ya chhapey per kuchh chhapaao
    bolo khud ya ja bulwaao
    bhaley vimochan hi karwaao ..
    saari tikdam theek bhidaao ...

    itaney kahaan hamaarey dum mei
    aag jagaayi bujhaney ke kareeb hai ....
    aaj ka din bada ajeeb hai....
    November 1, 2010 at 10:13pm · Like

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  180. Atul Arora
    October 31, 2011 at 8:45pm · Chandigarh ·
    कोई देश कैसे अपनी पवित्रताओं और परम्पराओं को नष्ट करता है ,इसे उसकी आम जनता से पूछो .बुद्धिजीवियों से नहीं.उन्हें पता भी हो तो बताने के उनके ढंग चीज़ों को जटिल कर देते हैं भीतरी बाहरी दबाव और षड़यंत्र तो जन जन की जिंदगियां नरक कर ही देते हैं पर उनकी लोक कथाएँ , उनका साहित्य ,संगीत और दूसरी ढेरों कलाएं कहीं न कहीं सिसकती रहती हैं .. दूर देशों की यात्राएं करती हुईं.. कहीं पढो अगर कि किसी देश में किसी विशिष्ट समय में चप्पे चप्पे पर अदभुत्त कलाकार और कवि लोग कुछ इस बहुतायत में होते थे कि कोई पाँव फैलाना चाहे तो किसी न किसी कवि के चूतडों से टकरा जाते थे...है न ठोस अफ़गानी अभिव्यक्ति ...!
    3 Comments
    7 Manoj Chhabra, Principal Bhupinder and 5 others
    Comments
    Atul Arora
    Atul Arora 'टकरा जाते थे' के बाद 'तो कैसा लगे ' जोड़ लें .
    October 31, 2011 at 8:52pm · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma SACH TO YAHI HAI ATUL JI, JIS PAR GUJARTI HAI VO HI JAANTA HAI, VO TO JANTA HI HAI KOI BUDHHIJEEVI NAHI !!!!
    October 31, 2011 at 8:59pm · Like
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder problem of plenty and fear of gays--but the creative art survives--powerful word of ATUL --THE EARTHQUAKE OF HINDI LITERATURE FROM SOME ANGLES--WOW
    November 1, 2011 at 6:19am · Like

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    Atul Arora
    November 1, 2014 at 10:06pm ·
    अजीब बात है
    समय खिलते खुलते
    फूल कर कुप्पा हो जाता है
    कभी कभी
    मौसम तो अक्सर ही धोखा खा जाता है
    संभल कर अपनी हकीकत में
    आने
    जगाने से पहले
    अनुभव तक लगातार शिकायत करता हुआ
    खड़ा रहता है
    इतना झूठा नहीं हो सकता
    जीना
    छद्म तो है
    दूरबीन की तरह
    अभी मुट्ठी का खोल
    बना लो तो लम्बी
    सुरंग में से निकल कर
    चली आयेगी दुनियाँ
    एकदम तुम्हारे पास
    सुरंग में से निकल कर जाती हुई दूर
    झपटकर ले जाती हुई
    तुम्हें अपने साथ
    दीखता हुआ दृश्य
    काँपता रहेगा
    झपकी खुली आँख में
    दृश्य जबकि अपनी कैद में भी आज़ाद रहेगा
    इसीलिए तो तुम होते नहीं हो
    जहां होते हो तुम
    उसका कहना यूं ही तो बेबाक नहीं है
    फूल मुरझा गया
    मान लेते हैं
    खुशबू हमेशा के लिए चली जायेगी
    फिर भी
    अभी उसके जाने में काफी वक़्त है
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    16 Vaneeta Malhotra Chopra, Virender Kapur and 14 others
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Superb...one of your very best !!
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    November 2, 2014 at 4:26am · Like · 1
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia ab??...Anuvaad yaa Paath ...mushkil to hai,karataa hoon,aur qaid kar leta hoon computer kii hard disc mein...reecording apanii qaid main bhii aazad rahegii...to jab nahiin houngaa,tab bhii houngaa...
    See Translation
    November 2, 2014 at 4:32am · Like · 2
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    Atul Arora
    Atul Arora Aayushmaan bhav...Harish Bhatia
    November 2, 2014 at 4:11pm · Like
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    Virender Kapur
    Virender Kapur अद्भुत, तुम होते नही हो जहां तुम होते हो।

    ReplyDelete
  182. Atul Arora
    November 2, 2010 at 9:07pm ·
    "घाटी लिद्दर संगी साथी चल गुफा में / देख उनका बर्फ में ईजाद होना...

    वे अमर हैं नाथ तेरी यात्रा के / फिर तू हिन्दू याकि मुस्लमान होना...

    उनने जिनसे माँगा था आबाद होना / अब उन्हीं से मांगते आज़ाद होना ..."

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  183. Share
    3 YEARS AGO TODAY

    Atul Arora
    November 2, 2014 at 10:19pm ·
    चलते वक़्त की तैयारी में
    चलने से पहले का कोई तो ज़िक्र रहा होगा
    जिसकी वजह से मुकाम को तस्लीम किया गया
    चलने वालों को थी
    लेकिन मुकाम को इसकी खबर नहीं थी
    नाच नचाना उसकी फितरत में था
    देखते ही देखते वह नज़रों से ओझल हो जाता था
    सफर का रास्ता मुश्किल करता हुआ
    लेकिन इस बार वह धोखे की साफ़ चपेट में था
    ये लोग उससे कहीं ज़्यादा चालाक थे
    कैसे भी संकटों से जूझने की उनकी पूरी तैयारी थी
    वास्कोडिगामा अगर उनका पूर्वज था तो
    ह्यूनसॉन्ग से रिश्ते भी पुराने थे उनके.......Saved ... incomplete
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    7 Virender Kapur, Shruti Sharma and 5 others
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder history n discovery togather
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    November 2, 2014 at 10:28pm · LikeShow more reactions
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia anant yaatraa,anant mukaam...
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    November 2, 2014 at 10:32pm · LikeShow more reactions
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma akeley akeley..............atulya.......kahan ja raha hai?????
    November 3, 2014 at 5:26am · LikeShow more reactions

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  184. Atul Arora
    November 2, 2012 at 9:49pm ·
    उसने शब्दों की तरफ देखा
    वे पहचान में नहीं आ रहे थे .
    उड़ते हुए प्रवासी पक्षियों की तरह
    उनकी मीलों लम्बी उड़ानें
    कहीं ख़त्म ही नहीं हो रही थीं
    कहीं उतरते किसी भुवन में
    किसी लोक को परिभाषित करते हुए
    जहां से वे आ रहे थे और आते ही जा रहे थे
    तो आ ही जाते पहचान में भी
    अपनी आवाजों से लगातार चौंकाते हुए
    उनकी चीखों में यौवन का आह्लाद था
    और मृत्यु से वे ज़रा भी भयभीत नहीं थे
    हालांकि उन्नयन उनका
    मृत्यु के लिए
    किसी अंतहीन पुकार की तरह
    वाक्यों की गुफाओं की रचना करता हुआ था
    आकाश में गुन्जायेमान हो रहा था
    समंदर इसे देख कर भी ईर्ष्यावश
    अनदेखा किया करता था
    लेकिन पहाड़ अपना आश्चर्य छिपाते नहीं थे
    उनकी लालसाएं साफ़ नज़र आती थीं
    शब्दों को बर्फ की तरह
    अपने ऊपर सिंहासनासीन करने की इच्छा से त्रस्त
    आह्वान सा करती हुईं
    शब्द उनकी चोटियों के ऊपर खड़े खड़े तैरने लगते थे
    जैसे सूर्य की तपिश को न्योता दे रहे हों
    चल
    तू भी देख ले
    कैसे हम पिघलते हैं
    यहीं जम जायेंगे ...!
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    13 Ahinsa Pathak, Sayed Rezaul Kabir and 11 others
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    Suman Tiwari
    Suman Tiwari bahut khoob
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    November 2, 2012 at 10:12pm · Like · 1
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    Ahinsa Pathak
    Ahinsa Pathak Ati uttm
    November 5, 2016 at 7:15pm · Like

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  185. Atul Arora
    November 2, 2011 at 8:33pm · Chandigarh ·
    तुम्हें जो अच्छा लगता है तुम उससे प्यार करते हो
    वो अच्छा ही नहीं होता जिसे तुम प्यार करते हो
    बुरा भी उसमें होता है जिसे तुम प्यार करते हो
    उसी से नफरतें भी हैं जिसे तुम प्यार करते हो
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    16 Virender Kapur, Bindu Singh and 14 others
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    Arvinder Kaur
    Arvinder Kaur main yeh nahi kehta k wo achha bahut hai/par usne mujhe chaha bahut hai
    November 2, 2011 at 8:39pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora 'It is in my heart to be worthy of your love '...'It is also in my heart to be worthy of your hate ..'
    November 2, 2011 at 8:42pm · Like · 1
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    Dakhal Prakashan Delhi
    Dakhal Prakashan Delhi क्या कहने हैं...
    November 2, 2011 at 8:47pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder hate--love syndrome--oxymoron---u may hate me as i am a moron being so morose
    November 2, 2011 at 8:49pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora चाह बरबाद करेगी हमें मालूम न था
    November 2, 2011 at 9:06pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder chai or chah dono h barbaad kar gayee--aa
    November 2, 2011 at 9:07pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora Old Monk ....! (K. G ke mureedon ka haal kuchh aisa hi hota hai ...)
    November 2, 2011 at 9:47pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora K. G ko kindergarton bhi kahte hain per yeh K.G vo K.G nahin hai ...Boojho to jaanein ...!
    November 2, 2011 at 9:49pm · Like
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    Anita Dagar
    Anita Dagar it is a pleasure to just see you guys interact....lage raho....atul j, bhupinder j and harish bhatia ji
    November 2, 2011 at 10:11pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora Kahlil gibran
    November 2, 2011 at 10:12pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora P.S(post Script)...kal aayega kal parson ... kahaan aag kahaan paani ...theater Diggaj kaun hai ? asali bujhaarat to theater diggaj yahi hai ...! Baaki sab to kamal Anaadi Kamal pichhadi..kamla aage kamla peechhey ...kaun hai ooper kaun hai neechey ..!
    November 2, 2011 at 11:57pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora pichhaari ki pachhaad ...agaadi ki dahaad ...otteri ki ...1
    November 3, 2011 at 3:15am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora taaki tooki da bandobast karo ji ... phataphaat ...
    November 3, 2011 at 3:20am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora lai de ke khoti pher bodh thalley ..!
    November 3, 2011 at 3:24am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora budak budak budkaaye ja... sabka dil bahlaaye ja ...!
    November 3, 2011 at 3:28am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora is umr mein kya khaak musalmaan hongey

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  186. Atul Arora
    November 2, 2011 · Chandigarh ·
    कभी कभी लगता है कि बस हो गया ..काफी हो गया .. फिर काफी भी काफी नहीं लगता ...और काफी मुश्किल में पड़ जाता हूँ ..कॉफ़ी तक मदद नहीं करती काफी की ... काफ़िया रदीफ़ तो वैसे ही काफी नहीं होते मक्ता मतला भी कोई चीज़ होती है हालांकि काफी वो भी नहीं होती ... itni kaifiyat bhi kaafi nahin hai ....
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    15 Dharmendra Gangwar and 14 others
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    Atul Arora
    Atul Arora bahr ko paanchaveen zaroori cheez maanaa jaata hai aur bahr saadh lena har kisi ke bas ka nahin hota to kaafi kaise ho gaya ... bulleshaah se poochho uski kaafi ke baare mein ...
    November 2, 2011 at 6:37am · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma oyey bullya, ki kenda hain.....khol de apni potli tey khol de apni pol, kujhh nahi chhipya rab de kol :)
    November 2, 2011 at 7:57pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora शरीयत हुन्दी कोल मेरे तरीक़त मैनूं मिल जांदी
    हक़ीक़त नूं ना फड लैंदा नाल मार्फ़त खिल जांदी
    November 2, 2011 at 8:20pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora 'sama' per aa nahin paatey hain bigdey raag ke gaayak
    November 2, 2011 at 8:38pm · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora sur sasura gar saddh jaataa hum saadh faqeer hue hotey
    November 3, 2011 at 6:49am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora hotey gar saadh faqeer to saadho saaz shareer hue hotey ..
    November 3, 2011 at 6:55am · Like · 1
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    Atul Arora

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    Atul Arora
    November 3, 2012 at 8:42pm ·
    हरे में यह नीलवर्णी आकाश कितना भी सजे
    धज में अपनी सर्द वर्क करता फिर अकेला है
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    11 Sayed Rezaul Kabir, Shaurya Lakhi and 9 others
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    Atul Arora
    Atul Arora principal sahab , yah comments kahaan ke kahaan lag rahe hain .. ? baat kuchh samajh nahin aa rahi ..!
    November 3, 2012 at 8:52pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder woh kuch mix up hoo gaya sorry --yeh pastiche technique thaa kuch mix hoo gaya post kartey --yes you r right loneliness is deep painful yet we like loneliness at times
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    November 3, 2012 at 8:56pm · Like · 2
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    Dariye Achho
    Dariye Achho So beautiful.
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    November 3, 2012 at 8:59pm · Like · 2
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    Atul Arora
    Atul Arora O nain yaar ..sorry waali taan koi gal nahin haigi ..main thoda confuse jiha ho giya si ki karaan te kee karaan ... !
    November 3, 2012 at 9:04pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder nahi atul oh main kyey haur post karna c baaki suna ki hal chal hai
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    November 4, 2012 at 12:47am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora है कहीं कोई जिसे हर वक़्त ढूँढा करता मन
    ढूंढ में ही ढूंढता उलझा रहे अकेला है
    November 4, 2012 at 6:14pm · Like · 3
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    Dariye Achho
    Dariye Achho Poori kavita chahiye ab to
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    November 4, 2012 at 8:15pm · Like · 2
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    Atul Arora
    Atul Arora आपका कहना मेरा सुनना दिखाना जिसका है
    भूले से मिल जाए गर मिल जाए पर अकेला है
    November 4, 2012 at 8:33pm · Like · 3
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    Atul Arora
    Atul Arora प्राविधिक ये प्रार्थनाएं खेल की आराधनायें ...मृत्यु का यह खेल भी खिलता है तो अकेला है ..
    November 4, 2012 at 8:54pm · Like · 2
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    Atul Arora
    Atul Arora कहने को वह जगह में है जगह सा अकेला है
    भरते भरते जगह को भरता हुआ अकेला है ..
    November 4, 2012 at 9:19pm · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder akela mein yaadon ka kafila mein albela
    November 4, 2012 at 9:38pm · Like

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  188. Atul Arora
    November 3, 2014 at 9:12pm ·
    ग़ज़ल से उसने कहा बेशर्म हो जाओ
    वो हो गयी तो शर्मसार हो गए मिसरे
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    14 Virender Kapur, Shruti Sharma and 12 others
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    Manjit Handa
    Manjit Handa wah
    November 3, 2014 at 9:15pm · Like · 1
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    Puneeta Chanana
    Puneeta Chanana वाह
    November 3, 2014 at 9:16pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora कहने लगोगे कुछ तभी कह पाओगे कुछ तुम
    गर चुप्पियाँ चलती रहीं मर जाएंगे मिसरे
    November 3, 2014 at 10:07pm · Like · 1
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    Puneeta Chanana
    Puneeta Chanana Even better Atul Arora
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    November 3, 2014 at 10:09pm · Like · 1
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    Late BP Singh
    Late BP Singh Kya baat hai sir
    November 3, 2014 at 10:25pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora आज फिर कुछ और ही तरह की चीज़ उतर रही है। । यह तीसरा शेर है जो आपकी नज़र कर रहा हूँ.…

    हम ने कहा मन जाओ तो नाराज़गी भी क्या

    लेकिन वो खुदमुख्तार थे माने नहीं मिसरे
    November 4, 2014 at 1:57am · Like · 2
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder Good. N. Njoyable
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    November 4, 2014 at 7:26am · Like · 1
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    Virender Kapur
    Virender Kapur wonderful, God bless.
    See Translation
    November 5, 2014 at 2:54am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora लो जी , ये दो शेर और। ।

    मतला कहो मकता कहो कहते रहे मिसरे

    मिसरों के कहकहों को भी सहते रहे मिसरे

    कहने की बात और थी सुनते रहे मिसरे
    सुनते हुए सर को मेरे धुनते रहे मिसरे
    November 5, 2014 at 6:38am · Like · 1
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    Virender Kapur
    Virender Kapur Lagbhag 40 saal baad vi tuhade Nain nahi visre Atulji.
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    November 6, 2014 at 4:10am · Like · 2

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  189. Atul Arora
    November 4, 2012 at 10:18pm ·
    सुबह कुछ ज्यादा ही सुहावनी होती है आजकल .मतलब इतनी सुहावनी कि डरावनी लगती है . इतनी व्यस्त कि ध्वस्त लगती है . कुत्ते पिल्ले सब के सब इकट्ठे हो जाते हैं .दिलो दिमाग जिस्म नोचते हुए . उनकी भौंक एक दूसरे पर झपटती है और उनके तांडव का शिकार मैं भी होता हूँ . रात के बंद किये हुए दरवाज़े,कुंडे ,तालों की चाबियाँ खूंटियों पर से उतर कर अपने अपने छिद्र खोजती हुईं मुझे बाहर के गेट तक ले जाते हैं जहां गाडी साफ़ करने वाला बाल्टी कपडा हाथ में लिए खड़ा मिलता है . जब तक गाडी बाहर निकालता हूँ , कुत्ते पिल्ले पौटी करते हैं .ध्यान यह भी रखना पड़ता है कि माली के आने से पहले उठा दूं नहीं तो माली अपना काम छोड़ देता है घास बुहारने का .. झरे हुए पत्ते गीले हो जाते हैं पाईप से पानी की बौछार में और पौटी का समेटा जाना भी एक आफत ही बन जाता है . कूड़ा उठाने वाले का कोई निश्चित वक़्त नहीं है .वह अभी ही आ सकता है या फिर दिन में कभी भी . घंटी नहीं बजाएगा तो कूड़ा बू मरता हुआ कूड़ेदान में ही पड़ा रहेगा या फिर वह काम भी मेरे ही हिस्से . कार में ले जाना होगा उसे और दूर मार्किट के पिछवाड़े बड़े बड़े कूड़े से लदे फदे कूड़ेदानों की तरफ फलांगना होगा उसे .जहां का दृश्य किसी स्वर्गिक आनंद को देने वाला होगा . माने आप कुछ देर वहां खड़े रहे तो सीधा स्वर्ग सिधार जायेंगे .नरक तो यहाँ है ही ..!नहीं , मैं वहां नहीं रुकता . न यह देखता हूँ कि कैसे कितने ही लाल गोपाल कूड़े में की पन्नियाँ अलग करते हुए गू में से सोना निकालने की फिराक में हैं .मुझे घर पहुँचने की जल्दी है .वैसे भी मेरा हाजमा ज्यादा दुरुस्त नहीं है . मैं कै नहीं करना चाहता।उलट गया सब तो कौन दवा दारू करता फिरेगा।फिर घास गीली होगी और अखबार वाला आएगा हवा में जैसे कबूतर फडफडाता , अखबारें उड़ाता हुआ ...जिन्हें वर्का वर्का समेटना होगा . बारिश में तो भूल ही जाओ कि मिलेंगे अखबार तुम्हें पढने के लिए .किसी गर्म लोहे के नीचे रक् कर सुखाना उन्हें और रद्दी वाले के हवाले क्र देना . खबरें तो टी .वी चैनल सुना ही देते हैं दिन भर .और यूं भी कौन सा मैदान बचा हुआ है मारने को जो खबरें नहीं पता होंगी तो वीर गति नहीं मिलेगी इस कर्म कुरु के युद्ध फुद्द क्षेत्र में।।।।।।।

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  190. 14 Swaran Singh, Balvinder Balvinder and 12 others
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma atul ji din charya te enj hi shuru hondi hai ji....motor on karo....45 mint layee paani aana hai ji...5.30 - 6.15 am...jey 5.40 te motor on keeti tey shayad 6 baje tak ik boond vi na miley....fer kuttey nu ghumaan le k jaana.....tussi vi kaho gey...atma katha lai k shuru ho gaya hai...lao ji band keeti :)
    See Translation
    November 5, 2012 at 5:03am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora नहीं यह सुबह आज ही की नहीं है . जब से यहाँ आया हूँ ,तभी से ऐसी है .नहीं ,यह सुबह नहीं है . रोज़ का मामला है . जबसे दिमागी तौर पर पैदा हुआ हूँ ,सुबह ऐसे ही आती रही है . उन्नीस इक्कीस के फर्क के साथ .तो इसे सुबह क्यों कहें ,कैसे कहें ? नहीं तो ,फिर रात कहें ?इसे अपनी ज़िन्दगी की रात भी कैसे कहें ? राग कहें ?रोजमर्रा का राग भी कैसे कहें ? राग में कहीं कोई आग भी होती होगी .इसे ज़िन्दगी की आग भी कैसे कहें ?झाग कहें ? झाग फिर किसकी कहें ? मिर्गी कहें ?मिर्गी की लार कहें ?क्या कहें ?सवाल कहें ? जवाब कहें ?घिरती आती शाम तक यही सब चलेगा .शाम की शामलात कहें ?शाम की चर्बी का चर्वण कहें ?भ्रमण के भ्रम का श्रवण कहें ?रात में घात लगनी शुरू हो जायेगी और रात भी ऐसे ही बीत जायेगी .. बीतना सबको आता है बिताने की बात कठिन है . बिताना रोज़ नहीं होता ,बीतना हो जाता है .उम्रों की तरह . अपने आप . नहीं , यह सुबह नहीं है सुबह सुबह की मृत्यु है . मृत्यु कहें ? मृत्यु की मात कहें ? ज़ात कहें ?
    November 5, 2012 at 5:31am · Like · 3
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma jo chaho kaho atul ji...yeh na hoti to bhi yeh sab hota hi na...hai na?
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    November 5, 2012 at 5:33am · Like
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    Atul Arora
    Atul Arora Aur nahin manmohan hota ..hota gandhi dohan hota . sohan hota rohan hota ..rudra hansi ka rodan hota ..halva maanda modak modi...rahul ka kya shodhan hota ..beejeypee ki bhaang na hoti kangaaroo ki chhaang na hoti .. race cong see raas na hoti ,,bhrasht kabhi barsaat na hoti ... jai baaba bhole naath ki jay ...!
    November 5, 2012 at 5:46am · Like · 1
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder kya baat hai ji
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    November 12, 2012 at 6:22pm · Like · 1
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    Chaman Arora
    Chaman Arora Your portrayal of the mechanical life which most of us lead brings out the undercurrent agony of killing boredom in a most touching manner though the artistic side of the write- up cannot be ignored as it is rich with simple subtlety. I' m sorry I'm not good at Hindi nor do I claim to be accurately expressive at English. I wish I could write in Hindi.
    See Translation
    November 4, 2015 at 8:41am · Edited · Like · 2
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    Pahlad Aggarwal
    Pahlad Aggarwal ji haa....baba bhole nath ki jay....<3
    November 5, 2015 at 10:29am · Like · 1
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar
    November 4, 2016 at 8:26pm · Like · 1

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  191. Atul Arora updated his status.
    November 5, 2016 at 9:21pm ·
    सोने की चिड़िया /
    हथौड़ा और छैनी
    दरांती के दांत
    होंगे तो ज़रूर कहीं न कहीं
    उनकी अपनी जगह पर
    झंडों , तस्वीरों में लुटे
    लूटे लगते हैं
    उन्होंने
    देखा जाए तो नष्ट कर दिए हैं
    हाथों हाथ हाथ
    रोडमूवर्स की
    जगह पर आसीन कर दिया है
    ड्राइवर की सीट पर उन्हें बाँध कर
    हालांकि वे पहले की तरह ही बिके हुए हैं
    मैं दिन की शुरुआत एक कलम से करता हूँ
    वह भी बीच ही में मुकर जाती है
    मेरे लिखे हुए से
    मेरी सारी तैयारियां मृत्यु की हैं
    मृत्यु से पहले
    खुशगवार मौसम
    झूठी कल्पनाएं
    संकल्प मेरे धोखा
    मेरे सारे औज़ार
    हथियार
    क़ानून की किताब के बंदी है
    संविधान मेरा मुखौटा
    चाहूँ तो इसे भी इस्तेमाल नहीं कर पाता हूँ
    इसे कुछ लोगों ने दुनिया के व्यापारी
    बैंकों में
    सोने की चिड़िया सा
    गिरवी रक्खा हुआ है। (अतुलवीर अरोड़ा )
    5 Comments
    6 Agneya Dube, Surendra Mohan and 4 others
    Comments
    Atul Arora
    Atul Arora Thanku , Ambuj Pandey, Uptill now , you r the only one who has thumbbed Up my post of the Day !
    LikeShow more reactions · Reply · 1 · November 6, 2016 at 12:30am
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    अम्बुज पाण्डेय
    अम्बुज पाण्डेय सर मुझे आपकी कविताएं गहरे अंतर्बोध तक झकझोकरती हैं।मैं बड़ी खामोशी से आपकी कविताओं का मनन करता हूं।थोड़ा सरलीकरण का खतरा जान पड़ता है नहीं तो मुक्तिबोध और शमशेर के समान कथ्य और शिल्प वाली ambigousकविताएं आपने रची हैं।भारतीय मिथकों और आख्यानों पर आपकी सर्जनात्मक कविताएं बेजोड़ है।
    LikeShow more reactions · Reply · 1 · November 6, 2016 at 1:21am
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    Atul Arora
    Atul Arora Aafreen ...Aap Durlabh aur vilakshan pratibha ke maalik hain.
    LikeShow more reactions · Reply · 1 · November 6, 2016 at 1:40am
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    Surendra Mohan
    Surendra Mohan अद्भुत ! अद्भुत !!! पंजाबी भाषा में कविता ` सिरा ` है ...
    LikeShow more reactions · Reply · 1 · November 6, 2016 at 3:11am
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    Atul Arora
    Atul Arora Tuseen saanu nihaal kar ditta
    LikeShow more reactions · Reply · 1 · November 6, 2016 at 3:12am

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  192. था कोई अपना हमारा हम से जो बिछुड़ा
    बिछुड़ कर भी वह यादों में कहाँ कब छूट पाता है
    xxxxxxxxxxxxxxxx
    किसी को क्या दिलासा दूँ मैं खुद ही टूट जाता हूँ
    ये मिट्टी का बिखरना है घड़े सा फूट जाता हूँ
    xxxxxxxxxxxxxxxxxx
    किस्सा है नहीं कोई जहां छूटा वहीं से फिर
    जुड़े तो जोड़ लूँ मूरत जहां से टूट जाता हूँ

    ReplyDelete
  193. Atul Arora
    November 5, 2014 at 8:01pm ·
    बीतने के बाद भी न बीत पाता है
    बीत जाता है कभी जो बीत जाता है
    3 Comments
    9 Virender Kapur, Anju Thakral Makin and 7 others
    Comments
    Harish Bhatia
    Harish Bhatia din jo pakheroo hote ,pinjare mein main rakh leta/paalataa un ko jatan se motii ke daane detaa...
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    November 6, 2014 at 12:18am · LikeShow more reactions · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AASir...yaad na jayey, beetey dinon ki :)
    November 7, 2014 at 10:16pm · LikeShow more reactions · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma :)
    November 8, 2014 at 3:57am · LikeShow more reactions

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  194. November 6, 2014 at 2:21am · LikeShow more reactions · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Thanku , Sudhir Kumar for ur kind comment..
    November 6, 2014 at 4:26am · LikeShow more reactions · 1
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    Atul Arora

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    5 YEARS AGO TODAY

    Atul Arora
    November 5, 2012 at 8:08pm ·
    कुछ लोग अपने रोज़मर्रा पहनावे में ही इतने धार्मिक सांस्कृतिक प्रतीक चस्पां कर देते हैं कि उनसे बात करना मुश्किल हो जाता है .इसलिए नहीं कि वे ढंग से बात नहीं करते या उनकी आपकी बात में ही कोई जटिल गुत्थी गुन्धी रहती है बल्कि इसलिए कि वे पहनावे के अनुकूल या आप अपने पहनावे के प्रतिकूल हो जाते हैं और जब आपकी बात उन तक या उनकी आप तक नहीं पहुँचती तो समस्या दो जन की भिन्न भिन्न अभिव्यक्ति की नहीं होती बल्कि दो अलग पहनावों के द्वंद्व की हो जाती है .. शायद इसीलिए हम पूरी तरह नंगे भी नहीं हो पाते हैं एक दूसरे के सामने हालांकि एक दूसरे अर्थ में शायद अधिकाधिक नंगे उसी वक़्त हो जाते हैं ...!
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    5 Dariye Achho, Taseer Gujral and 3 others
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    Anjala Maharishi is with Anoop Lather and 8 others.
    November 5, 2012 at 9:23am ·
    A run khopkar
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    2 You and Anoop Lather
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    6 YEARS AGO TODAY

    Atul Arora
    November 5, 2011 at 7:42pm · Chandigarh ·
    कोई आवरण तो चाहिए था ना
    ज़िन्दगी को भी
    अपना आप
    छिपाने के लिए
    तो पहन लिया ...
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    13 Preetam Thakur, Raghvendra Singh and 11 others
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    Atul Arora
    November 5, 2011 at 4:20pm · Chandigarh ·
    रातों रात बदल गयीं तस्वीरें हाशिये पर
    हाशिया खुद पहचान नहीं पाया आपको
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    8 देव राज कपिल, Madhav Singh and 6 others
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    Atul Arora
    November 5, 2011 at 7:19am · Chandigarh ·
    पोपले यू माय क्नोव में कुछ चेहेरे बारामाबरा दिक्ख्ह्हायें जातें हिं ..हम उन्हें जान्तेयाये हैं ...पैर क्येऔ करें ..वो लोग कभी दोस्त रहे हैं .. दुश मन तो अभी भिया नाहीं .. पैर एक चुप सौ सुक्खा .. ( पढे सो पंडित होए )
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    7 Preetam Thakur, Bindu Singh and 5 others
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  195. Atul Arora
    November 5, 2011 at 7:42pm · Chandigarh ·
    कोई आवरण तो चाहिए था ना
    ज़िन्दगी को भी
    अपना आप
    छिपाने के लिए
    तो पहन लिया
    मृत्यु को उसने
    दिन छिप नहीं जाता है
    रोज़
    रात पहन कर
    रात को उजाला
    भरसक चाहिए ही था
    दिन की कालिख धो ही डाली
    रात गुज़र कर...
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    13 Preetam Thakur, Raghvendra Singh and 11 others
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder दिन की कालिख धो ही डाली
    रात गुज़र क--BAHOOT KHOOB
    November 5, 2011 at 7:46pm · Like · 1
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma subhaqn allah :)

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  196. Sudhir Kumar स्मरण- स्मृति - विस्मरण- विस्मृति -घट-पट- आकाश -अवकाश -भूत- वर्तमान -टूट-छूट - इत्यादि - अपने अर्थगौरव के साथ अवतरित होते हैं आदरणीय अतुलजी की कविता में !

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  197. मिलने की बात कह के वो परेशान होते हैं।
    मिलते हैं मिलके भी मगर परेशान होते हैं।
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    7 Virender Kapur, Anju Thakral Makin and 5 others
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    Atul Arora
    Atul Arora मिलना है दूभर मिलने की तो सोचना भी मत
    मिलने पे मिलना भूलकर परेशान होते हैं ....... ( रमेश उपाध्याय की आज की किसी पोस्ट पर अपनी तरफ से एक टिप्पणी की थी जो वहां चढ़ी नहीं तो यहां सजा दी है.पता नहीं उन तक पहुंचेगी या नहीं ,कौन जाने उनका ध्यान इधर जाए तो उनसे मिलना हो ही जाए। )

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  198. Atul Arora
    November 6, 2011 at 7:32pm ·
    जानकारियाँ
    समझ
    थी
    लेकिन वह
    जिसके मिल जाने पर
    सब ठहर जाता है
    होगा तो ज़रूर
    पर था नहीं
    किसी भी आदमी के पास
    हालांकि होता अगर
    तो सबसे ज्यादा पीड़ा भी
    उसी को झेलनी पड़ती
    प्रज्ञावान के लिए
    स्थिति ही
    स्थिति है
    स्थित जब हो जाता है
    तो मैं कैसे जानूं
    क्या हो जाता है
    (kahne को तो वह भी
    use khud chunta है
    ab yah गीत है
    कि गीता ..! )

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  199. Atul Arora
    November 7, 2014 at 8:47pm ·
    उसे ठीक से पहचानने या सही सही
    पढ़ पाने के लिए
    कभी किसी को अपने
    दिलो दिमाग में लेंस
    उगाने पड़ते हों
    तो यह उसका कसूर नहीं था।
    बारीक
    बहुत सूक्ष्म हो जाती थी वह
    साफ़ दीख रहे शब्दों में अपना
    बिम्ब जगाती हुई
    नन्हीं भूरी चींटी की तरह काट लेती थी
    होंठों के ऊपर
    भीतर जुबान तक को सुन्न करती हुई
    बनैले हो जाते थे उसके नाखून
    कभी सींग उग आते थे मस्तक पर उसके
    और लाल ही लाल हो जाती थी ज़मीन
    आदमी से उसका खून मांगती हुई
    उड़ती न हो किसी पतंग की तरह कभी
    ऐसा भी नहीं था
    आकाश डोलने लगता था
    उसके रंगों के साथ नाचता हुआ
    हवा में लहराता हुआ पूंछ के साथ साथ
    मध्य वानर जाति की संतति कोई जैसे
    आते हुए आदमी की चलती पुर्ज़ा सांस
    ज़ात में अपनी खूब खूंखार
    भावनाएं चकनाचूर करती हुई
    विचार खूँदती हुई
    अपने ही जिस्म से विद्रोह करती हुई
    हड्डी थी
    कुत्ते के मुंह में
    अटकी हुई
    लार से सराबोर
    लिखने वाले उसे कविता के नाम से ज़िंदा रखते थे। (atulvir arora )
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    8 Virender Kapur, Swaran Singh and 6 others
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    Principal Bhupinder
    Principal Bhupinder donne conceits amplified here --good analogies
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    November 7, 2014 at 9:20pm · Like
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    Harish Bhatia
    Harish Bhatia Ars Poetica..well probed !!.
    See Translation
    November 8, 2014 at 1:44am · Like
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    Sudhir Kumar
    Sudhir Kumar परम अभिव्यक्ति ! " चल रहा अनवरत अंदर-बाहर का घमासान / अद्भुत ,अपरिमित है इस लघु कविता का वितान ! !"

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  200. गल्प की सरकार को कविता ने भेजी अर्ज़ियाँ
    हम जी हुज़ूरी को नहीं आगे तुम्हारी मर्ज़ियाँ
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    12 Virender Kapur, Swaran Singh and 10 others
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    Anurodh Sharma
    Anurodh Sharma AA Sir did u mean Gulf ki sarkar ko kavita ne bheji arjian?????
    November 7, 2014 at 10:00pm · Like
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    Swaran Singh
    Swaran Singh यूँ तो आप जानी-जान हैं, पर याद दिला दूँ कि गल्प-सल्तनत में आने और रहने के लिए कविता-देश की नागरिकता छोड़ना अनिवार्य नहीं है.
    November 7, 2014 at 11:16pm · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora duniyaan bhar ke publishers fiction to chhap lete hain , poetry chhapte waqt unki phatney lagti hai .
    November 7, 2014 at 11:48pm · Like · 1
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    Bhupinder Brar
    Bhupinder Brar ......
    गल्प की सरकार को कविता ने मारी लात जी
    तुक मिलानी भी न जाने तेरी क्या औक़ात जी
    November 8, 2014 at 12:46am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora aafreen.... Bhupinder Brar..!
    November 8, 2014 at 3:42am · Like · 1
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    Atul Arora
    Atul Arora Aur vaise to sanskrit mein 'saahitya' ko 'kaavya'' hi kahte hain ...matlab saahitya ke liye uske hone ki pahli shart kavita hai ...!...to phir ...? yah baazaar ki shartein kyon ..?
    November 8, 2014 at 3:50am · Like · 1

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